सुप्रीम कोर्ट में एक वकील ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बीआर गवई पर हमला करने की कोशिश की। सीजेआई की अध्यक्षता वाली पीठ के वकीलों द्वारा मामलों की सुनवाई करने के दौरान ये घटना हुई । सूत्रों के अनुसार, वकील मंच के पास गया और अपना जूता निकालकर मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बीआर गवई पर फेंकने की कोशिश की। हालाँकि, अदालत में मौजूद सुरक्षाकर्मियों ने समय रहते हस्तक्षेप किया और वकील को बाहर निकाल दिया। बाहर निकलते समय वकील को यह कहते सुना गया कि सनातन का अपमान नहीं सहेंगे। मुख्य न्यायाधीश ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और अदालत में मौजूद वकीलों से अपनी दलीलें जारी रखने को कहा।
उन्होंने कहा इस सब से विचलित न हों। हम विचलित नहीं हैं। ये बातें मुझे प्रभावित नहीं करतीं। यह घटना संभवतः खजुराहो में भगवान विष्णु की सात फुट ऊँची सिर कटी मूर्ति की पुनर्स्थापना से संबंधित एक पूर्व मामले में मुख्य न्यायाधीश गवई की टिप्पणियों से प्रेरित थी। उस मामले को खारिज करते हुए उन्होंने कहा था जाओ और देवता से ही कुछ करने को कहो। तुम कहते हो कि तुम भगवान विष्णु के कट्टर भक्त हो। तो अभी जाकर प्रार्थना करो। यह एक पुरातात्विक स्थल है और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को अनुमति वगैरह देनी होगी।
इस टिप्पणी से सोशल मीडिया पर हंगामा मच गया था और कई लोगों ने मुख्य न्यायाधीश पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने का आरोप लगाया था। दो दिन बाद खुली अदालत में इस विवाद पर बोलते हुए, मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा कि उनका कोई अनादर करने का इरादा नहीं था। उन्होंने कहा कि मैं सभी धर्मों का सम्मान करता हूँ… यह सब सोशल मीडिया पर हुआ।” केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मुख्य न्यायाधीश का समर्थन करते हुए कहा था कि सोशल मीडिया पर अक्सर घटनाओं पर प्रतिक्रियाओं को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है।
दिल दिल है। दिल टूटता है। बिखरता है। फटता है। हंसता है। रोता है। खेलता है। फेंकता है। पागल है। काजल है। बादल है। दिल सजना है। सजनी है। दिल सावन है। भादो है। मौसम है। हर पल बदलता है। दिल मजबूरी है। कमजोरी है। लाचारी है। दिल पास है। फेल है। साफ है। छोटा सा दिल। और सौ झमेले।
दिल न होता। हम न होते। न मोहब्बत होती। न जंजाल होते। न शादी होती। न बच्चे होते। न रोते। न हँसते। सारी गलती बड़े बुजुर्गों की है। न सेब खाते। न यह सब होता। अब क्या करें? कुछ नहीं हो सकता। दिल दीवाना है। मस्ताना है। दिल चोर है। दिल मोर है। दिल आसना है। क्या कोसना है? बीत गई। सो बीत गई।
दिल ऐसे ही नहीं बिगड़ा। सेब ने बिगाड़ा। सब ने मना किया..मत खा मत खा। लेकिन बड़े बुजुर्ग माने नहीं। अब भुगतो। दिल बैठ गया। राह चलते अटक गया। अटक गया तो अटक गया। कबूतर संदेश ले जाने लगे। फिर चिट्ठियां जाने लगीं। अब एसएमएस जाने लगे। दिल तो पागल हो। नहीं माना। दिल उड़ने लगा। घूंघट उड़ गया। चुनरी आसमान में फैल गई। बेटे बेटियों का दिल परवाज हो गया।
दिल दूध की तरह है। उबालोगे तो उबलेगा। यह तूफान है। तटबंध टूटेंगे ही। दिल करता है। दिल मरता है। वहीं खपता है। दिल से दुनिया है। दिल से दल। दिल दाल है। पहले साफ की जाती है। फिर पकाई जाती है। फिर खाई जाती है। इसमें प्रोटीन है। दिल में कोकीन है। दिल लगे तो मुश्किल। न लगे तो मुश्किल। सब सेब की देन।
दिल कभी बूढ़ा नहीं होता। दिल कभी सीधा नहीं होता। दिल के राज ताशकंद समझौते की तरह है। आदमी चला जाता है। दिल यहीं छोड़ जाता है। अपनों में भटकता है। उनके लिए रोता है। फिल्मों ने तो दिल का अंबार लगा दिया। भइया मुकेश ऐसा गा गये। दिल अभी भी रोता है।
कवि शायरों ने दिल को नीलाम कर दिया। बीते वक्त सबका दिल फटता था। क्या करे? मुकेश को सुनता था। दिल और जोर से चीख पड़ता था। आज बेफिक्री है। दिल रोता नहीं। हंसता है। तू नहीं तो और सही। डेट और लिव इन इसी के पर्यायवाची हैं।
दिल कब दस्तक दे दे। पता नहीं। पहले आसानी से कुंडी नहीं खुलती थी। अब खट खट की आवाज गांव में भी सुनी जाती है। ऑन लाइन दिल बिकता है। फटता है। सच मानिए। दिल ने बहुत तरक्की की है। दिल की अपनी दुनिया है। दुनिया उसी में कैद है। दिल की रेंज देखकर बाजार बना। आइटम बने। दो दिलों से काम नहीं चला। तो असंख्य दल बने। वोटर के दिल का क्या पता? हो सकता है, वोट मिल जाए?
दिल दलदल है। हर आदमी धंसता जरूर है। तभी हार्ट फेल होने लगे। खेलते, नाचते, गाते लोग जाने लगे। पीस मेकर भले न हो। पेसमेकर अवश्य है। क्या करें? दिल का मामला है। दिल नाजुक है। कभी भी टूट सकता है। न वो सेब खाते न यह दुर्गति होती। एक गलती कितनी भारी पड़ गई। अब कुछ नहीं हो सकता। कांग्रेस नहीं आएगी। दल हो या दिल, इसी से काम चलाओ। दिल दीवाना बिन सजना के माने न!
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पटना मेट्रो के पहले चरण का उद्घाटन किया। इसमें 3.6 किमी एलिवेटेड खंड शामिल है । । यह परियोजना पटना में यातायात भीड़ को कम कर कनेक्टिविटी में सुधार लाएगी। इसका किराया ₹15 से ₹30 है । यह मेट्रो प्रतिदिन सुबह आठ बजे से रात 10 बजे तक चलेगी। इसमें यात्रियों की सुरक्षा और सुविधा पर विशेष ध्यान दिया गया है। पटना मेट्रो के पहले चरण के उद्घाटन के साथ ही, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पटना जंक्शन समेत छह भूमिगत मेट्रो स्टेशनों की नीव रखी गई। तीन डिब्बों वाली पटना मेट्रो ट्रेन में लगभग 138 यात्री बैठ सकते हैं, जबकि प्रति ट्रिप 945 अतिरिक्त यात्री खड़े होकर यात्रा कर सकते हैं। पटना मेट्रो के उद्घाटन से शहर के परिवहन नेटवर्क में आमूल-चूल परिवर्तन आएगा, यातायात की भीड़ कम होगी और पटना में कनेक्टिविटी में सुधार होगा।
आईएसबीटी से जीरो माइल तक का किराया 15 रुपये होगा, जबकि न्यू आईएसबीटी से भूतनाथ मेट्रो स्टेशन तक का किराया 30 रुपये होगा। मेट्रो प्रतिदिन चलेगी, फिलहाल सुबह 8 बजे से रात 10 बजे तक, हर 20 मिनट में ट्रेनें चलेंगी। प्रत्येक ट्रेन में महिलाओं और दिव्यांग यात्रियों के लिए 12 आरक्षित सीटें भी होंगी। पटना मेट्रो ने यात्रियों की सुरक्षा और सुविधा पर विशेष ध्यान दिया है। प्रत्येक कोच में 360-डिग्री सीसीटीवी कैमरे, आपातकालीन बटन और माइक्रोफ़ोन लगे हैं, जिनसे यात्री सीधे मेट्रो चालक से संवाद कर सकते हैं
इसके अतिरिक्त, कोचों में मोबाइल फ़ोन और लैपटॉप चार्जिंग पॉइंट, आगे की ओर आपातकालीन द्वार और बेहतर सुरक्षा के लिए दो हिस्सों में बंटे स्लाइडिंग दरवाज़े भी हैं। बिहार की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाते हुए, कोचों को मधुबनी पेंटिंग और गोलघर, महावीर मंदिर और बुद्ध जैसे प्रतिष्ठित स्थलों के भगवा रंग में चित्रित रूपांकनों से सजाया गया है।
अमेरिकीराष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रयासों से ग़ज़ा को लेकर नई शांति योजना घोषित की गयी है। कहा जा रहा है कि राष्ट्रपति ट्रंप व इस्राईली प्रधानमंत्री नेतन्याहू द्वारा संयुक्त रूप से प्रस्तावित यह योजना ग़ज़ा में सैन्य संघर्ष को समाप्त करने और इस क्षेत्र में दीर्घकालिक शांति स्थापित करने के लिए बनाई गई है। इस नई शांति योजना के अंतर्गत मुख्य रूप से ग़ज़ा को “आतंक मुक्त” और उग्रवाद-मुक्त क्षेत्र बनाने का लक्ष्य है, जिससे पड़ोसी देशों के लिए कोई ख़तरा न रहे और वहां पुनर्निर्माण व विकास कार्य शुरू हो सके। इस प्रस्तावित योजना के तहत इस्राईल अपनी सेना को चरणबद्ध तरीक़े से ग़ज़ा से हटाएगा, बशर्ते दोनों पक्ष यानी इस्राईल और हमास इस योजना को स्वीकार करें। सार्वजनिक रूप से दोनों पक्षों द्वारा इस योजना को स्वीकार करने के 72 घंटे के भीतर सभी बंधकों की रिहाई की बात कही गई है। प्रस्तावित समझौते के अनुसार हमास के क़ब्ज़े में रखे गये बंधकों की रिहाई के बाद इस्राईल भी क़रीब 250 फ़िलस्तीनी कैदियों सहित अन्य सैकड़ों गिरफ़्तार ग़ज़ा वासियों को रिहा करेगा। इसके अतिरिक्त ग़ज़ा में अस्थायी रूप से एक अंतरराष्ट्रीय शासी बोर्ड बनेगा, जिसकी अध्यक्षता स्वयं डोनाल्ड ट्रंप करेंगे। इसमें पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर भी शामिल होंगे। शांति योजना के अनुसार हमास के जो सदस्य शांतिपूर्वक साथ रहने की शपथ लेंगे उन्हें तो मुआफ़ी दी जाएगी जबकि अन्य को सुरक्षित निकास या किसी इच्छुक देश में बसने का विकल्प मिलेगा।
अमेरिका व इस्राईल द्वारा ग़ज़ावासियों पर ‘थोपी’ जा रही इस शांति योजना पर मुस्लिम देशों के रवैये में एक राय नहीं है। सऊदी अरब, जॉर्डन, संयुक्त अरब अमीरात, क़तर, मिस्र, इंडोनेशिया और पाकिस्तान जैसे कई अन्य ‘अमेरिका परस्त ‘ मुस्लिम राष्ट्रों ने इन शांति प्रयासों का समर्थन किया है तो ईरान और तुर्की जैसे देश इस योजना को ‘अधूरी’ और फ़िलिस्तीन के हक़ में अपर्याप्त मान रहे हैं। इन देशों का मानना है कि इस योजना से फ़िलिस्तीनी स्वायत्तता और हमास की भूमिका सीमित हो जाती है। ईरान का मत है कि वह ‘न्यायपूर्ण, संतुलित और स्थायी समाधान’ के पक्ष में है और ग़ज़ा व फ़िलिस्तीन संबंधी किसी भी योजना में फ़िलिस्तीनी जनता की इच्छाओं व आकांक्षाओं की अनदेखी उचित नहीं है। ईरान ने इस योजना को ‘चौंकाने वाला’ और “फ़िलिस्तीनियों के जबरन विस्थापन का प्रयास” बताया है। जबकि कई अरब देश ऐसे भी हैं जिन्होंने अमेरिका के नेतृत्व वाली इस प्रक्रिया के स्थायित्व को लेकर संदेह ज़ाहिर किया है। इस योजना को लेकर नेतन्याहू का मानना है कि इस योजना से उनके युद्ध के उद्देश्य पूरे होंगे। इस योजना के लागू होने से बंधकों की वापसी, हमास की सैन्य क्षमताओं का विघटन, और भविष्य में ग़ज़ा से कोई ख़तरा न रहना सुनिश्चित हो सकेगा। ख़बरों के अनुसार हमास ने भी दूर दृष्टि का परिचय देते हुये इस नई शांति योजनसा को स्वीकार कर लिया है।
ऐसे में एक बड़ा सवाल यह है कि ग़ज़ा जनसंहार के दोषी व ग़ज़ा शांति को लेकर पूरी दुनिया की अनदेखी करने वाले नेतेनयाहू को आख़िर इस नई शांति योजना के लिये अचानक क्यों राज़ी होना पड़ा। यह समझने के लिये हमें पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र महासभा के सत्र पर नज़र डालनी होगी। दरअसल न्यूयार्क स्थित संयुक्त राष्ट्र महासभा में पिछले दिनों उस समय अजीब दृश्य देखने को मिला जब विश्व के इस सबसे प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मंच से इस्राईल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू अपना भाषण देने के लिये जैसे ही खड़े हुये उसी समय उनके भाषण का विश्व के अधिकांश देशों द्वारा बहिष्कार किया गया। 193 देशों की इस महासभा में सैकड़ों देशों के प्रतिनिधि व राजनयिक अपनी कुर्सियां छोड़कर सदन से बाहर चले गए जिससे महासभा का काफ़ी बड़ा हिस्सा ख़ाली रह गया। उस समय नेतन्याहू के चेहरे पर परेशानी व असहजता के भाव साफ़ नज़र आ रहे थे। निःसंदेह यह दृश्य इस्राईल की वर्तमान आक्रामक नीतियों, विशेषकर उसके द्वारा ग़ज़ा में जारी सैन्य अभियान और इससे होने वाले जनसंहार, के प्रति वैश्विक असहमति व आक्रोश का प्रतीक बन था। इस घटना के उस व्यापक निहितार्थ को भी समझने की ज़रुरत है जिसमें इस्राईल व नेतन्याहू के सन्दर्भ में अंतर्राष्ट्रीयक़ानून, नैतिकता, राजनीति और भविष्य की वैश्विक व्यवस्था पर सवाल खड़े होते हैं। नेतन्याहू के भाषण के दौरान केवल अरब, मुस्लिम और अफ़्रीक़ी देशों के प्रतिनिधि ही बाहर नहीं गए, बल्कि अनेक यूरोपीय व पश्चिमी देशों के राजनयिकों ने भी नेतन्याहू के भाषण के विरोध में मंच छोड़ दिया। दरअसल यह बहिष्कार इस्राईल की अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर बढ़ती अलगाव और दुनिया की नज़रों में इस्राईल के ‘अछूत ‘ बनने की स्थिति की ओर संकेत करता है।
नेतन्याहू इस समय अमेरिका संरक्षित विश्व के सबसे बड़े ‘अपराधी ‘ राष्ट्राध्यक्ष व एक बदनाम नेता के रूप में स्थापित हो चुके हैं। उनपर ग़ज़ा युद्ध में जनसंहार व युद्ध अपराध करने के आरोप हैं। इस व्यक्ति ने खाने के लिये लाइन में लगे भूखे लोगों पर, अस्पतालों पर शरणार्थी कैम्प्स पर अनेक बार बमबारी करवाई है। अंतर्राष्ट्रीय अदालत ने उसके विरुद्ध गिरफ़्तारी वारंट जारी कर रखा है। नेतन्याहू के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक अदालत ने नवंबर 2024 में वारंट जारी किया है जिसमें उसे ‘युद्ध अपराध’ और ‘मानवता के ख़िलाफ़ अपराध’ का आरोपी ठहराया गया है । इन आरोपों में भुखमरी को हथियार बनाना, नागरिकों की हत्या करवाना , उत्पीड़न, और अन्य अमानवीय कृत्य शामिल हैं। नेतन्याहू अंतर्राष्ट्रीय अदालत के सभी 125 सदस्य देशों की यात्रा के समय क़ानूनी तौर पर हिरासत में लिये जा सकते हैं। उधर ग़ज़ा व फ़िलिस्तीन की धरती को क़ब्ज़ा करने की फ़िराक़ में अपनी गिद्ध दृष्टि लगाये बैठे नेतन्याहू को दुनिया के कई प्रमुख देश एक के बाद एक झटके देते जा रहे हैं। मिसाल के तौर पर जिस फ़िलिस्तीन को इस्राईल स्वतंत्र राष्ट्र मानने को तैयार नहीं उसी फ़िलिस्तीन को फ़्रांस , यूके, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया जैसे कई पश्चिमी देशों ने गत दिनों स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दे दी।
दरअसल संयुक्त राष्ट्र महासभा में पिछले दिनों नेतन्याहू के भाषण का विश्व के अधिकांश देशों द्वारा किये गये बहिष्कार की घटना ने जहां नेतन्याहू को ट्रंप द्वारा प्रस्तावित नई शांति योजना को स्वीकार करने के लिये मजबूर किया वहीँ कई प्रमुख पश्चिमी देशों द्वारा फ़िलिस्तीन को राष्ट्र के रूप में मान्यता दिया जाना भी नेतन्याहू के लिये एक बड़ा झटका साबित हुआ है। वास्तव में अपनी जनसंहारक नीतियों से नेतन्याहू इस्राईल को दुनिया की नज़रों में एक अछूत देश बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहे थे।
देश में हर वर्ष दो से आठ अक्टूबर तक मद्य निषेध सप्ताह के आयोजन की औपचारिकता का निर्वहन किया जाता है। इस अवसर पर पोस्टर, प्रदर्शनी, भाषण, मौखिक वार्ता ,विभिन्न प्रतियोगिताएं आयोजित कर छात्रों और आम जनों को शराब की बुराइयों से अवगत कराया जाता है। साथ ही मद्यपान, अन्य मादक द्रव्यों, पदार्थ तथा नशीली दवाओं के दुरुपयोग की रोकथाम हेतु समुदाय में व्यापक जनमत जाग्रत करने का प्रयास किया जाता है। मगर हमारे लाख प्रयासों के बावजूद इस पर पूरी तरह नकेल नहीं कसी जा सकी है।
नशाखोरी इस सदी की सबसे बड़ी समस्या है जिसमें शराब का नशा प्रमुख है। आज युवा वर्ग शराब के नशे में खोता जा रहा है। शराब जैसे तन मन और परिवार को खोखला करने वाली की लत उन्हें बर्बाद कर रही है। शुरू में युवा शौक के तौर पर शराब का सेवन करता है और बाद में नशे की मांग पूरी करने के लिए तस्करी और गैर सामाजिक कार्य के कारोबार में फंस जाता है। आजकल के बदलते लाइफस्टाइल में हमारे देश में नशा एक ऐसा अभिशाप बन कर उभर रहा है जो हमारे युवाओं को तेजी से अपनी गिरफ्त में लेता जा रहा है। साल-दर-साल इन युवाओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है। युवाओं में शराब जैसे खतरनाक नशे के बढ़ते चलन के पीछे बदलती जीवनशैली, अकेलापन, बेरोज़गारी और आपसी कलह जैसे अनेक कारण हो सकते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि शराब की वजह से हर साल करीब 30 लाख लोगों की मौत होती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि शराब से सेवन से हर साल दुनिया भर में 20 में से लगभग एक मौत शराब पीने के कारण होती है। शराब पी के गाड़ी चलाने, शराब के कारण होने वाली हिंसा और दुर्व्यवहार और कई तरह की बीमारियों और विकारों के कारण यह मौत होती है। एक सरकारी सर्वेक्षण के अनुसार भारत में पांच में से एक शख्स शराब पीता है। सर्वे के अनुसार 19 प्रतिशत लोगों को शराब की लत है। जबकि 2.9 करोड़ लोगों की तुलना में 10-75 उम्र के 2.7 प्रतिशत लोगों को हर रोज ज्यादा नहीं तो कम से कम एक पेग जरूर चाहिए होता है और ये शराब के लती होते हैं। सर्वेक्षण के अनुसार देशभर में 10 से 75 साल की आयु वर्ग के 14.6 प्रतिशत यानी करीब 16 करोड़ लोग शराब पीते हैं। छत्तीसगढ़, त्रिपुरा, पंजाब, अरुणाचल प्रदेश और गोवा में शराब का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। इस सर्वे की चौंकाने वाली बात यह है कि देश में 10 साल के बच्चे भी नशीले पदार्थों का सेवन करने वालों में शामिल हैं।
एक अन्य सर्वे के मुताबिक भारत में गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले लगभग 37 प्रतिशत लोग नशे का सेवन करते हैं। इनमें ऐसे लोग भी शामिल है जिनके घरों में दो जून रोटी भी सुलभ नहीं है। जिन परिवारों के पास रोटी-कपड़ा और मकान की सुविधा उपलब्ध नहीं है तथा सुबह-शाम के खाने के लाले पड़े हुए हैं उनके मुखिया मजदूरी के रूप में जो कमा कर लाते हैं वे शराब पर फूंक डालते हैं। इन लोगों को अपने परिवार की चिन्ता नहीं है कि उनके पेट खाली हैं और बच्चे भूख से तड़फ रहे हैं। ऐसे लोगों की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है। ये लोग कहते हैं वे गम को भुलाने के लिए नशे का सेवन करते हैं। उनका यह तर्क कितना बेमानी है जब यह देखा जाता है कि उनका परिवार भूखे ही सो रहा है। युवाओं में नशा करने की बढ़ती प्रवृत्ति के चलते शहरी और ग्रामीण अंचल में आपराधिक वारदातों में काफी इजाफा हो रहा है। शराब के साथ नशे की दवाओं का उपयोग कर युवा वर्ग आपराधिक वारदातों को सहजता के साथ अंजाम देने लगे हैं। हिंसा ,बलात्कार, चोरी, आत्महत्या आदि अनेक अपराधों के पीछे नशा एक बहुत बड़ी वजह है। शराब पीकर गाड़ी चलाते हुए एक्सीडेंट करना, शादीशुदा व्यक्तियों द्वारा नशे में अपनी पत्नी से मारपीट करना आम बात है । शराब पीने से कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं, जिनमें लीवर का सिरोसिस और कुछ कैंसर शामिल हैं। रिपोर्ट में पाया गया कि शराब का सेवन करने से लोग तपेदिक, एचआईवी और निमोनिया जैसी संक्रामक बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।
, रेवंद चीनी -क्या हैं रेवंद चीनी के औषधिय गुण? रेवंदचीनी को रेवतिका भी कहते हैं
। यह एक जड़ी-बूटी है। आप रेवंद चीनी से लाभ लेकर अनेक रोगों से रोग मुक्त होसकते है यह आर्टिकल आयुर्वेद एवं आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के शोध पर आधारित है।
आयुर्वेद ग्रंथ भाव प्रकाश के अनुसार. रेवतिका (रेवंदचीनी) तेज सिर दर्द (Blister), रक्त विकार, दस्त (Diarrhoea), डायबिटीज (Diabetes) कैंसर आदि में लाभ पहुंचाता है। भूख न लगना, पाचन धीमा होना, पेशाब में जलन, गांठ, घाव, इत्यादि रोग में भी रेवतिका (रेवंदचीनी) से लाभ ले सकते हैं।
रेवातिका (rhubarb) स्वाद में कडवी और तीखी होती है। इसकी तासीर ठंडी होती है। रेवंद चीनी एक पहाड़ी वनस्पति है, जिसकी जड़ चिकित्सा के लिए प्रयोग में लाई जाती है। रेवंदचीनी की जड़ सख्त लकड़ी जैसी और मोटी होती है। इसकी जड़ भूरे पीले रंग की होती है। जड़ का कोई निश्चित आकार नहीं होता है। रेवंदचीनी (indian rhubarb) हिमालयी वनों में पायी जाने वाली औषधि है यह जम्मू-कश्मीर हिमाचल प्रदेश उत्तराखंड सिक्किम आसाम में उच्च हिमालय क्षेत्र 3350मीटर से3650मीटर की उंचाई तक पैदा होती है। हम आपके लिए बहुत ही आसान भाषा मैं रेवंदचीनी के फायदे और नुक्सान बता रहे हैं।
अन्य भाषाओं में रेवंदचीनी के नाम (Rhubarb Called in Different Languages) रेवंदचीनी पॉलिगोनेसी (Polygonaceae) कुल का पौधा है। इसका वानस्पतिक (वैज्ञानिक) नाम रिअम् ऍस्ट्रेल (Rheum australe D.Don) है। वैज्ञानिक इसे Syn-Rheum emodi Wall. ex Meissn भी कहते हैं। रेवंदचीनी को अंग्रेजी में Rhubarb कहते है यह एक अति उपयोगी आयुर्वेदिक औषधि है इस लिए इसके सभी भाषाओं में नाम क्या हैं यह जानना ज़रुरी है क्या कहते हैं अलग-अलग भाषा में इस औषधि को।
English –हिमालयन रुहबर्व (Himalayan rhubarb) तथा इण्डियन रुहबर्व (Indian rhubarb) Arabic – रेचीनी (Revandchini), रेवन्दहिन्दी (Revandhindi) Persian – तुर्सक (Tursak), रावन्दे हिन्दी (Ravande hindi), बिखरेवस (Bikhrewas) Sanskrit – पीतमूला, अम्लपर्णी, गंधिनी, रेवंदचीनी, रेवंदचीनी Hindi (rhubarb meaning in hindi) – रेवंदचीनी, डोलू, अर्चा Urdu – रेवन्दचीनी (Revandchini); Kannada (rhubarb in kannada) – नट-रेवाचिनी (Nat revachini), रेवल चीनी (Reval chini); Gujarati – गामिनी रेवनचीनी (Gamini revanchini), लड़कीरेवन्दचीनी (Ladki Revand-chini); Telugu (rhubarb meaning in telugu) – नट्टू (Nattu), अरिवेल चीनी (Areval chini) Bengali – रेवन्दचीनी (Revandchini), बंगला रेवनचीनी (Bangla revanchini) Nepali – अकसे चूक (Akse chuk), पदमचल (Padamchal) Marathi (rhubarb in marathi) – मूलक (Mulak), चरवल चीनी (Charval chini), रेवन्द चीनी (Revand chini) Punjabi – चूटियाल (Chutiyal)
रेवंदचीनी के फायदे और उपयोग अनेक लोगों को दांतों से जुड़ी कई तरह की परेशानियां होती है। दांतों में दर्द, मुंह से बदबू आना दांतों के रोगों में आम है। ऐसे में रेवंदचीनी का प्रयोग करना लाभ दिलाता है। दांतों के दर्द से जल्द राहत पाने के लिए रेवंदचीनी की जड़ को कूटकर चूर्ण (revand chini powder) बना लें। इस चूर्ण को दांतों पर मंजन की तरह मलने से दर्द दूर होता है। इससे दांत-मुंह के अन्य रोग, दुर्गन्ध आदि से भी मुक्ति मिलती है।
कब्ज से परेशान है तो रेवंदचीनी का इस्तेमाल कर सकते हैं। घृतकुमारी (एलोवेरा) का गूदा, सनाय के पत्ते तथा शुण्ठी के चूर्ण 12-12 ग्राम की मात्रा में लें। इसमें 6-6 ग्राम काला नमक और सेंधा नमक मिलाएं। इसमें 3-3 ग्राम की मात्रा में विडङ्ग तथा रेवंदचीनी का चूर्ण (revand chini powder) मिलाकर मिश्रण बनाएं। इस मिश्रण चूर्ण को 1-2 ग्राम लेकर उसमें मधु मिलाकर सेवन करने से पुराने से पुराने कब्ज की परेशानी खत्म होती है छोटे बच्चों को यदि स्टूल साफ नहोता हो दो-दो दिन बाद स्टूल जाते हो तो यह योग आयु अनुसार मात्र में सुबह साम गुन गुने पानी में या शहद में मिलाकर दें।
बवासीर के रोगी को यदि खून आता हो तो इसमें रेवंदचीनी तुरंत राहत दिलाती है। रेवंदचीनी की जड़ को पीसकर इसका लेप बवासीर के मस्सों पर लगाएं। इससे बवासीर का दर्द जलन कम होता है और खून आना बंद होता है।
रेवतिका का उपयोग योनि संबंधी कई बीमारियों में कर सकते हैं। योनि में खुजली होने पर रेवंदचीनी के चूर्ण (revand chini powder) को गेहूँ के आटा मिला लें। इस मिश्रण को जल में घोल कर हल्का गुनगुना कर लें। योनि में इसका लेप करने से खुजली की परेशानी ठीक होती है और योनि की शिथिलता तथा अन्य योनि के विकारों का भी नाश होता है।
जल्दी घाव सुख नहीं रहा है तो आप रेवतिका का इस्तेममाल कर सकते हैं। इसके लिए रेवातिका (revand chini benefits) की जड़ को पीसकर घाव पर लगाएं। ऐसा करने से घाव जल्दी भरता है।
रेवंदचीनी का केवल जड़ औषधि के रूप में प्रयोग के लायक होता है। इसके जड़ के प्रयोग के विभिन्न तरीके ऊपर बताये जा चुके हैं.
रेवंदचीनी (revandchini) एक अच्छी औषधि है , लेकिन इसका प्रयोग चिकित्सक के परामर्श के अनुसार ही करना चाहिए ।
रेवंदचीनी के प्रयोग से » 48 घंटे में ही कैंसर और Leukemia के सेल्स ख़त्म होने शुरू हो जाते हैं यह कहना है आयुर्वेद के आचार्यों का आज इसकी पुष्टि अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों में होने वाले शोध से भी साबित हो गयी है। कैंसर के मरीजों पर 25 वर्षों के शोध के बाद केलीफोर्निया यूनिवर्सिटी के मेडिकल फिजिक्स एवं साइकोलॉजी के सीनियर प्रोफेसर डॉ. हर्डिन बी जॉन्स का कहना है कि कैंसर के इलाज के तौर पर प्रयोग की जाने वाली कीमोथैरेपी cancer पीड़ित मरीज को दर्दनाक मौत की तरह ले जा सकती है। ऐसे में वर्तमान में देश और विदेश में कैंसर की प्राकृतिक चिकित्सा बहुत ही ज्यादा प्रचलन में है और ये बहुत ही ज्यादा सस्ती भी है और इसके नतीजे कई गुना अधिक हैं तो आइये जाने Cancer ka natural ilaj.
रूबर्ब पौधा जिसे रेवतचीनी और रेवन्दचीनी के नाम से भी जाना जाता है. यह पौधा आयुर्वेदिक दवाइयों में प्रयोग किया जाता है. इस पौधे की पत्तियां ज़हरीली होती हैं लेकिन इसके डंठल दवा के रूप में प्रयोग किये जाते है
हालिया हुए यूएस में एक शोध के अनुसार, रूबर्ब पौधे की डंठलों को कैंसर के इलाज के लिए प्रयोग में लाया जायेगा. इस शोध में हैरानी भरे परिणाम सामने आए हैं.
Anthraquinone Glycosides नामक केमिकल जो रेवन्दचीनी में पाए जाते हैं ये कैंसर रोधी गुणों से भरपूर हैं, ये व्यक्ति को कैंसर से बचाने और cancer को रोकने में काफी सहायक हैं. इसके अलावा इसमें Parietin नामक विशेष Pigment पाया जाता है. इस पौधे की डंठलों में पाए जाने वाले Parietin नामक एक ख़ास ऑरेंज पिगमेंट जो 6PGD नामक एंजाइम को रोक देता है ये एंजाइम कैंसर सेल की ग्रोथ के लिए जरुरी होता है जब इस एंजाइम की कमी कैंसर सेल में होना शुरू हो जाएगी तो कैंसर सेल्स अपने आप ख़तम होना शुरू हो जाएगी. ।
लेबोरेटरी में किये गये एक शोध में पता लगा है की Parietin पिगमेंट कैंसर के सेल्स को 48 घंटे के अन्दर ही खत्म करने की ताकत रखता है. शोध में इस डंठल का प्रयोग के जरिए दो ही दिनों में लयूकैमिया के आधे से ज्यादा सेल्स को यह पौधा नष्ट कर चुका था।
जॉर्जिया की विनशिप कैंसर इंस्टीट्यूट और एमोरी यूनिवर्सिटी द्वारा 2000 कॉम्पोनेन्ट के साथ इसका परिक्षण किया गया. जिसमें विज्ञानिकों ने पारीटिन पाया. जो एंटी-कैंसर ड्रग के रूप में जाना जाता है.
आयुर्वेद के अनुसार यह सभी कैंसर में रोगों में अति लाभकारी है परन्तु आधुनिक शोध मे11 दिनों पारीटिन का प्रयोग कर पाया की यह फेफड़ों के कैंसर में कारगर है. इसके साथ ही यह ब्रेन और गर्दन के ट्यूमर को भी ख़त्म कर सकता है
रेवंद चीनी आयुर्वेद की बहुत प्रसिद्ध औषिधि है, यह पहाड़ी इलाकों में उत्पन्न होती है, जैसे शिमला, कश्मीर, हरिद्वार इत्यादि. ये आपको बहुत आसानी से पंसारी से मिल जाएगी.
रेवंद चीनी की असली नकली पहचान. कई बार कुछ लोग रेवंद चीनी के नाम पर कुछ और चीजें दे देते हैं, ऐसे में आप इसको बड़ी आसानी से पहचान से सकते हैं. इसका स्वाद तीखा और कड़वा होता है, इसमें विशेष गंध रहती है, इसमें Calcium Oxalate होता है जिसको चबाने से करकरापन महसूस होगा. इसको चबाने से मुंह की लार पीले रंग की हो जाती है.
आदरणीय श्री मान पं रामकुमार वैध का कैंसर नाशक योग रेवंद चीनी दो भाग शेष सभी एक एक भाग कच्ची हल्दी श्याम तुलसी, पपीते के पत्ते, गेंहू के जवारे, सबुने के फूल, पुनर्नवा,ताजे काकजी निम्बू का छिलका, अश्वगंधा, मुलैठी, काली जीरी, गुडुची, हरड़ , लेमन ग्रास इत्यादि चीजों को मिलाने से, जो की इसकी गुणवत्ता को कई गुणा बढाता है.
सबसे पहले तो ये व्यक्ति को कैंसर से बचाने और कैंसर को रोकने में बहुत ही सहायक हैं, जिस कारण से इसको कोई भी व्यक्ति सेवन कर सकता है।
इन सभी आयुर्वेदिक औषधियों में इस प्रकार के एंजाइम पाए जाते हैं जो कैंसर कोशिकाओं के ऊपर पाए जाने वाली उनके बचाव के लिए बनायीं गयी कोटिंग को नष्ट करती है, जिस से उस कैंसर सेल को ख़त्म करने में आसानी होती है, जिस से जो भी आपका ट्रीटमेंट चल रहा हो, वो चाहे किसी भी पद्धति से हो वो अधिक असर करेगा. यह कैंसर की कोशिकाओं को ख़त्म करता है और स्वस्थ कोशिकाओं को बचाता है। यह एक शक्तिशाली एंटी ऑक्सीडेंट का काम करता हैं यह कैंसर सेल की ग्रोथ को रोकता है यह कैंसर से बचाव के साथ साथ इससे होने वाली जटिलताओं जैसे उलटी, उबाक, कमजोरी इत्यादि को भी नष्ट करता है. उपरोक्त सब गुणों के कारण इसका सेवन कैंसर के रोगी को तो तुरंत ही कर देना चाहिए. और कैंसर के रोगी को कुछ परहेज ज़रूर करने चाहिए, जैसे के मीठे का, अनाज का, चाय का. और रोगी को खाने में सिर्फ मौसमी फल और उबली हुई सब्जियां देनी चाहिए।
अगर कैंसर अधिक बढ़ गया हो या शरीर में दर्द होता हो रोगी को , रोगी को तुरंत शक्ति देगा, फ्री रेडिकल्स से बचाएगा, शरीर में खून को बढ़ाएगा और एनर्जी से भरपूर करेगा. रोगी को कैंसर से लड़ने की अद्भुत शक्ति देगा. इसका रिजल्ट रोगी को पहले दिन से ही दिखना शुरू होगा. तीन से चार दिन में रोगी को अभूतपूर्व परिवर्तन महसूस होग।
शोध में पारीटिन का प्रयोग कर पाया की यह फेफड़ों के कैंसर में कारगर है. इसके साथ ही यह ब्रेन और गर्दन के ट्यूमर को भी ख़त्म कर सकता है.
साधारण बिमारियों में रेवन्दचीनी को अल्प मात्रा में 60 से 250 मिलीग्राम दिया जाता है. और अधिक भयंकर बीमारी में इसकी मात्रा 1 से 2 ग्राम तक हो सकती है. रोगी की बीमारी देख कर खुद से इसकी मात्रा निर्धारण करें. इसके सेवन से 6 से 8 घंटे में दस्त हो सकता है. अगर दस्त ज्यादा हो तो फिर इसकी मात्रा कम कर दें. मगर इसमें ग्राही तत्व होने के कारण दस्त भी अपने आप बाद में रुक जाता है. अगर मरोड़ हो तो 2 ग्राम सौंठ या 1 चम्मच अदरक के रस के साथ में एक चम्मच सौंफ देने से मरोड़ रुक जाते हैं. इसके सेवन से पेशाब भी गहरे रंग का हो जाता है।
यह उन मरीजों के लिए बेहद फायदेमंद होगा जो के कैंसर का इलाज ले रहें हैं और इसको वो अपने चल रहे इलाज के साथ भी बड़ी आसानी के साथ ले सकते हैं. चाहे कैंसर प्रथम स्टेज का हो या लास्ट स्टेज का हो, मरीज को यह तुरंत देना शुरू करना चाहिए.
इसमें इस प्रकार के एंजाइम पाए जाते हैं जो कैंसर कोशिकाओं के ऊपर पाए जाने वाली उनके बचाव के लिए बनायीं गयी कोटिंग को नष्ट करती है, जिस से उस कैंसर सेल को ख़त्म करने में आसानी होती है, यह कैंसर की कोशिकाओं को ख़त्म करता है और स्वस्थ कोशिकाओं को बचाएगा. यह एक शक्तिशाली एंटी ऑक्सीडेंट का काम करता हैं वो कैंसर सेल की ग्रोथ को रोकेगा. यह कैंसर से बचाव के साथ साथ इससे होने वाली जटिलताओं जैसे उलटी, उबाक, कमजोरी इत्यादि को भी नष्ट करता है.।
(( रेवंद चीनी ब्लड कैंसर(Leukemmia)ki चिकित्सा के लिए होम्योपैथी दवाई lMITINEK MERCILET बनाई गरी है जो ब्लड कैंसर की प्रभावी औषधि समझी जाती है))
उपरोक्त सब गुणों के कारण इसका सेवन कैंसर के रोगी को तो तुरंत ही कर देना चाहिए. और कैंसर के रोगी को कुछ परहेज ज़रूर करने चाहिए, जैसे के मीठे का चीनी शक्कर गुड़ पूर्ण तया बंद कर दें गेहूं का आटा नहीं खायें चाय काफी या कैफ़ीन युक्त पदार्थ (दूध और दूध से बने आहार मांसाहार या ये कहना उचित होगा पसूओं से आने वाले आहार केवल ताजा दही लें सकते हैं वह भी देशी गाय या बकरी के दूध की मछली न खायेंऔर रोगी को खाने में सिर्फ मौसमी फल और उबली हुई सब्जियां देनी चाहिए। यह पोस्ट आयुर्वेद पर आधारित सामान्य जानकारी उपलब्ध कराती है किसी भी चिकित्सा अथवा आयुर्वेद चिकित्सक की सलाह अथवा चिकित्सा का विकल्प नहीं है। यशपाल सिंह आयुर्वेद रत्न 9837342534
बिहार में तो चुनाव का बिगुल बज गया है । भारत सरकार विश्व प्रसिद्ध हो चुकी छठ पूजा को यूनेस्को की प्राच्य पर्व सूची में लाने में जुट गई है । कल सवेरे नीतीश कुमार सड़कों पर उतरे तो दोपहर में बूढ़े बीमार लालू भी सड़क पर चले आए । कल ही शायद राहुल भैया विदेश यात्रा से लौट आए । जाहिर है बिहार जाएंगे । सम्राट चौधरी के नेतृत्व में बीजेपी पहले ही सड़क पर है । चिराग पासवान हों , प्रशांत कुमार या जीतनराम माझी या पवन सिंह : सभी सड़क पर हैं । बाप और भाई से खुली बगावत कर तेजप्रताप यादव सड़कों पर घनचक्कर की तरह घूम रहे हैं ।
मतलब साफ है । सभी बन गए हैं आदमी सड़क का ? मुख्य चुनाव आयुक्त का बिहार दौरा क्या हुआ नेताओं के पांव कथक और भरतनाट्यम करने लगे । अभी देखिए हफ्तेभर में चुनाव कार्यक्रम आने वाला है आपको ओडिसी भी नजर आएगा । हां तांडव अब नहीं होगा । कारण यह कि वोट चोरी का ड्रामा सुपरफ्लॉप साबित हो चुका है । ईवीएम पर स्यापा चुनाव परिणाम आने के बाद होगा अतः रूदाली गैंग छुट्टी पर भेज दिए गए हैं । रही बात भैया की तो हाइड्रोजन बम तो पहले ही फुस्स हो गया था । अब कोलंबिया और चार देशों से कैसे बॉम्बर लाए जल्द पता चल जाएगा ।
बहरहाल माहौल बड़ा हॉट है । लालू दरबार में बेटा बेटी की बगावत के बाद खलबली है । यादव मुस्लिम गठजोड़ में सेंध लगाने के वास्ते ओवैसी फिर बिहार पहुंचने वाले हैं । दरअसल उन्होंने इस बार इंडी गठबंधन से तालमेल करने को हाथ बढ़ाया था । तेजस्वी ने उन्हें भाव नहीं दिया , कांग्रेस से वे बात नहीं करना चाहते । ओवैसी पहले भी बिहार में पांंच सीट जीतकर बता चुके हैं कि मुस्लिमों का समर्थन उनके पास भी है । हमेशा की तरह बिहार में जातियां भरपूर खेलती आई हैं । जाहिर है इस बार बहुकोणीय संघर्ष चुनाव को रोचक बनाएगा । पिछले तीन लोकसभा चुनावों को मोदी ब्रांड ने खासी सफलता प्राप्त की थी । कोई कितनी भी तैयारी करले , एन वक्त पर चुनावी रुख बदलने में मोदी ब्रांड काफी भारी पड़ता रहा है ।
कुछ चीजें प्रमाणित हैं और फायर ब्रांड योगी का प्रभाव भी अद्भुत है । याद कीजिए हरियाणा और महाराष्ट्र ? बटोगे तो कटोगे का नारा ही चुनाव को ले उड़ा ? बीजेपी के पास तुरुप का इक्का हेमंता भी मौजूद है । तो मतलब यह कि बिहार का चुनाव बड़ा दिलचस्प होने वाला है । बंगाल ही नहीं इस बार तमिलनाडु का रास्ता भी बिहार होते हुए जाएगा । तो देखते जाइए । बिहार में सतुअन की बहार यूँ तो सावन भादों में आती है । अबकी बार लिट्टी चोखा और सत्तू का स्वाद कार्तिक में भी खूब रंग जमाएगा ।
6 अक्टूबर 1893 – यह तारीख भारतीय विज्ञान के इतिहास में एक स्वर्ण अक्षर बन गई। बांग्लादेश की राजधानी ढाका के पास छोटे-से गाँव शाओराटोली में जन्मे मेघनाद साहा के पिता जगन्नाथ साहा एक मामूली दुकानदार थे। घर की आर्थिक स्थिति कमजोर थी, लेकिन बेटे की प्रतिभा को देखकर लगता था जैसे किस्मत ने कुछ बड़ा लिखा है। पिता चाहते थे कि मेघनाद पढ़ाई छोड़कर दुकान में मदद करें, मगर बेटे की आँखों में सिर्फ एक सपना था – ज्ञान की खोज।
बचपन से ही मेघनाद सवाल पूछने में निपुण थे। उनके प्रश्न इतने जटिल होते कि शिक्षक तक चकित रह जाते। एक बार उन्होंने सूर्य के चारों ओर मंडल जैसी आकृति पर सवाल किया, जिसका उत्तर अध्यापक तक न दे सके। उस दिन उन्होंने कहा था – “मैं एक दिन खुद इसका उत्तर खोजूँगा।” उनके अध्यापक ने महसूस किया कि यह लड़का साधारण नहीं है, और तभी से उसकी प्रतिभा को दिशा देने का बीड़ा उठाया गया।
घर की हालत ऐसी थी कि दूसरे गाँव जाकर पढ़ाई कर पाना नामुमकिन था। तभी परिवार के एक शुभचिंतक डॉक्टर अनंत दास ने मदद का हाथ बढ़ाया। उन्होंने न केवल शिक्षा की जिम्मेदारी ली बल्कि अपने घर में रहने की जगह भी दी। उनकी बदौलत मेघनाद ने अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में दाखिला लिया और पढ़ाई में ऐसा परचम लहराया कि आठवीं में पूरे ढाका ज़िले में पहला स्थान हासिल किया। इसके बाद मिली छात्रवृत्ति ने उनके पंखों को और मज़बूती दी।
देश में आज़ादी की लहर उठ चुकी थी। गवर्नर के स्कूल दौरे पर जब विरोध प्रदर्शन हुआ तो मेघनाद भी पीछे नहीं रहे। इस साहस की कीमत उन्हें चुकानी पड़ी — छात्रवृत्ति रद्द और स्कूल से निष्कासन। लेकिन यह हार नहीं थी, यह शुरुआत थी। नए स्कूल किशोरी लाल जुबली स्कूल में दाखिला लेकर उन्होंने इंटरमीडिएट में प्रथम श्रेणी हासिल की और कलकत्ता विश्वविद्यालय में दूसरा स्थान पाया। गाँव का यह साधारण बालक अब असाधारण यात्रा पर था।
प्रेसिडेंसी कॉलेज में उनका सामना हुआ विज्ञान के दिग्गजों — प्रफुल्ल चंद्र राय और जगदीश चंद्र बसु — से। यहीं से उनकी सोच की दिशा तय हुई। बसु ने कहा, “तुम्हें भौतिक विज्ञान पर ध्यान देना चाहिए।” और मेघनाद ने ऐसा ही किया। वे प्रयोगशालाओं में घंटों बिताते, नोट्स बनाते और प्रयोगों में डूब जाते। धीरे-धीरे विज्ञान ही उनका जीवन बन गया।
नौकरी नहीं मिली, लेकिन मिला मिशन
एमएससी के बाद जब सरकारी नौकरी राजनीतिक कारणों से नहीं मिली, तो उन्होंने इसे निराशा नहीं, अवसर माना। दिन में ट्यूशन और रात में अनुसंधान। मेहनत इतनी कि साइकिल से दूर-दराज तक छात्रों को पढ़ाने जाते। जल्द ही उन्हें कलकत्ता यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ साइंस में अध्यापन का मौका मिला, जहाँ उन्होंने अपने ज्ञान से नई पीढ़ी को प्रेरित किया।
एक दिन उन्होंने एग्निस क्लर्क की किताब “तारा भौतिकी” पढ़ी, जिसने उनका जीवन बदल दिया। उन्होंने खोज की — Ionization Formula — जिसके ज़रिए सूर्य और तारों के आंतरिक तापमान का पता लगाया जा सकता था। यह खोज इतनी बड़ी थी कि वैज्ञानिक जगत ने उन्हें खगोल विज्ञान का अग्रदूत कहा। इस फ़ॉर्म्युला को आज भी Saha Equation के नाम से जाना जाता है।
1920 में इंग्लैंड यात्रा के दौरान उन्होंने यूरोप के वैज्ञानिकों के साथ काम किया। लौटने पर उन्हें रॉयल सोसाइटी का फेलो बनाया गया — यह सम्मान किसी भारतीय के लिए असाधारण था। 1923 में वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के भौतिक विभाग के अध्यक्ष बने और आगे चलकर Astrophysics के जनक कहे गए।
अल्बर्ट आइंस्टाइन स्वयं मेघनाद साहा के सिद्धांतों से प्रभावित हुए। उन्होंने कहा था, “यह खोज मानवता के लिए एक अमूल्य योगदान है।” साहा ने आइंस्टाइन के शोध ग्रंथों का अनुवाद किया और भारत में Nuclear Physics की शिक्षा की नींव रखी। 1950 में उन्होंने Institute of Nuclear Physics की स्थापना की, जो आगे चलकर भारत की वैज्ञानिक आत्मनिर्भरता का आधार बना।
विज्ञान के साथ समाज की सेवा
सिर्फ प्रयोगशाला तक सीमित नहीं, साहा समाज के लिए भी समर्पित रहे। बंगाल विभाजन के बाद उन्होंने विस्थापितों की मदद की। बाढ़ रोकने की योजनाओं में शामिल हुए और देश की नदियों के अध्ययन में योगदान दिया। उनके लिए विज्ञान केवल प्रयोग नहीं था, बल्कि मानव कल्याण का माध्यम था।
विज्ञान को सुलभ बनाने की मुहिम
उन्होंने महसूस किया कि विज्ञान की पुस्तकें भारत में दुर्लभ हैं। इसलिए खुद “Theory of Heat” और “Modern Physics” जैसी किताबें लिखीं, जो विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाने लगीं। उन्होंने Science and Culture नामक पत्रिका शुरू की ताकि विज्ञान सरल भाषा में हर व्यक्ति तक पहुँच सके।
संस्थाओं के निर्माता
सिर्फ विचारक नहीं, साहा एक आयोजक भी थे। उन्होंने National Academy of Sciences, Indian Physical Society और National Institute of Sciences of India जैसी संस्थाओं की नींव रखी। उनके प्रयासों से 1951 में Saha Institute of Nuclear Physics अस्तित्व में आया — आज भी यह भारत की वैज्ञानिक पहचान है।
जनता के प्रिय वैज्ञानिक
1952 में जब उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा, तो जनता ने भारी बहुमत से उन्हें संसद भेजा। वे नेहरू के साथ योजना आयोग में कार्यरत रहे। 16 फरवरी 1956 को राष्ट्रपति भवन जाते हुए उन्हें हार्ट अटैक आया, और वहीं उनका जीवन थम गया। लेकिन उनका नाम, उनकी खोजें, और उनकी सोच — आज भी भारत के हर वैज्ञानिक मन में जीवित हैं।
ब्रह्मलोक में अनादि राधा और अनादि कृष्ण के महारास से निकला अमृत सोम लताओं में जा बसता है । यही अमृत शरद पूर्णिमा की रात्रि में पूर्णचंद्र की किरणों के साथ धरती पर बरसता है । सोम रूपी यह अमृत वर्ष में केवल एक ही रात बरसता है । जिस साल कुंभ मेले हो उस साल मुख्य स्नान के दिन भी इसी अमृतमय सोम की वर्षा पवित्र नदियों पर होती है । अश्विन शुक्ल पूर्णिमा सोमवार की रात्रि में यह अमृत फिर बरसेगा । कालांतर में देवताओं और असुरों के बीच हुए समुद्र मंथन में शरद पूर्णिमा के दिन यही अमृत समुद्र के गर्भ से अक्षय कलश में निकला था ।
मान्यता है कि ऐसा ही अमृत वृन्दावन के निधिवन में प्रति रात्रि बरसता है । लेकिन यह रास एकांत में होता है और मनुष्य का रात्रि प्रवेश निधिवन में वर्जित है । अतः धरती वासियों को अमृत पान का अनोखा अवसर शरद पूर्णिमा की रात्रि में मिलता है । द्वापर में भगवान कृष्ण गोपियों संग पूर्णिमा को रात भर महारास किया करते थे ।
शरद पूर्णिमा की रात्रि में कुछ घंटे छत पर खुले आकाश के नीचे बिताए । दूध में चौले ( चिवड़ा )और चीनी मिलाकर अथवा खीर बनाकर चंद्रमा की चांदनी में पूरी रात अथवा कुछ घंटे रखें । बाद में प्रसाद रूप में आरोग्य पाने की भावना से इसे ग्रहण करें । रात्रि में कुछ समय यदि चांदनी के प्रकाश में सुईं में धागा पिरोया जाए , या फिर सीधे चंद्रमा से नजरें मिलाकर त्राटक किया जाए , तो नेत्र ज्योति बढ़ती है ।
शरद पूर्णिमा की रात्रि में जब समुद्र मंथन से लक्ष्मी प्रकट हुई तब देवताओं ने उनकी वंदना की । प्रत्येक शरद पूर्णिमा की रात्रि में चंद्रमा के प्रकाश में बैठकर लक्ष्मी की पूजा की जाती है । सर्व सिद्धि योग और अमृत योग में नक्षत्रों की जुगलबंदी व्यापक प्रभाव डालती है । शरद रात्रि से चंद्रमा के 27 नक्षत्रों का मिलन न केवल शुभ माना जाता है अपितु कईं प्रकार के उत्तम फल भी प्रदान करता है ।
अश्विन पूर्णिमा की चांदनी का मिलन जब कार्तिक मास की प्रतिपदा से होता है तो शास्त्रों में उसे अमृत योग कहा गया है । दोनों के मिलन से जल रूप गंगा भी उत्पन्न हुई । गंगा को भगीरथ धरती पर लाए । गंगा तट पर रात भर बैठकर शरद पूर्णिमा मनाई जाए तो सोम मय अमृत तत्व सहज प्राप्त हो जाता है । यही अमृत समुद्र मंथन के समय उस कलश में विद्यमान था , जिसे लेकर भगवान धन्वंतरि प्रगट हुए थे ।
शरद पूर्णिमा पर भगवान विष्णु तथा महालक्ष्मी की पूजा का विधान है । यह पूजा पवित्र नदियों में स्नान के बाद वहीं तटों पर भी की जाती है और मंदिरों में जाकर भी । बहुत से श्रद्धालु शरद पूर्णिमा पर व्रत रखते हैं । महालक्ष्मी का प्राकट्य चूंकि समुद्र के जल से हुआ , अतः गंगा आदि पवित्र नदियों के किनारे जल पूजा भी शास्त्रों में बताई गई है ।
विनोद खन्ना का जन्म 6 अक्टूबर, 1946 में पेशावर, पाकिस्तान में हुआ था, लेकिन विभाजन के बाद इनका परिवार मुंबई आकर बस गया था। इनके पिता किशनचन्द्र खन्ना एक बिजनेसमैन थे और माता कमला खन्ना एक कुशल गृहणी रहीं। विनोद खन्ना ने दो विवाह किये थे। पहली पत्नी गीतांजलि थीं, जिनसे 1985 में तलाक हो गया। बाद में उन्होंने उन्होंने कविता से शादी की। उनके तीन बेटे अक्षय खन्ना, राहुल खन्ना और साक्षी खन्ना हैं। उनकी एक बेटी है, जिसका नाम श्रद्धा खन्ना है।
1968 में सुनील दत्त की फिल्म ‘मन का मीत’ से विनोद खन्ना ने अपना फिल्मी कॅरियर शुरू किया था। विनोद खन्ना का नाम ऐसे अभिनेताओं में शुमार था जिन्होंने शुरुआत तो विलेन के किरदार से की थी लेकिन बाद में हीरो बन गए। ये फिल्में थीं, पूरब और पश्चिम, सच्चा झूठा, आन मिलो सजना, मस्ताना, मेरा गांव मेरा देश, ऐलान आदि। ‘मेरे अपने’, ‘दयावान’, ‘कुर्बानी’, ‘मेरा गांव मेरा देश’ जैसी फिल्मों को उनकी यादगार भूमिकाओं के लिए याद किया जाता है।
विनोद खन्ना ने 1971 में सोलो लीड रोल में फिल्म ‘हम तुम और वो’ में काम किया था। गुलजार के ‘मेरे अपने’ में शत्रुघ्न सिन्हा के अपोजिट निभाए गए उनके किरदार को आज भी लोग याद करते हैं। गुलजार की ही फिल्म ‘अचानक’ में मौत की सजा पाए आर्मी अफसर का किरदार निभाने के लिए भी उन्हें काफ़ी तारीफ मिली। बाद में अमिताभ के अपोजिट हेराफेरी, खून पसीना, अमर अकबर एंथनी, मुकद्दर का सिकंदर में भी उन्होंने यादगार रोल निभाया। कहा जाता है कि अगर विनोद खन्ना ओशो के आश्रम न जाते तो आने वाले वक्त में वह अमिताभ बच्चन के स्टारडम को फीका कर देते। बहुत कम लोग ही जानते हैं कि विनोद खन्ना की सबसे हिट फिल्मों में से एक ‘कुर्बानी’ का रोल पहले अमिताभ बच्चन को ही ऑफर किया गया था। उन्होंने यह रोल ठुकरा दिया, जिसके बाद विनोद खन्ना ने यह किरदार निभाया। बाद में विनोद को ‘रॉकी’ फिल्म ऑफर की गई, लेकिन उन्होंने यह फिल्म नहीं की। इस फिल्म से संजय दत्त ने बॉलीवुड में एंट्री ली।
उनकी यादगार फ़िल्मों में ‘मेरे अपने’, ‘कुर्बानी’, ‘पूरब और पश्चिम’, ‘रेशमा और शेरा’, ‘हाथ की सफाई’, ‘हेरा फेरी’, ‘मुकद्दर का सिकंदर’, ‘अमर अकबर एंथनी’, ‘दयावान’, ‘मेरा गांव मेरा देश’ रही हैं।
अपने करियर के शिखर दौर में विनोद खन्ना अचानक अभिनय को विदा कहकर आध्यात्मिक गुरु रजनीश के शिष्य हो गए थे।
विनोद खन्ना ने 1998 में राजनीति में कदम रखा और उसी साल 12वीं लोकसभा चुनावों में पंजाब के गुरदासपुर से पहली बार भारतीय जनता पार्टी टिकट पर संसद पहुंचे। यह सिलसिला लगातार तीन बार चला। 1999 और 2004 के आम चुनावों में भी वह लगातार इसी सीट से जीते।
2002-03 में वह अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में केंद्र की बीजेपी सरकार में पर्यटन एवं संस्कृति राज्यमंत्री और 2003-04 में विदेश राज्यमंत्री रहे। 2009 में उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा। उसके बाद 2014 में एक बार फिर उन्होंने बीजेपी के टिकट पर गुरदासपुर से चुनाव जीता और इस तरह चौथी बार 16वीं लोकसभा के सदस्य बने। संसद में वह कई कमेटियों के भी सदस्य रहे। 1 सितंबर, 2014 से वह रक्षा मामलों पर गठित स्टैंडिग कमेटी के सदस्य थे। इसके अलावा कृषि मंत्रालय की परामर्श कमेटी के भी सदस्य थे।
1999 में उनको फिल्मों में उनके 30 वर्ष से भी ज्यादा समय के योगदान के लिए फिल्मफेयर के लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित भी किया गया। 140 से भी अधिक फिल्मों में विविध किरदार निभाने वाले विनोद खन्ना को सबसे पहले 1974 में ‘हाथ की सफाई’ फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कार मिला। उसी साल उनको नेशनल यूथ फिल्म अवार्ड भी मिला।
विनोद खन्ना के पिता का टेक्सटाइल, डाई और केमिकल का बिजनेस था। विनोद खन्ना के एक भाई और तीन बहनें हैं। विनोद खन्ना बचपन में बेहद शर्मीले थे और जब वह स्कूल में पढ़ते थे, तो उन्हें एक टीचर ने जबरदस्ती नाटक में उतार दिया और तभी से उन्हें अभिनय करना अच्छा लगने लगा। स्कूल में पढ़ाई के दौरान विनोद खन्ना ने ‘सोलहवां साल’ और ‘मुग़ल-ए-आजम’ जैसी फिल्में देखीं और इन फिल्मों ने उन पर गहरा असर छोड़ा।
विनोद खन्ना के पिता नहीं चाहते थे कि उनका बेटा फिल्मों में जाए, लेकिन अंत में विनोद की ज़िद के आगे उनके पिता झुक गए और उन्होंने विनोद को दो साल का समय दिया। विनोद ने इन दो सालों में मेहनत कर फिल्म इंडस्ट्री में जगह बना ली। सुपरस्टार राजेश खन्ना, विनोद खन्ना के बेहद पसंदीदा अभिनेताओं में एक थे।
विनोद खन्ना को सुनील दत्त ने साल 1968 में फिल्म ‘मन का मीत’ में विलेन के रूप में लॉन्च किया। दरअसल यह फिल्म सुनील दत्त ने अपने भाई को बतौर हीरो लॉन्च करने के लिए बनाई थी। वह तो पीछे रह गए, लेकिन विनोद ने फिल्म से अपनी अच्छी पहचान बना ली।
हीरो के रूप में स्थापित होने के पहले विनोद ने ‘आन मिलो सजना’, ‘पूरब और पश्चिम’, ‘सच्चा झूठा’ जैसी फिल्मों में सहायक या खलनायक के रूप में काम किया।
गुलजार द्वारा निर्देशित ‘मेरे अपने’ (1971) से विनोद खन्ना को चर्चा मिली और बतौर नायक वे नजर आने लगे। मल्टीस्टारर फिल्मों से विनोद को कभी परहेज नहीं रहा और उन्होंने उस दौर के सितारे अमिताभ बच्चन, राजेश खन्ना, सुनील दत्त आदि के साथ कई फिल्में साथ में कीं।
बागवानी के बेहद शौकीन विनोद खन्ना को ध्यान, क्रिकेट, खेल, संगीत, फोटोग्राफी और ड्राइविंग का भी बेहद शौक था। उनको बैडमिंटन खेलने का शौक था। स्कूल और कॉलेज के दिनों में वह खेलों में हिस्सा लेते थे। वह कॉलेज के दिनों में जिमनास्ट और बॉक्सर भी थे।
विनोद खन्ना का 27 अप्रैल, 2017 को कैंसर की बीमारी से जूझते निधन हो गया। वे 70 साल के थे!