विलुप्त होते जा रहे दुर्लभ प्रजाति के जीव जंतु

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बाल मुकुन्द ओझा

देश में हर वर्ष दो से आठ अक्टूबर तक वन्यजीव सप्ताह मनाया जाता है। इस वर्ष यह सेवा पर्व विषय के अंतर्गत आयोजित किया जा रहा है, जो प्रकृति के प्रति सेवा और दायित्व की व्यापक भावना प्रदर्शित करता है। वन्यजीव संरक्षण और पारिस्थितिक संतुलन के महत्व के बारे में व्यापक जागरूकता के प्रसार के लिए यह आयोजन किया जा रहा है।

वन्यजीव संरक्षण केवल एक प्रजाति या समुदाय के लिए नहीं है। यह समूची मानव जाति के व्यापक हित और कल्याण से जुड़ा है। पृथ्वी पर जन जीवन का आधार वन्यजीव है। वन्यजीव संरक्षण में उनके समुचित प्राकृतिक आवास और आर्थिक संसाधन महत्वपूर्ण केंद्र बिन्दु के रूप में उभरे है। ये दो केंद्र बिंदु हमारे ग्रह की विविध प्रजातियों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए जागरूकता बढ़ाने, व्यवहार बदलने और नीति में बदलाव लाने के लिए महत्वपूर्ण हैं। थीम के मुताबिक हमें वन्यजीवों और उनके प्राकृतिक आवासों के संरक्षण हेतु न केवल आर्थिक संसाधनों का प्रबंध करना है अपितु जैव विविधता की रक्षा के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने है, ताकि इसका लाभ समाज और धरती को भी मिले। वन्यजीवों के लुप्त होने की चिंताजनक दर को अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ की रिपोर्ट से रेखांकित किया गया है, जिससे पता चलता है कि लगभग 44,016 प्रजातियाँ विलुप्त होने के खतरे का सामना कर रही हैं। यह अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ रेड लिस्ट में सूचीबद्ध 157,190 प्रजातियों में से लगभग 28  फीसदी है। इसके लिए विभिन्न क्षेत्रों की प्रौद्योगिकियों का पता लगाने और उन्हें एकजुट करने, खतरों को कम करने और वन्यजीवों को विलुप्त होने से बचाने के लिए उन्हें फिर से लागू करने के सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। भारत में विभिन्न वन्य जीवों की आबादी में लगातार वृद्धि हो रही है। हमें अपने वनों की सुरक्षा और जानवरों के लिए सुरक्षित आवास सुनिश्चित करने के लिए हर संभव कोशिश करनी चाहिए।

मानव सभ्यता ने प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन शुरू कर दिया। जंगलों को खत्म कर दिया गया। ऐसे ही कितने ही जीव-जंतुओं का शिकार इस हद तक किया गया कि वह विलुप्त होने की कगार में हैं और कुछ तो विलुप्त भी हो गए। पूरा संसार जंतु तथा पेड़- पौधों की विभिन्न प्रजातियों से भरा हुआ है। सभी प्रजातियों के जीव, जंतु, पेड़, पौधे तथा पक्षी पारिस्थितिकी तंत्र के अस्तित्व के लिए अपने-अपने तरीकों से महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। वन्यजीव मानव अस्तित्व के समय से ही धरती पर उपस्थित हैं, तथा एक- दूसरे के जीवन का अभिन्न अंग भी बन चुके हैं। नई बस्तियां बसाने, औद्योगीकरण, बढ़ती हुई आबादी, गैरकानूनी व्यापार तथा शिकार इत्यादि कार्यों का वन्यजीवों पर विपरीत असर पड़ रहा है। धरती जीव- जंतुओं तथा पौधों की विभिन्न प्रजातियों की संख्या इतनी अधिक तेजी से घट रही है, जितनी तेज गति से यह पूर्व में शायद ही कभी घटी हो। प्रत्येक  24 घंटे के अंदर जीव-जंतुओं तथा पेड़-पौधों की लगभग 200 प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं। इस भांति प्रति वर्ष करीब 73,000 प्रजातियां पृथ्वी से विलुप्त हो रही हैं।

भारत में विश्व के पांच प्रतिशत अर्थात 75,000 प्रजातियों के जीव-जन्तु निवास करते हैं तथा वनस्पतियों की 45,000 प्रजातियाँ भारत में पाई जाती हैं।  जनसंख्या विस्फोट और शहरीकरण के ही परिणाम हैं कि वनों को काटकर इसे इमारतों, होटलों, या मानव बस्तियों में बदलने की गतिविधियों में वृद्धि हुई है। इसके परिणामस्वरूप जंगल में रहने वाले विभिन्न प्रजातियों के निवास स्थान में कमी आई है। उन्हें उन स्थानों को छोड़ना पड़ता था और नए आवास की तलाश करनी होती थी जो कि आसान नहीं होता है। नए निवास स्थान की खोज, भोजन के लिए बहुत सारी प्रतियोगिता, कई प्रजातियों को लुप्त होने की कगार पर ले जाती है। लेकिन आज इनमें से कई विलुप्त हो गई हैं और कई विलुप्त होने की कगार पर हैं। प्रजातियों के विलुप्त होने के खतरे का पहला कारण इनके रहने की जगह लगातार कम होना है। और इसके लिए जिम्मेदार इंसान हैं क्योंकि इनको भोजन और आश्रय प्रदान करने वाले पेड़ों को वह अपने स्वार्थ के लिए लगातार काट रहे हैं। साथ ही खनन और कृषि जैसी मानवीय गतिविधियां भी इसके लिए जिम्मेदार हैं।

वन्यजीव जानवर और पौधे प्रकृति के महत्वपूर्ण पहलू हैं। किसी भी स्तर पर नुकसान होने पर इसके अप्राकृतिक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। वे पारिस्थितिक संतुलन के लिए जिम्मेदार हैं और मानव जाति के निर्वाह के लिए, यह संतुलन बनाए रखना चाहिए। इसलिए सरकार द्वारा संरक्षण प्रयासों के साथ, यह हमारी सामाजिक जिम्मेदारी भी है, कि हम व्यक्तिगत रूप से वन्यजीवों के संरक्षण में अपना योगदान करें।

बाल मुकुन्द ओझा

वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार

D 32, मॉडल टाउन, मालवीय नगर, जयपुर

आज शेखर जोशी की पुण्य तिथि है

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साहित्यकार शेखर जोशी का 90 वर्ष की आयु में आज के दिन ही वर्ष 2022 में निधन हो गया था। उन्होंने गाजियाबाद के वैशाली सेक्टर-4 स्थित पारस अस्पताल में अंतिम सांस ली थी। शेखर जोशी कथा लेखन को दायित्वपूर्ण कर्म मानने वाले सुपरिचित कथाकार थे।

शेखर जोशी की कहानियों का अंगरेजी, चेक, पोलिश, रुसी और जापानी भाषाओं में अनुवाद हुआ है। उनकी कहानी दाज्यू पर बाल-फिल्म सोसायटी द्वारा फिल्म का निर्माण किया गया है।

नौकरी छोड़ बन गए “कोशी के घटवार”

शेखर जोशी का जन्म 10 सितम्बर 1932 को अल्मोड़ा जनपद के सोमेश्वर ओलिया गांव में हुआ था। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा अजमेर और देहरादून से प्राप्त की थी। 12वीं कक्षा की पढ़ाई के दौरान ही उनका चयन ईएमई सुरक्षा विभाग में हो गया। वह 1986 तक विभाग में कार्यरत रहे।

उन्होंने नौकरी से स्वैच्छिक रूप से त्याग पत्र दे दिया। फिर वह लेखन से जुड़ गए और काफी लेखन किया लेकिन उनको प्रसिद्धि ‘कोशी के घटवार’ से मिली थी।

रजनीकांत शुक्ला की वाँल से साभार

देवमंजनी( नारीदमदमी)

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नारी धमनी को आयुर्वेद का पैरासिटामोल कहा जाता है यह बुखार की आयुर्वेदिक औषधि है जो पैरासिटामोल से तेज असर करती है…. नारी_दमदमी

चिकन गुनिया बुखार की नारी दमदमी अचूक औषधि है। जब-जब भी इसका उपयोग किया बहुत ही लाभदायक सिद्ध हुई।

यह बात बिल्कुल सत्य और अनुभूत है नारी दमदमी से बुखार जड़ से चला जाता है इसका बहुतों ने उपयोग किया है इसके पौधे को पानी से साफ करने के बाद में सिलवट पर बांटा जाता है बांटने के बाद इसमें नीम की कोपल और गुटवेल और थोड़ी सी अजवाइन और दो-चार काली मिर्च इनको डाल करके सिलवट पर पीसकर इसका रस एक बर्तन पर कपड़े से छानकर एक गिलास में रख लो ।इसके बाद मिट्टी के दिया को आग में गर्म कर दो ।गर्म करने के बाद में उस दिए को एक बर्तन में रखकर उस दवाई को दिए में डाल दो ।भाप लो ।इसके बाद में उसको पी जाओ और कपड़ा उड़कर सो जाओ।
अनुभव
(राम शरण )जी का अनुभव नारी दमदमी का नाम प्रतापगढ़ जिले में देव मंजनी नाम से जानते हैं बुखार के लिए रामबाण दवा है इसको मैं बुखार में स्वयं पिया है बहुत कड़वी होती है लेकिन बुखार एक ही बार में उतर जाता है बुखार का पता ही नहीं लगता कब बुखार आई कब खत्म हो गई पता ही नहीं लगता।

राधेश्याम पाल जी का कमेंट इसका नाम नामी है। इसे तीन दिन तक काडा बनाकर पीलें एक कप। साल भर तक बुखार नही आएगा।

नारी दमदमी को ताजी पांच ग्राम जड़ सहित पूरे पौधे को लेकर कूट लें । तीन कालीमिर्च पीसकर चार कप पानी में उबाल लें ।जब एक कप बचे तब उसे छान कर सुबह खाली पेट पीने से बुखार दूर हो जाता है। सात खुराक( सात दिन)से अधिक नहीं पीना चाहिए ।यह औषधी गर्म और शुष्क है । इस औषधि के सेवन करने के समय घी का सेवन अधिक करें।
(

यशपाल सिंह, आयुर्वेद रतन

अब पीओके खुद ही पाकिस्तान से अलग हो जाएगा

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समय आ गया है कि पीओके अब स्वतः ही पाकिस्तान से अलग हो जाएगा । पीओके मांगे हिन्दुस्तान । इंडियन एयर चीफ और सेनाध्यक्ष ने पाकिस्तान को बता दिया है कि उसका भूगोल जल्द ही बदलने वाला है । पहली बार खुलासा किया कि सिंदूर ऑपरेशन में भारत ने पाकिस्तान के एफ 16 तथा जेएफ 17 सहित कम से कम 12 विमान नष्ट कर दिए , जबकि भारत के सभी विमान सुरक्षित हैं ।

निश्चित रूप से भारतीय सेना ने बड़ा बयान दिया है । बलूचिस्तान और खैबर पख़्तून के बाद पीओके पाकिस्तान से अलग होने को तैयार है । सिंध सूबे में भी अलगाव की आग सुलग रही है । पाकिस्तान की ताजा हरकतों को देखते हुए जाहिर होता है कि ऑपरेशन सिंदूर पार्ट 2 अब काफी करीब है । दिवाली के बाद भारत यदि एक और जंग में उतरकर पाकिस्तान का नक्शा बदल डाले तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए । सेनाध्यक्ष ने भी कहा है कि पाकिस्तान का वजूद खत्म होने के करीब है ।

अब समझ आ गया है कि ऑपरेशन सिंदूर को ओपन क्यूँ रक्खा गया था । पाकिस्तान का काम तमाम बाकी है , देखते जाइए । इसी बीच दुनिया में बदलते घटनाक्रम को देखिए । पीओके में पांच दिनों से आजादी के लिए घमासान , 25 पाक सैनिकों को बंधक बनाया । बलूचिस्तान और ख़ैबर पख़्तून के बाद पाकिस्तान की नई मुसीबत बना पीओके ।

ऑपरेशन सिंदूर की अपार सफलता के बाद पाकिस्तान में बुरी तरह खलबली मची है । शाहबाज शरीफ़ को अपदस्थ कर कभी भी सत्ता संभाल सकते हैं आसिम मुनीर । पाक जनता में मुनीर के खिलाफ गहरी नाराजगी । मुनीर के अमेरिका के साथ गहराते रिश्तों को लेकर चीन सख्त नाराज । ऑपरेशन सिंदूर अभी भी ओपन , पीओके के हालात को लेकर भारत सजग ।

अब इसी के साथ कुछ दूसरी सुर्खियां देखिए । अमेरिका में ट्रंप सरकार घर में ही घिरी । ट्रंप ने पार्कों सहित दर्जनों सरकारी सार्वजनिक स्थल बंद किए । बेहद गंभीर वित्तीय हालात के चलते अनेक क्षेत्रों में शटडाउन । सात लाख कर्मचारियों को फरलो यानि जबरन अवकाश पर भेजा । ट्रंप और अमेरिकी सीनेट में ठनी । बजट पास न करा पाई ट्रंप सरकार ।डेमोक्रेटिक पार्टी ने ट्रंप की विदेश नीतियों पर जबरदस्त प्रहार किया । कोई भी युद्ध रोकने में ट्रंप नाकाम । नोबल प्राइज कमेटी ने कहा ट्रंप को नोबल देने का कोई प्रस्ताव विचारार्थ नहीं । जाहिर हे जो डोनाल्ड ट्रंप भारत से बेवजह दुश्मनी पाल रहे थे , बार बार पाकिस्तान के कायर सेनापति आसिम मुनीर और बिना रीढ़ के शाहबाज को बुलाकर डींगें हांक रहे थे अब अपने ही घर में घिर गए हैं ।

भारत के कुछ तत्कालीन नेताओं की भीषण गलतियों के कारण पीओके का जन्म पाकिस्तान में हुआ । वरना पीओके तो हमारा कश्मीर ही था । तभी भारतीय जनसंघ ने कश्मीर वापस लेने का स्वप्न देखा था । उस स्वप्न के साकार होने का समय अब आ गया है । यद्यपि भारत में जैसा माहौल आज है उसे देखते पीओके की 1.5 करोड़ आबादी को भारत में मिलाकर आबादी बढ़ाना अपने आप में एक समस्या है । लेकिन सपने साकार किए जाते हैं और पीओके हासिल करने का समय अब करीब है । सच यह है कि पीओके टूटा तो फिर पाकिस्तान का खंड खंड होना एकदम सुनिश्चित है ।

…..कौशल सिखाेला

वरिष्ठ पत्रकार

पहले भी जारी होते रहे हैं सिक्के और डाक टिकट

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कृतिका राजपूत

कुछ लोगों को कल से दौरा पड़ा हुआ है कि आरएसएस के सौ साल होने पर भारत सरकार डाक टिकट और सिक्का कैसे जारी कर सकती है?

तो उनको ये बताना जरूरी है कि भारत सरकार मुहम्मद इकबाल पर डाक टिकट जारी कर चुकी है. वे पाकिस्तान के मूल संस्थापक हैं. जिन्ना को पाकिस्तान का ख्याल बाद में आया. पाकिस्तान ने उन पर दस से ज्यादा डाक टिकट जारी किए हैं. भारत सरकार ने भी उनकी शान में 1988 में राजीव गांधी के समय एक डाक टिकट जारी कर दिया.कांग्रेस सरकार जिन्ना वाली मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद इस्माइल पर भी डाक टिकट जारी कर चुकी है. पाकिस्तान के लिए लंबी लड़ाई लड़ने के बाद वे कभी पाकिस्तान नहीं गए क्योंकि उनका बिजनेस यहीं भारत में था.इसके अलावा मनमोहन सरकार ने हसरत मोहानी पर भी डाक टिकट जारी किया. मजेदार ये है कि पाकिस्तान ने हसरत मोहानी को “पाकिस्तान का संस्थापक” बताते हुए डाक टिकट जारी किया है.सोनिया-मनमोहन सरकार ने दारूल उलूम देवबंद के मौलाना और जमाते इस्लामी के संस्थापक हुसैन अहमद मदनी की याद में 2012 को डाक टिकट जारी किया था.वे भारत को तुर्की के खलीफा के मार्गदर्शन में इस्लामिक देश बनाने के रेशमी रुमाल आंदोलन के कारण गिरफ्तार किए गए थे. वे खिलाफत आंदोलन में ये कहकर आए कि ब्रिटेन ने भारत की हुकूमत मुसलमानों से छीनी है. वे भी भारत में रह गए.वैसे तो नेहरू जी के समय में ही उनको पद्म भूषण दे दिया गया था.

तो हर सरकार की अपनी प्राथमिकता होती है कि किसका सम्मान करें. कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के नेताओं और पाकिस्तान के संस्थापको पर डाक टिकट जारी किया, वर्तमान सरकार ने आरएसएस के सौ साल होने पर.हर पार्टी की सरकार अपने मूल समर्थकों का ख्याल रखती है.

वैसे इंदिरा गांधी ने विनायक दामोदर सावरकर की स्मृति में डाक टिकट जारी किया था. लेकिन वह दूसरी कांग्रेस थी।

कृतिका राजपूत की वाँल से

न्यूज चैनल के रवैये ने बढ़ाया प्रिंट मीडिया में विश्वास

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वंदना शर्मा

आज इलेक्ट्रॉनिक मीडिया बोरिंग और उबाऊ हो गया है। जब भी टीवी खोलो न्यूज़ सुनने के लिए या तो वहां फालतू की बहस चलती रहेगी, जिसमें सब भेड़ बकरी की तरह चिल्लाते रहते हैं। मुद्दा क्या है? समाधान क्या है ?किसी को कोई मतलब नहीं। एक ही खबर को बार-बार दिखाते रहते हैं। पूरे भारत में क्या हो रहा है, क्या समस्या है इन न्यूज़ चैनल को कोई मतलब नहीं। उत्तरी भारत में उत्तर पूर्वी भारत में जैसे असम −मेघालय सिक्किम वहां की तो कोई खबर ही नहीं दिखाते हैं । उत्तर भारतीय क्षेत्र के लोगों की क्या समस्याएं  हैं, उससे  इन्हें कोई मतलब नहीं। बस फिल्म स्टार क्या कर रहे हैं। नेता क्या कर रहे हैं? इन्हीं पर इनका  फोकस रहता है ।

 मजबूरन आज आम आदमी सोचता है कि इनमें इन सबसे अच्छा है तो कोई अखबार पढ़ लो ।सही और प्रामाणिक खबर मिलेंगी ,वह भी तथ्यों के साथ ।नो बकवास कोई मजबूरी भी नहीं ।जबरदस्ती ऊंट −पतंग खबरें सुनने की टीवी पर तो एक ही खबर को इतना बढ़ा− चढ़ाकर दिखाते हैं कि अगर  मुख्य तथ्य सुनने बैठो तो आधा घंटा उनकी बकवास सुनाई पड़ती है अपनी रुचि के अनुसार जब चाहे अखबार को पढ़ो, कहीं भी ले जाओ । बाहर खुले में या कहीं भी बैठकर आप अपनी सुविधा अनुसार पढ़ सकते हैं। हर क्षेत्र की खबरें आती है । विज्ञापन, कला ,साहित्य ,देश −विदेश राजनीति सब जिसको जो अच्छा लगे, वह खबर अपने इच्छा अनुसार पढ़ लो कोई मजबूरी नहीं है कि सारी खबर ही तुम्हें पढ़नी है ।

आज  इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में झूठ भी ज्यादा दिखाते हैं वहां कोई प्रमाणिकता भी नहीं होती है ।आरपरेशन सिंदूर के दौरान एक ने दिखाया कि भारत ने करांची फतह कर लिया तो एक के एंकर चिल्ला रहे  कि भारतीय सेनाएं लाहौर में घ़ुंस गईं।अब दो दिन से चल रहा है कि भारत को संयुक्त राष्ट्र संघ में विटो पावर मिल गई।इस प्रस्ताव पर आयाअमेरिका का विटो निरस्त  हो गया।

 ऑडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशंस (ABC) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी से जून 2025 की अवधि में दैनिक अखबारों की औसत योग्य बिक्री 2.77 प्रतिशत बढ़कर 29,74,148 प्रतियां पहुंच गई, जो पिछले छह माह (जुलाई-दिसंबर 2024) की 28,94,1876 प्रतियों से 8,02,272 प्रतियों की शुद्ध वृद्धि दर्शाती है। यह वृद्धि तीन प्रतिशत के आसपास है।यह आंकड़ा न केवल प्रिंट की लचीलापन को रेखांकित करता है, बल्कि यह भी साबित करता है कि सत्यापित और गहन पत्रकारिता की भूख आज भी बरकरार है।

ABC के महासचिव अदिल कसाद ने एक बयान में कहा, “ये आंकड़े पाठकों के अटूट विश्वास को उजागर करते हैं। समाचार पत्र विश्वसनीय, सत्यापित और विस्तृत जानकारी का मजबूत स्रोत बने हुए हैं।” यह वृद्धि वैश्विक स्तर पर प्रिंट उद्योग के पतन के दौर में भारत के लिए एक सकारात्मक संकेत है, जहां कई देशों में डिजिटल प्लेटफॉर्म्स ने पारंपरिक मीडिया को पीछे धकेल दिया है। लेकिन भारत में, जहां साक्षरता दर बढ़ रही है और आर्थिक विकास तेज हो रहा है, प्रिंट अभी भी सूचना का मुख्य माध्यम बना हुआ है।ABC के आंकड़ों से स्पष्ट है कि शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में प्रिंट की मांग बढ़ी है, खासकर युवा और शिक्षित वर्ग में।

यह वृद्धि महामारी के बाद की रिकवरी का हिस्सा है। 2020 में कोविड-19 ने प्रिंट उद्योग को बुरी तरह प्रभावित किया था, लेकिन 2024 से शुरू हुई सुधार की प्रक्रिया अब गति पकड़ रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह 8 लाख से अधिक की वृद्धि प्रिंट मीडिया की बाजार हिस्सेदारी को 2025 के अंत तक और मजबूत करेगी

सोशल मीडिया पर फेक न्यूज और अफवाहों की बाढ़ के बीच, प्रिंट मीडिया की विश्वसनीयता एक बड़ा कारक बन गई है। ABC रिपोर्ट में उल्लेख है कि पाठक गहन विश्लेषण और सत्यापित तथ्यों की तलाश में समाचार पत्रों की ओर लौट रहे हैं। एक हालिया सर्वे में 70 प्रतिशत से अधिक पाठकों ने प्रिंट को डिजिटल से अधिक भरोसेमंद बताया।

वंदना शर्मा

आओ भिड़ते हैं..

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व्यंग्य

भिड़ने के लिए खुला मैदान है। स्कोप भी है। रोज़गार भी। असरदार भी। खुला टेंडर है। कोई भी आए भिड़ ले। हम रोज भिड़ते हैं। सड़क पर। ऑफिस में। स्कूल में। कॉलेज में। घर में। बाजार में। व्हाट्सएप पर। फेसबुक पर। टीवी पर। अखबारों में। यह दंगल है। यहां हर पल मंगल है।

सूरज ढल रहा था। शाम की आमद हो रही थी। सब अपने घर दौड़ रहे थे। भिड़ने का टाइम हो रहा था? आज किससे और क्यों भिड़ना है। व्हाट्सअप खोला। कॉलोनी के ग्रुप में सब भिड़ रहे थे। कॉलोनी में सफाई नहीं हुई। यह बात रात को याद आई।

भिड़ने के लिए अब चयन होता है। कौन कितना भिड़ सकता है। इसके लिये नाम मांगे जाते हैं। सभी पार्टियां अपने भिड़ंतु को भेजती हैं। टीआरपी बढ़ती है। दंगल शुरू होता है। भिड़ने के लिए कोई आयु वर्ग नहीं है। सभी धर्मों में सीट आरक्षित हैं।

स्कूटी भिड़ गई। तो भिड़ंत। कार रुक गई तो भिड़ंत। भिड़ने के लिए सब्जेक्ट की कमी नहीं। कभी भी किसी से कहीं भी भिड़ा जा सकता है। अब अपना घर ही देखो। पति पत्नी से, पत्नी पति से, बच्चे मां बाप से हर दिन भिड़ते हैं। सास और बहू का तो यह प्रतिदिन का मनोरंजन है। जब कोई नहीं भिड़ता तो पड़ोसी से भिड़ते हैं। यह पेट की आग है। आसानी से नहीं बुझती।

नेता हर दिन भिड़ते हैं। लोकतंत्र है। सबको भिड़ने की छूट है। तंत्र वहां भिड़ता है। लोक सोशल मीडिया पर। दोनों को मिलाकर ही लोकतंत्र बनता है।

भिड़ने के लिए कपड़े फटना जरूरी नहीं। फट जाएं तो परहेज नहीं। योग में वाणी व्यायाम का बहुत महत्व है। बिना बात हंसों। अपने से बात करो। आँखें बंद करो। ध्यान लगाओ। सोचो, किससे भिड़ा जा सकता है? फिर भिड़ जाओ। इससे ज्ञान चक्षु खुलते हैं। शरीर के सारे अवयव ठीक से काम करते हैं।

यह वोकल एक्सरसाइज है। वोकल टू लोकल।

भिड़ना वैश्विक है। पूरा विश्व भिड़ रहा है। 77 मुल्क एक दूसरे से भिड़े पड़े हैं। क्यों कि? भिड़ेंगे नहीं तो शक्ति कैसे पता चलेगी? सीज फायर कैसे होगा। शांति का नोबल कैसे मिलेगा।

जीभ भी हथियार है। परमाणु बम है। इसको धार देते रहना चाहिए। हर जीव जंतु यही करते हैं। आपने सामने आते हैं। भिड़ते हैं। देर तक भौंकते हैं। फिर दुम दबाकर शांत। तू अपने घर। मैं अपने घर।

यह उपमा बुरी लगेगी। लेकिन सच यही है। हम भी ऐसे ही भिड़ते हैं। हमारे ग्रुपों में यही होता है। शाम का फ्री मनोरंजन। मन में रंज न । आज का कोटा पूरा। काम खत्म। भिड़ने के लिए एक चिंगारी ही काफी है। नेता चिंगारी फेंकते हैं। हम भिड़ते हैं। बिना बात। बेबाक।

आज भी भिड़ रहे हैं। कल भी भिड़ेंगे। फ्री का मनोरंजन किसको बुरा लगता है। मुद्दे अनेक हैं। भिड़ने और भिड़ाने वाले चाहिए।

ग्रुप का टाइम हो गया है। भुजाएं फड़फड़ा रहीं हैं। आओ भिड़ते हैं। आप भी आओ। खाल में से बाल निकालते हैं। हवा को वायु कहते हैं। वायु को हवा। किसी की तो हवा गुम होगी।

हा हा हा।

सूर्यकांत द्विवेदी

हरियाणा शिक्षक स्थानांतरण: नीति, प्रक्रिया और उलझन

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(वित्त विभाग की मंजूरी, स्थानांतरण में देरी, दंपत्ति मामलों, मध्य-अवधि स्थानांतरण, ऑनलाइन प्रणाली, नई नियुक्तियाँ, प्रत्यायोजन और निष्पक्षता के बहाने।) 

फाइनेंस विभाग से अतिरिक्त भत्ते की मंजूरी होने के बावजूद फ़ाइलों का बार-बार लंबित रहना कर्मचारियों में भ्रम पैदा करता है। दंपत्ति मामलों में पहले से चल रहे मामलों के बावजूद पुनः प्रक्रिया शुरू होना यह संकेत देता है कि नीति जानबूझकर जटिल बनाई जाती है, जिससे निर्णय बाधित हों। शिक्षा मंत्री ने कहा कि मध्य-अवधि स्थानांतरण का कोई प्रभाव नहीं होगा, लेकिन जमीन पर इसका असर नहीं दिखाई देता। इन सभी कारणों से शिक्षक असंतोष में हैं और वे चाहते हैं कि स्थानांतरण प्रक्रिया स्पष्ट, समयबद्ध और निष्पक्ष हो, ताकि शिक्षा की गुणवत्ता और संतुलन बनाए रखा जा सके। शिक्षा मंत्री ने स्पष्ट किया था कि मध्य-अवधि स्थानांतरण का कोई प्रभाव नहीं होगा, लेकिन वास्तविकता में प्रशासन इसे अक्सर बहाना बनाने के तरीके के रूप में इस्तेमाल करता है। केवल पारदर्शी, समयबद्ध और निष्पक्ष प्रक्रिया ही शिक्षक और छात्रों के हित में स्थिरता और गुणवत्ता सुनिश्चित कर सकती है।

-डॉ. सत्यवान सौरभ

हरियाणा में शिक्षक स्थानांतरण और पदस्थापन की प्रक्रिया वर्षों से विवादों और असंतोष का कारण रही है। शिक्षक और कर्मचारी यह महसूस करते हैं कि नीतियाँ जितनी स्पष्ट घोषणाओं में दिखाई देती हैं, उतनी ही वास्तविकता में जटिल और उलझी हुई हैं। यह मामला केवल कर्मचारियों के हित का नहीं है, बल्कि पूरे शिक्षा तंत्र की पारदर्शिता, निष्पक्षता और गुणवत्ता से जुड़ा हुआ है।

जब वित्त विभाग से किसी पद की स्वीकृति मिल जाती है, तब भी कई बार स्थानांतरण प्रक्रिया में अनावश्यक विलंब हो जाता है। ऐसा बजट संबंधी बाधाओं, दस्तावेजी प्रक्रियाओं या प्रशासनिक स्तर पर बार- बार अनुमोदन की अनावश्यकता के कारण होता है। इस विलंब से केवल प्रक्रिया धीमी नहीं होती, बल्कि नीति के उचित और समय पर पालन में बाधा आती है। कर्मचारी महीनों तक अनिश्चितता में रहते हैं, जिससे उनका मनोबल गिरता है और शिक्षा प्रणाली की दक्षता प्रभावित होती है।

दंपत्ति मामलों में, जहाँ शिक्षक अपने जीवनसाथी के साथ पदस्थापन चाहते हैं, पहले से लंबित मामलों के बावजूद पुनः जांच और अनुमोदन की प्रक्रिया शुरू कर दी जाती है। इससे कर्मचारी अनावश्यक असुविधा में पड़ते हैं और यह नीति की जटिलता को स्पष्ट करता है। इससे यह भी संकेत मिलता है कि प्रशासन कई बार प्रक्रिया को जानबूझकर लंबा खींचता है।

स्थानांतरण रोकने वाले पक्षों की बात करें, तो इसमें कई स्तर शामिल हैं। लंबे समय से किसी स्थान पर तैनात कर्मचारी अपने स्थान से हटना नहीं चाहते। संघ और संगठन अपने सदस्यों के हित की रक्षा के लिए हस्तक्षेप करते हैं। इसके अलावा, प्रशासन भी अनुभवी कर्मचारियों को संवेदनशील पदों पर लंबे समय तक बनाए रखना पसंद करता है। इन सभी कारकों के कारण स्थानांतरण प्रक्रिया अक्सर संतुलित और निष्पक्ष नहीं होती।

शिक्षा मंत्री ने प्रेस में कहा था कि मध्य-अवधि स्थानांतरण लागू होंगे, लेकिन वास्तविकता में इसका कोई प्रभाव नजर नहीं आता। यह विरोधाभास कर्मचारियों में भ्रम और असंतोष पैदा करता है। घोषणाओं और वास्तविक कार्यान्वयन के बीच यह अंतर यह संदेश देता है कि केवल बयानों से नीति लागू नहीं होती।

अन्य विभागों में ऑनलाइन स्थानांतरण प्रणाली सहज रूप से लागू हो रही है, जबकि शिक्षा विभाग में यह प्रक्रिया धीमी और जटिल बनी हुई है। इसका कारण केवल तकनीकी कठिनाई नहीं है। प्रशासनिक प्रतिरोध, पारंपरिक कार्य संस्कृति और स्थानीय अधिकारियों की प्राथमिकताएँ इसमें योगदान करती हैं। जब तक सभी पक्ष पारदर्शिता और समयबद्ध कार्यवाही सुनिश्चित नहीं करेंगे, ऑनलाइन प्रणाली प्रभावी नहीं हो सकती।

नई नियुक्तियों के समय पर्याप्त स्थान उपलब्ध होने के बावजूद स्थानांतरण में देरी होती है। इससे प्रश्न उठता है कि क्या कर्मचारियों को जानबूझकर दूर भेजा जा रहा है या कुछ को सुविधा दी जा रही है। आने वाले वर्ष में जनगणना के कारण स्थानांतरण न होने की संभावना इस प्रश्न को और गंभीर बना देती है।

प्रत्यायोजन की प्रथा भी समस्या बनी हुई है। इसके तहत अपने कर्मचारियों को विशेष पदों या स्थानों पर समायोजित किया जाता है। यह न केवल पारदर्शिता और निष्पक्षता पर प्रश्न उठाता है, बल्कि पक्षपात और प्रशासनिक भेदभाव को भी बढ़ावा देता है। यदि समय रहते इसे रोका और सुधारात्मक कदम उठाए जाएँ, तो शिक्षक और विभाग दोनों को लाभ होगा।

इन सभी जटिलताओं के बावजूद शिक्षक समुदाय चाहता है कि नीति स्पष्ट, समयबद्ध और निष्पक्ष हो। केवल घोषणाओं और प्रेस विज्ञप्तियों से समाधान नहीं होगा। आवश्यकता है कि प्रशासन ऑनलाइन प्रणाली को प्रभावी बनाए, पक्षपात और व्यक्तिगत लाभ पर आधारित निर्णयों को रोके। शिक्षक और छात्र यह विश्वास रखें कि स्थानांतरण प्रक्रिया शिक्षा प्रणाली की गुणवत्ता और संतुलन बनाए रखने के लिए है, न कि किसी व्यक्तिगत लाभ के लिए।

हरियाणा में शिक्षक स्थानांतरण नीति केवल जटिल और उलझी हुई नहीं है, बल्कि इसका कार्यान्वयन भी संतुलित और निष्पक्ष नहीं है। प्रशासनिक देरी, अनावश्यक अनुमोदन, पक्षपात और तकनीकी बाधाओं के कारण शिक्षक असंतोष में हैं। इसके परिणामस्वरूप शिक्षा प्रणाली पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

सरकार को चाहिए कि वह स्पष्ट नियमावली और नीति लागू करे, समयबद्ध और पारदर्शी प्रक्रिया सुनिश्चित करे, ऑनलाइन प्रणाली को प्रभावी बनाए, और पक्षपात तथा व्यक्तिगत लाभ पर आधारित निर्णयों को रोके। तभी शिक्षक अपने कार्य में संतुष्ट रह पाएँगे और छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल सकेगी। अन्यथा यह प्रक्रिया केवल विवाद, असंतोष और भ्रम का स्रोत बनी रहेगी।

हरियाणा सरकार के सामने यह चुनौती है कि वह शिक्षक स्थानांतरण प्रक्रिया में स्थिरता, न्याय और पारदर्शिता सुनिश्चित करे। तभी शिक्षा प्रणाली का वास्तविक उद्देश्य – गुणवत्ता, संतुलन और विद्यार्थियों के हित – पूरा हो सकेगा।

हरियाणा में शिक्षक स्थानांतरण नीति केवल जटिल और उलझी हुई नहीं है, बल्कि इसका कार्यान्वयन भी संतुलित और निष्पक्ष नहीं है। वित्त विभाग से अनुमोदन मिलने के बावजूद विलंब, दंपत्ति मामलों में पुनः प्रक्रिया, और प्रत्यायोजन के माध्यम से पक्षपात जैसी समस्याएँ लगातार बनी हुई हैं। शिक्षा मंत्री ने स्पष्ट किया था कि मध्य-अवधि स्थानांतरण का कोई प्रभाव नहीं होगा, लेकिन वास्तविकता में प्रशासन इसे अक्सर बहाना बनाने के तरीके के रूप में इस्तेमाल करता है। केवल पारदर्शी, समयबद्ध और निष्पक्ष प्रक्रिया ही शिक्षक और छात्रों के हित में स्थिरता और गुणवत्ता सुनिश्चित कर सकती है।

-डॉ. सत्यवान सौरभ

पशु संरक्षण की चुनौतियां

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 बाल मुकुन्द ओझा

दुनिया भर में हर साल चार अक्टूबर को विश्व पशु कल्याण दिवस के रूप में मनाया जाता है। हमारे देश में पशु संरक्षण की सुदीर्घ और स्वस्थ परम्परा रही है जिसका निर्वहन हम आदिकाल से कर रहे है। यह दिवस जानवरों से प्रेम करने वाले और उन्हें सम्मान देने वाले सभी लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए मनाया जाता है। यह पशु प्रेमी दिवस के नाम से भी जाना जाता है। इस दिवस का आयोजन 1931 ईस्वी परिस्थिति विज्ञानशास्रीयों के सम्मलेन में इटली के शहर फ्लोरेंस में शुरू हुआ था। इसका उद्देश्य विलुप्त हुए प्राणियों की रक्षा करना और मानव से उनके संबंधो को मजबूत करना था। आदिकाल से ही पशुओं और मनुष्य का संग रहा है। जंगली पशुओं को पालतू बनाया गया । उनसे फिर काम लिया गया। पालतू पशु भी घर परिवार के एक सदस्य की तरह ही हो जाता है। आज इसके विपरीत हो रहा है। हाल ही कुछ असामाजिक तत्वों ने राजस्थान के नेछवा में एक नंदी को गाड़ी से कुचल कर मार डाला। देश के अन्य भागों से भी पशुओं पर अत्याचार की ख़बरें आये दिन पढ़ने को मिलती है।

इस आयोजन का उद्देश्य पशुओं के कल्याण के मानक में अपेक्षित सुधार लाना है। विश्व के सभी देशों में अलग-अलग तरह से इस दिवस को मनाया जाता है। इस वर्ष 2025 की थीम पशु बचाओं और ग्रह रक्षा रखी गई है। इस दिवस का मूल उद्देश्य विलुप्त हुए प्राणियों की रक्षा करना और मानव से उनके संबंधो को मजबूत करना है। जन जागरण और जन शिक्षण के माध्यम से पशुओं को संवेदनशील प्राणी का दर्ज़ा देने के लिए समाज के सभी वर्गों का योगदान आवश्यक है। पशुओं के प्रति सम्वेदना के मामले में हम भारतीय सौभाग्यशालीं है क्योंकि हमारे यहाँ जीवन मूल्यों के साथ पशुओं के कल्याण को जोड़ा है। हमारे पौराणिक आख्यानों में जो दशावतार हैं उनमें से दो वराह और नृसिन्ह अवतार भी थे।

इस दिवस को मनाने के कई अन्य कारण भी है। इनमें जानवरों के प्रति प्रकट किये जाने वाले घृणास्पद व्यवहार, आवारा कुत्तों और बिल्लियों के प्रति व्यवहार, उनका अमानवीय व्यापार आदि प्रमुख कारण है। इसके अलावा प्राकृतिक आपदा के समय भी इन जानवरों के प्रति दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता था और उनकी सुरक्षा के प्रति लापरवाही बरती जाती थी। पशु-उत्पीड़न कोई नई समस्या नहीं है । सदियों से पशुओं के साथ बुरा व्यवहार होता आया है। इतिहास की पुस्तकों से पता चलता है कि मानव का पहला साथी कुत्ता बना क्योंकि इसकी स्वामिभक्ति पर आज तक किसी प्रकार का संदेह व्यक्त नहीं किया गया। जैसे-जैसे मानव घर बसाकर रहने लगा, उसे खेती करने की आवश्यकता हुई वैसे-वैसे पशुओं का महत्व भी बढ़ता गया । आर्य संस्कृति में गौ-जाति का बड़ा महत्व था, जिसके पास जितनी अधिक गाएँ होती थीं वह उतना ही प्रतिष्ठित और संपन्न माना जाता था । ऋषि-मुनि भी गौ पालते थे, वनों में घास की उपलब्धता प्रचुर थी। समय के साथ-साथ मनुष्य की आवश्यकताओं का विस्तार हुआ, तब उन्होंने गाय, भैंस, बैल, बकरी, ऊँट, घोड़ा, गदहा, कुत्ता आदि पशुओं को पालना आरंभ किया। युद्ध के मैदानों में घोड़ों और हाथियों की उपयोगिता अधिक थी। राजे-महाराजे इन पशुओं को बड़ी संख्या में पालते थे । मशीनीकृत वाहनों के आविष्कार के पहले घोड़ा सबसे तेज गति का संदेशवाहक था। चाहे वस्तुओं की दुलाई हो अथवा मनुष्यों की हमारे घरेलू पशु इसके एकमात्र साधन थे। ग्रामीण भारत में बैलगाड़ियों की उपयोगिता आज भी बरकरार है।

इतनी सारी उपयोगिताओं के बावजूद पशुओं का उत्पीड़न मानवीय बुद्धिमत्ता की कसौटी पर खरा नहीं उतरता। घरेलू पशुओं को मल-मूत्र से युक्त कीचड़ में बैठने तथा खड़े होने के लिए विवश कर दिया जाता है। गाड़ियों में हाँके जाने वाले पशुओं को प्राय इतनी निर्दयता से पीटा जाता है मानो वे निष्प्राण वस्तुएँ हों। हमें हमेशा पशु पक्षियों के प्रति प्रेम और सद्भाव से पेश आना चाहिए । वह भी हमारी तरह खुशी और दुःख के भाव महसूस करतें हैं। वे बोल नहीं सकतें पर उनकी अपना बोली है। कहीं लोग पक्षी पालतें हैं। पिंजरें में पक्षियों को रखकर पालना गलत है। पक्षी स्वभाव से आजाद है उनको आजाद छोड़ना ही सही होगा है। यदि हम किसी पीड़ित जानवर को देखें तो उसकी मदद करनी चाहिए। पशुवों के चिकित्सक के पास ले जाकर उसकी इलाज करवाना बड़े पुण्य का काम होगा। पशु पक्षी भी पीड़ा महसूस करतें हैं। बहुत कम लोगों में पशु पक्षी के प्रति प्रेम भावना जीवित हैं। अगर किसी में यह न भी हो तो कम से कम उन्हें तंग न करें। किसी छोटे बच्चे को किसी प्राणी पर अन्याय करते हुए देखें तो उन्हें रोकें और समझाएं।

बाल मुकुन्द ओझा

वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार

D 32, मॉडल टाउन, मालवीय नगर, जयपुर

राहुल गांधी ने फिर भारत में लोकतंत्र को खतरा बता दिया

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कोलंबिया में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने फिर से भारत में लोकतंत्र को खतरा बता दिया ? विदेश गए राहुल की कोई खबर इस बार नहीं आ रही थी । हमें लगा कि सैम पित्रोदा ने खबरों को अतीत के परिणाम देखते हुए न रोक लिया हो । बात यह है कि विदेश में राहुल जब अपनी निर्वाचित सरकार के खिलाफ बोलते हैं और लोकतंत्र की दुहाई देते हैं तो स्वदेश में मजाक ही उड़ाया जाता है ।

लेकिन कोलंबिया की पहली ही सभा में उन्होंने भारतीय लोकतंत्र के तमाम अंगों को फेल बता दिया । भारतीय सिस्टम और सरकार के विभिन्न संवैधानिक अंगों को निकम्मा बताते हुए राहुल ने वही सब कुछ दोहराया जो हर बार हर साल दोहराते आ रहे हैं । यही उम्मीद थी । हां हमेशा की तरह भारत से तुलना करते हुए उन्होंने चीन की खूब सराहना की ।

अब राहुल तो खैर राहुल हैं । उनकी पार्टी के मणिशंकर अय्यर हों , पी चिदम्बरम , दिग्विजय सिंह या कैसी वेणुगोपाल ! ये सभी कांग्रेस को डुबोने में क्यूँ लगे हैं ? इसके लिए तो पवन खेड़ा , अभय दुबे , सुप्रिया श्रीनेत और अनिल शर्मा ही काफी हैं ? वैसे सहयोगी गठबंधन के संजय राउत और पूर्व सहयोगी संजय सिंह का उद्देश्य भी इतना ही है कि ऐ सनम , हम बचें न बचें कम से कम वे तो डूब ही जाएं ?

बचते बचाते शशि थरूर , मनीष तिवारी , गुलामनबी आदि तो दामन बचाकर निकल ही लिए । अब देखिए सरकार ने पुनः शशि थरूर और कनिमोझी को संसदीय समितियों के खास पद प्रदान किए हैं । पता नहीं कि कांग्रेस पार्टी में कोई थिंक टैंक अब बचा है या नहीं ? होगा ही नहीं और होता भी तो सोनिया , राहुल , प्रियंका की तिगड़ी से पूछे बिना किस थिंक टैंक में इतनी हिम्मत बची है कि कोई फैसला विवेकपूर्वक कर लिया जाए ?

जरा देखिए ? उदित राज जैसे धूर्त और मूर्ख नेता कैसे कैसे बयान दे रहे हैं ? वे बड़े अधिकारी थे कभी , कितने घटिया अधिकारी रहे होंगे , सबको समझ आ चुका है । उदित राज का कोई बयान देख लीजिए बेहद सड़ा गला होगा । इतने घटिया आदमी हैं कि एक बार तो खुद के हिन्दू परिवार में जन्म लेने पर भी अफसोस प्रकट कर चुके हैं । ऐसे में क्या कहें राहुल गांधी को । कैसे कैसे नगीने प्रवक्ता बनाकर सजा दिए गए हैं ।

वैसे पार्टी को क्या जरूरत है ऐसे नगीने बैठाने की ? राहुल बड़े नेता हैं , समय समय पर होने वाले उनके विदेशी दौरे ही काफी हैं ? देश में रहें तो आग , विदेश जाएं तो आग । वही गिने चुने विषय , वे ही बासी शब्द ? अब अंबानी अडानी का जप तो छोड़ दिया , भारत के तमाम उद्योगपतियों पर बरसने लगे हैं । इस बार चार देशों का दौरा है तो अपनी फितरत बनाए रखिए । इन यात्राओं से सत्ता तो नहीं मिलेगी , उसके लिए देशवासियों के वोट चाहिए । छींका टूट जाए , बिल्ली का ऐसा भाग्य तो अभी पढ़ा नहीं किसी ने ? तो अपनी खरखरी और ख़टपटी बनाए रखिए ।

…..कौशल सिखौला

वरिष्ठ पत्रकार