हरियाणा में डेंगू का प्रकोप ,जनता बीमार, प्रशासन लाचार

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हरियाणा में डेंगू का प्रकोप तेज़ है, लेकिन नगर निकायों के पास फॉगिंग मशीनों की भारी कमी है। प्रदेश के 87 निकायों में केवल 426 मशीनें उपलब्ध हैं, जो आवश्यकतानुसार बेहद कम हैं। मशीनों की कमी के कारण न तो शहरों में और न ही ग्रामीण इलाकों में नियमित फॉगिंग अभियान चल पाए हैं। 1200 से अधिक गाँव जलभराव से जूझ रहे हैं, जिससे खतरा और बढ़ गया है। स्वास्थ्य विभाग और निकायों की लापरवाही से जनता पर बीमारी का संकट गहराता जा रहा है। ठोस कार्ययोजना और पर्याप्त संसाधन ही डेंगू से सुरक्षा का रास्ता हैं।

 – डॉ. सत्यवान सौरभ

डेंगू का नाम सुनते ही लोगों के मन में डर बैठ जाता है। हर साल मानसून के बाद बरसात के दिनों में जब मच्छरों का प्रकोप बढ़ता है, तो डेंगू के मामले तेजी से सामने आने लगते हैं। बुखार, सिरदर्द, शरीर में दर्द और प्लेटलेट्स की कमी से पीड़ित मरीजों की संख्या अस्पतालों में बढ़ने लगती है। सरकारें हर वर्ष दावा करती हैं कि मच्छरों की रोकथाम और फॉगिंग के इंतज़ाम पूरे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत बिल्कुल उलट होती है। हाल ही में सामने आई रिपोर्ट ने हरियाणा के स्वास्थ्य तंत्र और स्थानीय निकायों की तैयारियों पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। प्रदेश के 87 नगर निकायों में डेंगू और मच्छर जनित बीमारियों से निपटने के लिए मात्र 426 फॉगिंग मशीनें ही उपलब्ध हैं। यानी लगभग हर निकाय के हिस्से में औसतन पाँच मशीनें भी नहीं आतीं। जबकि स्थिति यह है कि एक मध्यम आकार के शहर में ही डेंगू पर काबू पाने के लिए 20–25 मशीनें आवश्यक मानी जाती हैं। ऐसे में पूरे प्रदेश के स्तर पर मशीनों की यह कमी सीधा संदेश देती है कि प्रशासनिक लापरवाही किस हद तक हावी है।

डेंगू एक ऐसी बीमारी है जिसका सीधा इलाज एंटीबायोटिक दवाइयों से संभव नहीं है। यह मच्छरों से फैलने वाला वायरल संक्रमण है और रोगी के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर ही उपचार टिका होता है। अधिकतर मामलों में डेंगू का वायरस शरीर की प्लेटलेट्स तेजी से घटा देता है। समय पर इलाज न मिलने पर यह स्थिति जानलेवा हो सकती है। भारत में हर साल लाखों लोग डेंगू से प्रभावित होते हैं और हजारों मौतें भी होती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी डेंगू को दुनिया के सबसे तेजी से फैलने वाले वायरल रोगों में गिनता है। इसलिए रोकथाम ही सबसे बड़ा हथियार है। मच्छरों को पनपने से रोकना, जलभराव हटाना और समय-समय पर फॉगिंग करना — यही डेंगू पर नियंत्रण के सबसे कारगर उपाय हैं। लेकिन जब यही इंतज़ाम कमजोर पड़ जाएं, तो बीमारी का फैलाव तेज़ी से होता है।

हरियाणा के नगर निकायों के पास फॉगिंग मशीनों की संख्या न सिर्फ कम है बल्कि जिन मशीनों का इस्तेमाल किया जा रहा है, उनमें से कई पुराने और खराब हालत में हैं। यह स्थिति स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति राज्य सरकार और निकायों की उदासीनता को उजागर करती है। फॉगिंग का महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि यह मच्छरों के जीवन चक्र को तोड़ती है। मच्छर के अंडे से निकलने और उनके वयस्क होने की प्रक्रिया पर फॉगिंग सीधा असर डालती है। यदि यह नियमित अंतराल पर हो तो मच्छरों की संख्या तेजी से कम हो सकती है। लेकिन जब मशीनें ही उपलब्ध न हों, तो फॉगिंग का अभियान केवल कागजों में रह जाता है।

यह समस्या सिर्फ शहरों तक सीमित नहीं है। प्रदेश के 1200 से अधिक गाँव जलभराव की समस्या से जूझ रहे हैं। गाँवों में नालियों की सफाई और कचरे के निस्तारण की व्यवस्था कमजोर है। पंचायतों के पास न तो पर्याप्त बजट है और न ही तकनीकी संसाधन। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों में डेंगू और मलेरिया का प्रकोप और भी खतरनाक हो सकता है। सरकारी नीतियों में बार-बार शहरी क्षेत्रों पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है, लेकिन वास्तविकता यह है कि ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाएँ और रोकथाम अभियान बिल्कुल नाममात्र के रह जाते हैं।

इस स्थिति की सबसे बड़ी जिम्मेदारी स्वास्थ्य विभाग और स्थानीय निकायों पर आती है। हर साल डेंगू का मौसम आता है और हर बार प्रशासन अचानक हाथ-पैर मारता है। जबकि यह समस्या नई नहीं है। फॉगिंग मशीनें सालभर सक्रिय रहनी चाहिए और नियमित अंतराल पर उनका रखरखाव होना चाहिए। लेकिन निकायों के पास अक्सर यह तर्क होता है कि बजट की कमी है। सवाल यह उठता है कि जब स्वास्थ्य सेवाओं पर ही खर्च नहीं होगा तो विकास का दावा किस आधार पर किया जाएगा?

मशीनों की कमी और लापरवाही का सीधा असर आम जनता पर पड़ता है। हर साल हजारों परिवार डेंगू से प्रभावित होते हैं। एक बार किसी घर का सदस्य डेंगू से बीमार हो जाए तो उस परिवार पर मानसिक, शारीरिक और आर्थिक बोझ बढ़ जाता है। अस्पतालों में भर्ती का खर्च, दवाइयों और प्लेटलेट्स की कमी का संकट, लंबे समय तक काम और पढ़ाई से दूरी, बीमारी का डर और असुरक्षा—ये सभी पहलू जनता को झकझोरते हैं। खासकर गरीब और मध्यम वर्ग के परिवार सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं क्योंकि उनके पास महंगे इलाज का साधन नहीं होता।

सरकार और प्रशासन को चाहिए कि इस स्थिति से सबक लें। सबसे पहले फॉगिंग मशीनों की संख्या बढ़ाई जाए और हर निकाय को पर्याप्त मशीनें दी जाएं। केवल आपातकालीन हालात में नहीं बल्कि पूरे वर्ष तय अंतराल पर फॉगिंग होनी चाहिए। पंचायतों को बजट और मशीनें उपलब्ध कराकर ग्रामीण क्षेत्रों में मच्छरनाशी अभियान चलाना आवश्यक है। जनता को भी जागरूक किया जाए कि घरों में पानी जमा न होने दें, कूलर व टंकियों को ढककर रखें। अस्पतालों में डेंगू टेस्ट, दवाइयों और प्लेटलेट्स की पर्याप्त व्यवस्था समय रहते की जाए।

डेंगू हर साल एक बार नहीं बल्कि अब स्थायी खतरे के रूप में सामने आ चुका है। बदलते मौसम, बढ़ते शहरीकरण और जलभराव की समस्याओं ने इसकी जड़ें और गहरी कर दी हैं। ऐसे में केवल घोषणाओं से काम नहीं चलेगा। फॉगिंग मशीनों की कमी और प्रशासनिक उदासीनता न केवल लापरवाही है बल्कि लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ भी है। सरकार को चाहिए कि इस समस्या को आपदा प्रबंधन की तरह प्राथमिकता दे और हर निकाय को संसाधन उपलब्ध कराए। जनता भी अपनी जिम्मेदारी समझे और घर-आसपास पानी जमा न होने दे। प्रशासन और समाज के संयुक्त प्रयासों से ही डेंगू पर काबू पाया जा सकता है। आज जरूरत है एक ठोस कार्ययोजना की, वरना डेंगू हर साल नए रूप में दस्तक देता रहेगा और स्वास्थ्य तंत्र की कमजोरियों को उजागर करता रहेगा।

 – डॉ. सत्यवान सौरभ

(ये लेखक के अपने विचार है)

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पंजाब जल प्रलय : दुनिया के मददगारों को आज मदद की दरकार

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तनवीर जाफ़री
भारत का “अन्न भंडार” कहा जाने वाला देश की खाद्य आपूर्ति के लिए सबसे महत्वपूर्ण राज्य पंजाब इन दिनों जल प्रलय जैसे अति गंभीर संकट से जूझ रहा है। कुछ स्रोतों के अनुसार राष्ट्रीय खाद्य भंडार में पंजाब लगभग 45 प्रतिशत अनाज का योगदान करता है। इसमें देश के गेहूं उत्पादन में लगभग 22 प्रतिशत और चावल उत्पादन में लगभग 12प्रतिशत का योगदान शामिल है। इसीलिए पंजाब देश की खाद्य आपूर्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण राज्य है। इसके अलावा इसी पंजाब का किसान भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में ज़रूरतमंदों की हर तरह की मदद करने के लिये पहली पंक्ति में खड़ा नज़र आता है। चाहे वह युद्ध की विभीषिका से जूझने वाले लोग हों या भूकंप,सुनामी अथवा बाढ़ से प्रभावित लोग,शरणर्थियों की मदद करनी हो या कोरोना जैसे विश्वस्तरीय संकटकाल में लोगों को मुफ़्त भोजन व अन्य सुविधायें उपलब्ध कराना हो, पंजाब की यह क़ौम हमेशा सबसे आगे खड़ी नज़र आई है। न यह धर्म देखते हैं न देश, न सीमा न जाति या भाषा। इन्हें प्रत्येक मानव की पीड़ा अपनी पीड़ा महसूस होती है और यह क़ौम तन मन धन से एकजुट होकर मदद करने को खड़ी हो जाती है। आज पूरे देश में न जाने कितने गुरुद्वारे दिन रत ज़रूरतमंदों को लंगर उपलब्ध कराते हैं। देश बार में स्वास्थ्य सम्बन्धी दर्जनों प्रयोगशालाएं व अस्पताल इनके सौजन्य से संचालित हो रहे हैं।
दुर्भाग्यवश आज हमारे देश का यही पंजाब प्राकृतिक प्रकोप से जूझ रहा है। इन दिनों जम्मू कश्मीर,हिमाचल प्रदेश व उत्तरांचल सहित केवल पंजाब में आई भीषण बाढ़ से राज्य के सभी 23 ज़िले प्रभावित हैं। राज्य में अब तक दर्जनों लोगों की मौत या उनके लापता होने के समाचार हैं। इस जल प्रलय से पंजाब के लाखों लोग प्रभावित हुए हैं। क़रीब 2000 गांव जलमग्न हो गए हैं। अनुमान के अनुसार बाढ़ ने लगभग 18 लाख हेक्टेयर खेतों की फ़सलें बर्बाद कर दी हैं। बासमती फ़सल को तो भारी नुक़्सान हुआ है। अभी तक 600 करोड़ से अधिक के नुक़सान का अनुमान लगाया जा रहा है। सरकारी व अनेक ग़ैर सरकारी स्वयंसेवी संगठनों द्वारा राहत और बचाव कार्य तेज़ी से चलाया जा रह है। हज़ारों बाढ़ पीड़ितों को सुरक्षित जगहों पर या राहत शिविरों में पहुँचाया जा चुका है।
इसी दौरान शौर्य समर्पण व बलिदान की इस धरती से बड़े ही ह्रदय विदारक दृश्य सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। हज़ारों गायें भैंसें तेज़ बहाव में बहकर लापता हो गई हैं। पूरी पूरी डेयरियां जल प्रलय का शिकार हो गयी हैं। लोगों के खेतों में वर्तमान फ़सल तो बर्बाद हुई ही है परन्तु ऐसी संभावना भी है कि खेतों में रेत की मोटी परत बैठ जाने के चलते अनिश्चितकाल के लिये इन खेतों की अपनी उर्वरक क्षमता भी समाप्त हो जाएगी। गोया इस जल प्रलय के चलते आने वाले वर्षों में देश की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होने की संभावना है।
बहरहाल आज पीड़ा की इस घड़ी में पंजाब के किसानों के साथ पूरा देश खड़ा दिखाई दे रहा है। अक्षय कुमार,दिलजीत दोसांझ,रणदीप हुड्डा,सोनू सूद,प्रीटी जिंटा,करीना कपूर,विक्की कौशल,एमी विर्क,राज कुंद्रा,गुरु रंधावा,गिप्पी ग्रेवाल,करण औजला,सुनंदा शर्मा,शाहरुख़ ख़ान , आलिया भट्ट, करण जौहर,हरभजन सिंह,मनकीरत औलख,बब्बू मान, रणजीत बावा,सोनम बाजवा ,संजय दत्त,अजय देवगन, कपिल शर्मा, बादशाह, सिद्धार्थ मल्होत्रा व अनन्या पांडे जैसे अनेक फ़िल्म व कला जगत से जुड़े लोगों ने बढ़चढ़कर या तो भारी भरकम रक़म दान की है या पीड़ितों के लिये राहत शिविर स्थापित किये हैं,एम्बुलेंस दान की हैं अथवा उनके साथ अपना समर्थन व्यक्त किया है। इसी तरह मदरसा ज़ीनत उलूम,नारायणगढ़ मदरसा जमीयतुल उलूम, मेवात के मुस्लिम समुदाय के लोग व दर्जनों मस्जिदों से राहत भरे ट्रक पंजाब की ओर भेजे जा रहे हैं। ईरान ने भी भारत के पंजाब में आई भीषण बाढ़ पर गहरा दुख व्यक्त किया है। ईरान के भारत स्थित दूतावास ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म X पर जारी एक संदेश में कहा कि पंजाब में आई बाढ़ से हुए व्यापक नुक़्सान और दर्द को देखकर मन दुखी है। दूतावास ने प्रभावित लोगों और राहत कार्यों में लगे सभी के लिए प्रार्थनाएं कीं तथा भगवान से सभी की रक्षा और आशीर्वाद की कामना की। ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली ख़ामनेई की ओर से भी पंजाब के बाढ़ पीड़ितों की हिफ़ाज़त और सलामती के लिए दुआएं भेजी गई हैं। ईरान के इस बयान की सोशल मीडिया पर काफ़ी सराहना की गयी है।
आज पूरे देश के हर वर्ग व हर धर्म का व्यक्ति पंजाब के इन किसानों के साथ इसीलिये खड़ा है क्योंकि गुरुनानक देव जी महाराज द्वारा किये गये ‘सच्चा सौदा ‘ के संस्कारों में परवरिश पाने वाला पंजाब का यह किसान भी बुरे वक़्त में पूरी दुनिया के साथ दुर्गम से दुर्गम परिस्थितियों में भी हमेशा खड़ा दिखाई दिया है। जहां कहीं धर्म देश या जाति देखकर लोगों की सहायता करने वाले संकीर्ण सोच के लोग मुसीबत में खड़े नहीं होते वहीँ पंजाब का यह समुदाय केवल मानवता को मद्देनज़र रखकर हमेशा हर जगह हर एक पीड़ित के साथ खड़ा दिखाई दिया है। संकट की इस घड़ी में देश के कारपोरेट घरानों व उद्योगपतियों को भी खुलकर सामने आना चाहिये। देश के उन बड़े बड़े मठों व धर्मस्थलों को भी मदद के हाथ पंजाब के जल प्रलय प्रभावित लोगों की ओर बढ़ाना चाहिये जिनके भण्डार अकूत सोने चांदी व धन सम्पदा से भरे पड़े हैं। देश के धनाढ्य कथावाचकों व धर्माधिकारियों को भी खुलकर सामने आना चाहिये। देश की बड़ी दरगाहों व जमाअतों को भी संकट में पंजाब के साथ खड़े होना चाहिये। बेशक प्रकृतिक प्रकोप के चलते दुनिया के इन मददगारों को भी आज वक़्ती तौर पर मदद की दरकार ज़रूर है परन्तु विश्वास है कि मानवता व भाईचारे की मिसाल पेश करने व संकट में सबके साथ खड़ी नज़र आने वाली यह क़ौम जल्द ही इस संकट से भी उबार जाएगी।

तनवीर जाफ़री

वरिष्ठ पत्रकार

एशिया कप में भारतीय हाकी टीम विजयी

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एशिया कप 2025 के फाइनल मैच में भारतीय हॉकी टीम ने जीत कर इतिहास रच दिया।बिहार के राजगीर में खेले गए फाइनल में भारतीय टीम ने कोरिया को 4-1 से हराया। इस विजय के साथ भाररतीय टीम चौथी बार एशिया कप की चैंपियन बनी है। साथ ही भारतीय हॉकी टीम ने वर्ल्ड कप के लिए क्वालीफाई भी कर लिया । भारत की तरफ से दिलप्रीत ने सबसे ज्यादा दो गोल किए। सुखजीत सिंह और अमित रोहिदास ने 1-1 गोल करने में सफलता हासिल की।

मुकाबले की बात करें तो, भारत की शुरुआत बेहतरीन रही। भारतीय टीम ने आक्रामक शुरुआत करते हुए पहले ही मिनट में गोल किया। कप्तान हरमनप्रीत सिंह के बेहतरीन पास पर डी के अंदर मौजूद सुखजीत सिंह ने टॉमहॉक लगाते हुए गोल दागा। इस मैच के आठवें मिनट पर भारत को पेनल्टी स्ट्रोक मिला, पर जुगराज गोल नहीं कर सके। इसके बाद दूसे क्वार्टर की समाप्ति से लगभग दो मिनट पहले ही दिलप्रीत ने मैदानी गोल करके बढ़त को दोगुना किया। 

वहीं तीसरे क्वार्टर में दोनों टीमों को पेनाल्टी कॉर्नर मिले, जिस पर कोई भी गोल नहीं हो सका। भारत की ओर से हो रहे लगातार आक्रामक प्रयासों के बीच दिलप्रीत ने अपना दूसरा और भारत के लिए तीसरा गोल किया। चौथे क्वार्टर में कोरिया से सोन डेन ने पेनाल्टी कॉर्नर पर मिले मौके पर गोल किया। मैच के आखिरी मिनटों के दौरान कोरियाई खिलाड़ियों ने तेजी से कुछ प्रयास किए, लेकिन वे इसमें नाकामयाब रहे।  

तरक़्क़ी के शहर, अकेलेपन के घर 

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(सुविधाओं की उपलब्धता ने जीवन आसान बनाया, पर सामुदायिक विश्वास, आत्मीयता और सामाजिक बंधन टूटने लगे हैं।) 

सबसे बड़ी चुनौती है सामुदायिक बंधनों का क्षरण। गाँवों में जहाँ पड़ोसियों और रिश्तेदारों के बीच गहरे संबंध होते हैं, वहीं शहरों में रहने वाले लोग अक्सर अनजानेपन और दूरी का अनुभव करते हैं। गेटेड सोसाइटी और उच्च-आय वर्गीय कॉलोनियों ने  सामाजिक जीवन को खंडित कर दिया है। लोग अपने छोटे-से घेरे में सिमट जाते हैं और “अन्य” के प्रति अविश्वास पनपने लगता है। यह प्रवृत्ति समाज में सामूहिक विश्वास और सहयोग की भावना को कमजोर करती है। शहरी जीवन का दूसरा बड़ा संकट है अकेलापन। भीड़भाड़ और व्यस्तता के बावजूद लोग व्यक्तिगत रूप से अलग-थलग पड़ जाते हैं।


-प्रियंका सौरभ 

 महानगरों में लाखों लोग रहते हैं, परंतु अधिकांश अपने पड़ोसियों को भी नहीं पहचानते। एक सर्वेक्षण के अनुसार लगभग 40 प्रतिशत शहरी भारतीयों ने स्वीकार किया कि वे खुद को अकेला महसूस करते हैं। यह आँकड़ा दिखाता है कि आधुनिक शहरी जीवन ने भले ही हमें भौतिक सुविधाएँ दी हों, परंतु भावनात्मक और सामाजिक रूप से हमें कमजोर किया है। तकनीक ने भी इस अकेलेपन को बढ़ाया है। स्मार्टफोन और सोशल मीडिया पर निर्भरता ने वास्तविक मानवीय बातचीत को सीमित कर दिया है। मेट्रो या बस में सफर करते हुए अक्सर लोग एक-दूसरे से संवाद नहीं करते, बल्कि मोबाइल स्क्रीन में डूबे रहते हैं। 

शहरीकरण ने भारत के सामाजिक जीवन और मानवीय संबंधों को गहराई से प्रभावित किया है। यह केवल आर्थिक प्रगति का साधन नहीं बल्कि एक ऐसा सामाजिक परिवर्तन भी है जिसने हमारे पारंपरिक रिश्तों, विश्वास और आपसी सहयोग की प्रकृति को बदल दिया है। शहरी जीवन की रफ्तार, अवसरों की विविधता और सेवाओं तक आसान पहुँच ने निश्चित ही नागरिकों को नए विकल्प दिए हैं, परंतु इसके साथ ही यह प्रक्रिया मानवीय संवेदनाओं और सामुदायिक रिश्तों को भी चुनौती देती रही है।

शहरों के विस्तार ने लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार जैसे अवसरों के करीब लाया। पहले जहाँ ग्रामीण भारत में इन सुविधाओं तक पहुँच कठिन थी, वहीं शहरी क्षेत्रों ने इन्हें आसान बनाया। दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु और कोलकाता जैसे महानगरों में विश्वस्तरीय अस्पताल, विश्वविद्यालय और सांस्कृतिक केंद्र मौजूद हैं। यह स्थान केवल सेवाएँ ही उपलब्ध नहीं कराते, बल्कि ज्ञान और विचारों के आदान-प्रदान के मंच भी बनते हैं। इसी वजह से शहरी जीवन को आधुनिक भारत का इंजन कहा जाता है। यहाँ के निवासी विभिन्न भाषाई, धार्मिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से आते हैं, जिससे विविधता का अनुभव होता है और सहिष्णुता की भावना विकसित होती है।

साथ ही, शहरी जीवन में सांस्कृतिक समृद्धि और नागरिक चेतना भी प्रबल होती है। कला दीर्घाएँ, पुस्तकालय, रंगमंच, साहित्यिक सभाएँ और जनआंदोलन जैसी गतिविधियाँ शहरों की पहचान रही हैं। चाहे वह कोलकाता की अकादमी ऑफ फाइन आर्ट्स हो या दिल्ली का इंडिया हैबिटेट सेंटर—ये स्थान सामूहिक संवाद और रचनात्मकता को बढ़ावा देते हैं। इसके अतिरिक्त, बेंगलुरु जैसे शहरों में आईटी उद्योग और स्टार्टअप संस्कृति ने पेशेवर सहयोग और नेटवर्किंग की नई संभावनाएँ खोली हैं। नागरिक स्वयं भी संगठित होकर अपने अधिकारों और सुविधाओं के लिए आवाज़ उठाते हैं। गुरुग्राम की आवासीय कल्याण समितियों द्वारा कचरा प्रबंधन और जलभराव के खिलाफ अभियान इसका उदाहरण हैं।

लेकिन इन सब सकारात्मक पहलुओं के बीच शहरीकरण का एक दूसरा चेहरा भी है, जो कहीं अधिक गहन सामाजिक संकट की ओर इशारा करता है। सबसे बड़ी चुनौती है सामुदायिक बंधनों का क्षरण। गाँवों में जहाँ पड़ोसियों और रिश्तेदारों के बीच गहरे संबंध होते हैं, वहीं शहरों में रहने वाले लोग अक्सर अनजानेपन और दूरी का अनुभव करते हैं। गेटेड सोसाइटी और उच्च-आय वर्गीय कॉलोनियों ने सामाजिक जीवन को खंडित कर दिया है। लोग अपने छोटे-से घेरे में सिमट जाते हैं और “अन्य” के प्रति अविश्वास पनपने लगता है। यह प्रवृत्ति समाज में सामूहिक विश्वास और सहयोग की भावना को कमजोर करती है।

शहरी जीवन का दूसरा बड़ा संकट है अकेलापन। भीड़भाड़ और व्यस्तता के बावजूद लोग व्यक्तिगत रूप से अलग-थलग पड़ जाते हैं। महानगरों में लाखों लोग रहते हैं, परंतु अधिकांश अपने पड़ोसियों को भी नहीं पहचानते। एक सर्वेक्षण के अनुसार लगभग 40 प्रतिशत शहरी भारतीयों ने स्वीकार किया कि वे खुद को अकेला महसूस करते हैं। यह आँकड़ा दिखाता है कि आधुनिक शहरी जीवन ने भले ही हमें भौतिक सुविधाएँ दी हों, परंतु भावनात्मक और सामाजिक रूप से हमें कमजोर किया है।

तकनीक ने भी इस अकेलेपन को बढ़ाया है। स्मार्टफोन और सोशल मीडिया पर निर्भरता ने वास्तविक मानवीय बातचीत को सीमित कर दिया है। मेट्रो या बस में सफर करते हुए अक्सर लोग एक-दूसरे से संवाद नहीं करते, बल्कि मोबाइल स्क्रीन में डूबे रहते हैं। यह प्रवृत्ति समाजशास्त्री जॉर्ज सिमेल की उस धारणा को सही साबित करती है जिसमें उन्होंने आधुनिक शहरों को “भीड़ में अकेलेपन” का प्रतीक कहा था।

साथ ही, शहरी जीवन की भीड़-भाड़ और संसाधनों की कमी ने तनाव और संघर्ष को भी जन्म दिया है। पानी, बिजली, यातायात और पार्किंग जैसे मुद्दों पर झगड़े आम हो गए हैं। दिल्ली जैसे शहरों में पार्किंग विवाद कई बार हिंसा तक पहुँच जाते हैं। वाहन प्रदूषण और सड़क दुर्घटनाएँ भी नागरिक जीवन की असुरक्षा को बढ़ाती हैं। पैदल चलने वालों के लिए सुरक्षित स्थान कम होते जा रहे हैं, जिससे साझा सार्वजनिक जीवन घटता जा रहा है। यह कमी सामाजिक पूँजी पर सीधा आघात करती है, क्योंकि खुले और सुरक्षित सार्वजनिक स्थल ही लोगों के बीच संवाद और सहयोग को जन्म देते हैं।

इस प्रकार, शहरीकरण ने भारत के सामाजिक पूँजी पर दोतरफा असर डाला है। एक ओर इसने शिक्षा, स्वास्थ्य, विविधता और सांस्कृतिक उन्नति के अवसर दिए, तो दूसरी ओर इसने रिश्तों को सतही, अस्थिर और अविश्वासी बना दिया। आर्थिक विकास की गति में हमने भावनात्मक और सामुदायिक जीवन को पीछे छोड़ दिया।

आवश्यक है कि शहरी नियोजन केवल भौतिक ढाँचे तक सीमित न रहे, बल्कि उसमें मानवीय संबंधों की गरिमा और सामुदायिक जीवन की बहाली को भी स्थान मिले। हमें ऐसे सार्वजनिक स्थल चाहिए जहाँ लोग सहजता से मिल सकें और संवाद कर सकें। आवासीय कल्याण समितियों को केवल प्रशासनिक इकाई न मानकर सामाजिक मेलजोल और सामुदायिक उत्सवों का मंच बनाया जाए। शहरों में त्योहारों, मेलों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जाए, ताकि लोग एक-दूसरे के करीब आ सकें। साथ ही, सस्ते और समावेशी आवास की नीतियाँ तैयार हों, जिससे वर्ग आधारित विभाजन कम हो सके।

भारत का भविष्य निस्संदेह शहरी होगा, परंतु यह भविष्य तभी स्थायी और समृद्ध हो सकता है जब शहरीकरण केवल आर्थिक नहीं बल्कि सामाजिक पूँजी का भी संवाहक बने। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि विकास की दौड़ में रिश्तों का ताना-बाना न टूटे। शहर तभी सच्चे अर्थों में प्रगतिशील बनेंगे जब वे न केवल समृद्धि और अवसर देंगे, बल्कि विश्वास, सहयोग और सामूहिक कल्याण की भावना को भी जीवित रखेंगे।


-प्रियंका सौरभ 

दस लाख की इनामी नक्सली कमांडर मारा गया

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झारखंड के गोइलकेरा थाना क्षेत्र आराहासा पंचायत के रेला गांव स्थित बुरजूवा पहाड़ी के पास रविवार के अहले सुबह पुलिस से मुठभेड़ में में दस लाख का इनामी नक्सली जोनल कमांडर अमित हांसदा उर्फ अपटन मारा गया। एसपी ने मुठभेड़ की पुष्टि की है। मुठभेड़ आज सुबह हुई। सूत्रों के अनुसार सुरक्षा बल और क्सलियों के बीच मुठभेड़ जारी है।

चाईबासा पुलिस को गुप्त सूचना मिली थी कि गोइलकेरा थाना क्षेत्र में रेला पराल क्षेत्र में नक्सली संगठन के सक्रिय सदस्य मौजूद हैं। जइसके बाद पुलिस व सीआरपीएफ टीम ने इलाके में सर्च ऑपरेशन चलाया।पुलिस की सर्च के दौरान नक्सलियों ने उन पर फायरिंग शुरू कर दी। इसके बाद दोनों ओर से गोलीबारी शुरू हो गई।सुरक्षाबलों ने पूरे पहाड़ी क्षेत्र को घेर कर नक्सलियों के भागने के रास्ते बंद करने की कोशिश की जा रही है। चाईबासा एसपी लगातार स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं । क्षेत्र में अतिरिक्त पुलिस बल को भी इलाके में भेजा गया है।

उ.प्र. परिवहन बेड़े के सभी चालकों की हर तीन माह में अनिवार्य मैडिकल जांच

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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सड़क सुरक्षा को सबसे बड़ी चुनौती मानते हुए आदेश दिए कि परिवहन विभाग को अब सभी बस चालकों का हर तीन महीने में अनिवार्य मेडिकल और फिटनेस टेस्ट कराना होगा। खासतौर पर आंखों की नियमित जांच जरूरी होगी, ताकि दृष्टि दोष के कारण यात्रियों की जान जोखिम में न पड़े।

शनिवार को इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान लखनऊ में परिवहन विभाग की विभिन्न सेवाओं के शुभारंभ, डिजिटल लोकार्पण और शिलान्यास कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने कहा कि यात्री की जान बचाना विभाग की सकारात्मक छवि बनाता है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में लापरवाही से गाड़ी चलाने की छूट किसी को नहीं दी जा सकती।लापरवाही से होने वाली मौतें न केवल बदनामी लाती हैं बल्कि आर्थिक नुकसान भी कराती हैं।

उन्होने सड़क सुरक्षा पर जोर दिया। मुख्यमंत्री ने कहा कि इसके लिए बड़े स्तर पर जन-जागरूकता अभियान चलाना होगा। इसमें आइआइटी खड़गपुर जैसी तकनीकी संस्थाओं की मदद, पुलिस और अन्य विभागों का सहयोग, तथा स्कूलों में ट्रैफिक नियमों पर शिक्षा को शामिल करना होगा। हेलमेट, सीट बेल्ट, नशे में ड्राइविंग और ओवर स्पीडिंग जैसी स्थितियों पर कड़े नियम लागू होंगे और मीडिया के जरिए इनका व्यापक प्रचार किया जाएगा।मुख्यमंत्री ने कहा कि कानून कभी-कभी कठोर लगता है लेकिन यही नागरिकों की सुरक्षा और जीवन की गारंटी है। कार्यक्रम में बताया कि पुलिस द्वारा विकसित एप से दुर्घटना संभावित क्षेत्रों की पहचान की गई, जिससे कई जगह हादसों की संख्या महीने में 18 से घटकर सिर्फ तीन रह गई है।

परिवहन और नगर विकास विभाग अगर गांव-गांव बेहतर पब्लिक ट्रांसपोर्ट और कनेक्टिविटी दें तो न केवल प्रदूषण घटेगा, बल्कि करीब तीन लाख रोजगार भी पैदा होंगे। उन्होंने इलेक्ट्रिक बसों को पर्यावरण संरक्षण और बेहतर यात्रा अनुभव का साधन बताते हुए कहा कि चार्जिंग स्टेशनों के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी जरूरी है।

साथ ही, पुराने वाहनों की स्क्रैपिंग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए ताकि प्रदूषण और हादसों का खतरा कम हो। ड्राइविंग ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट को मजबूत बनाने और विभाग को जवाबदेही के साथ काम करने की नसीहत दी। परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह ने कहा कि आने वाले समय में इलेक्ट्रिक बसें गांव-गांव तक पहुंचेंगी।कार्यक्रम में महापौर सुषमा खर्कवाल, प्रमुख सचिव अमित गुप्ता, परिवहन आयुक्त ब्रजेश नारायण सिंह सहित कई जनप्रतिनिधि और अधिकारी मौजूद रहे।

भारत की चिप क्रांति : सपनों से साकार होती हकीकत

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भारत आज उस ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ा है जहाँ तकनीकी आत्मनिर्भरता केवल आर्थिक प्रगति का साधन नहीं, बल्कि राष्ट्रीय गर्व और वैश्विक नेतृत्व की दिशा भी बन गई है। दशकों तक चिप और सेमीकंडक्टर क्षेत्र में केवल उपभोक्ता के रूप में पहचाने जाने वाला भारत अब निर्माता और आपूर्तिकर्ता बनने की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। यह परिवर्तन केवल तकनीकी नहीं, बल्कि आत्मविश्वास और आत्मगौरव का भी प्रतीक है। सेमीकंडक्टर मिशन, वैश्विक सहयोग, और शिक्षा व अनुसंधान में निवेश ने भारत की चिप क्रांति को साकार रूप दिया है।

— डॉ सत्यवान सौरभ

भारत ने सेमीकंडक्टर निर्माण के क्षेत्र में ऐतिहासिक कदम उठाते हुए विश्व स्तर पर अपनी तकनीकी पहचान बनाई है। गुजरात और कर्नाटक में चिप पार्क, विदेशी निवेश और शिक्षा संस्थानों की सक्रिय भागीदारी ने इस अभियान को गति दी है। शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन 2025 में भारत ने सुरक्षा, संपर्क और अवसर के तीन स्तंभों पर बल देकर तकनीक को साझा भविष्य का आधार बताया। यह चिप क्रांति न केवल आर्थिक विकास का मार्ग प्रशस्त कर रही है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा, नवाचार और आत्मगौरव की नई उड़ान भी भर रही है।

भारत आज उस ऐतिहासिक दौर से गुजर रहा है जहाँ सपने केवल सपने नहीं रह गए हैं, बल्कि नये यथार्थ का रूप ले चुके हैं। दशकों तक जिस देश को तकनीक के क्षेत्र में उपभोक्ता भर समझा जाता था, वही देश आज निर्माता, आपूर्तिकर्ता और नवप्रवर्तक बनने की राह पर तेज़ी से बढ़ रहा है। सेमीकंडक्टर और चिप निर्माण की दिशा में भारत के प्रयास इसी परिवर्तन की सबसे सशक्त गवाही देते हैं। यह केवल तकनीकी विकास का संकेत नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय आत्मगौरव, आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास की उड़ान भी है।

चिप अथवा सेमीकंडक्टर आज के युग की सबसे अनिवार्य धुरी है। बीसवीं शताब्दी में तेल ने जैसे विश्व राजनीति और अर्थव्यवस्था को संचालित किया था, उसी प्रकार इक्कीसवीं शताब्दी में चिप वैश्विक शक्ति संतुलन का आधार बन चुकी है। आधुनिक जीवन का कोई भी क्षेत्र इससे अछूता नहीं है। मोबाइल फ़ोन, कंप्यूटर, स्मार्ट यंत्र, वाहन, रेल, हवाई जहाज़, रक्षा उपकरण, उपग्रह, स्वास्थ्य सेवाओं के उन्नत यंत्र, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और रोबोट तक—हर क्षेत्र में चिप की अनिवार्यता स्पष्ट दिखाई देती है। इसीलिए जो राष्ट्र इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर और सशक्त है, वही आने वाले समय में विश्व की राजनीति और अर्थव्यवस्था में निर्णायक भूमिका निभाएगा।

भारत की स्थिति लंबे समय तक इस क्षेत्र में कमजोर रही। भारी पूंजी निवेश, लगातार ऊर्जा और जल संसाधनों की आवश्यकता, प्रशिक्षित मानव संसाधन की कमी और अनुसंधान की उपेक्षा जैसे कारणों से भारत पिछड़ता रहा। चीन, ताइवान, अमेरिका और कोरिया जैसे देशों ने इस स्थिति का लाभ उठाकर वैश्विक बाज़ार पर प्रभुत्व कायम किया और भारत को केवल एक विशाल उपभोक्ता बाज़ार के रूप में देखा जाने लगा। किन्तु राष्ट्रों के जीवन में भी ऐसे क्षण आते हैं जब परिस्थितियाँ बदली हुई राह पर चलने को बाध्य करती हैं। भारत के लिए भी यही अवसर बीते कुछ वर्षों में आया और उसने चुनौती को अवसर में बदलने का संकल्प लिया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में प्रारम्भ हुए ‘डिजिटल इंडिया’, ‘मेक इन इंडिया’ और ‘स्टार्टअप इंडिया’ जैसे अभियानों ने तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में नया उत्साह जगाया। इन अभियानों ने यह संदेश दिया कि भारत अब केवल उपभोक्ता नहीं, बल्कि निर्माता भी बनेगा। वर्ष 2021 में घोषित भारत सेमीकंडक्टर मिशन ने इस संकल्प को ठोस आधार प्रदान किया। इसके अंतर्गत गुजरात और कर्नाटक में चिप निर्माण पार्क स्थापित करने की दिशा में कार्य प्रारम्भ हुआ। ताइवान, जापान और अमेरिका की कंपनियों ने भारत में निवेश और सहयोग की इच्छा प्रकट की। अरबों डॉलर के निवेश प्रस्ताव आए और अनुसंधान संस्थानों को सीधे इस अभियान से जोड़ा गया।

कोविड महामारी ने वैश्विक आपूर्ति शृंखला की कमजोरियों को उजागर कर दिया। जब चीन और ताइवान के कारखाने ठप पड़े तो पूरी दुनिया में मोबाइल, वाहन और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का संकट खड़ा हो गया। कीमतें बढ़ीं, उत्पादन ठप हुआ और उपभोक्ताओं को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उस कठिन दौर में भारत ने महसूस किया कि तकनीकी आत्मनिर्भरता केवल सुविधा का विषय नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक स्वतंत्रता का भी प्रश्न है। तभी भारत ने यह अवसर पहचाना और अपने को आपूर्ति शृंखला का विश्वसनीय केंद्र बनाने की दिशा में कदम बढ़ाए।

वर्ष 2025 में चीन के तियानजिन नगर में सम्पन्न शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन इस संदर्भ में अत्यंत महत्वपूर्ण रहा। भारत ने यहाँ अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट करते हुए सुरक्षा, संपर्क और अवसर के तीन स्तंभ प्रस्तुत किए। भारत ने कहा कि तकनीक केवल व्यापार और उद्योग का विषय नहीं, बल्कि साझा सुरक्षा, स्थायी संपर्क और सामूहिक अवसर का आधार है। सेमीकंडक्टर विकास और डिजिटल नवाचार को सामूहिक प्राथमिकता बनाने का भारत का आह्वान इस सम्मेलन की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि रहा। तियानजिन घोषणा पत्र में भारत की यह दृष्टि परिलक्षित हुई, जिससे यह प्रमाणित हो गया कि विश्व समुदाय भारत के बढ़ते तकनीकी महत्व को स्वीकार कर रहा है।

भारत ने इस प्रयास को केवल उद्योग तक सीमित नहीं रखा है। शिक्षा संस्थानों, अनुसंधान केन्द्रों और स्टार्टअप्स को भी इस अभियान से जोड़ा जा रहा है। आईआईटी, एनआईटी और अन्य विश्वविद्यालयों में चिप डिजाइनिंग, नैनोटेक्नोलॉजी और एंबेडेड सिस्टम से जुड़े पाठ्यक्रम आरम्भ किए गए हैं। युवाओं को अनुसंधान और नवाचार की दिशा में प्रेरित किया जा रहा है। इस प्रकार आने वाली पीढ़ी को तकनीकी नेतृत्व सौंपने की ठोस तैयारी की जा रही है।

सेमीकंडक्टर क्षेत्र में भारत का यह अभियान रोज़गार सृजन और औद्योगिक विकास का भी आधार बनेगा। अनुमान है कि आने वाले दस वर्षों में इस क्षेत्र से दस लाख से अधिक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोज़गार के अवसर पैदा होंगे। निर्माण, डिजाइनिंग, परीक्षण और वितरण के स्तर पर नये उद्योग और स्टार्टअप्स उभरेंगे। यह केवल तकनीकी विकास नहीं, बल्कि आर्थिक आत्मनिर्भरता की दिशा में भी ऐतिहासिक कदम होगा।

इस अभियान का एक महत्वपूर्ण पहलू राष्ट्रीय सुरक्षा से भी जुड़ा है। रक्षा उपकरणों और उपग्रह तकनीक में आत्मनिर्भरता बढ़ने से भारत की रणनीतिक स्थिति सुदृढ़ होगी। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और साइबर सुरक्षा में भी भारत का प्रभाव बढ़ेगा। स्पष्ट है कि चिप निर्माण केवल उद्योग की आवश्यकता नहीं, बल्कि राष्ट्र की सुरक्षा और संप्रभुता से भी गहरे रूप से जुड़ा है।

हालाँकि, चुनौतियाँ अभी भी शेष हैं। बिजली और जल की सतत आपूर्ति, अनुसंधान में निरंतर निवेश, वैश्विक बाज़ार में प्रतिस्पर्धा और पर्यावरणीय संतुलन जैसी बाधाएँ इस यात्रा को कठिन बना सकती हैं। किंतु सरकार, उद्योग और समाज के संयुक्त प्रयास से इन चुनौतियों का समाधान अवश्य होगा। भारत ने जिस आत्मविश्वास और संकल्प के साथ इस यात्रा का आरम्भ किया है, उससे यह स्पष्ट है कि वह पीछे मुड़कर देखने वाला नहीं।

आज भारत की चिप क्रांति केवल तकनीकी आत्मनिर्भरता की कहानी नहीं, बल्कि यह आत्मगौरव, आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता की महागाथा भी है। उम्मीदों की चिप सचमुच हौसलों को पंख दे चुकी है। बीसवीं शताब्दी में तेल ने जैसे विश्व व्यवस्था को बदला, उसी प्रकार इक्कीसवीं शताब्दी में चिप और तकनीक वैश्विक नेतृत्व का निर्धारण करेगी। भारत ने इस क्षेत्र में अपने कदम दृढ़तापूर्वक बढ़ा दिए हैं और अब उसका सपना धीरे-धीरे साकार होता दिख रहा है।

डॉ सत्यवान सौरभ

पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान बीमार, अस्पताल में भर्ती

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पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान की तबीयत ज्यादा बिगड़ने पर उन्हें मोहाली के फोर्टिस अस्पताल में भर्ती करवाया गया है। सीएम मान को रात में दाखिल करवाया गया है। इससे पहले उनकी तबीयत ठीक नहीं होने की वजह से शुक्रवार शाम को होने वाली कैबिनेट की बैठक को स्थगित कर दिया गया था। इस कैबिनेट की बैठक में प्रदेश में बाढ़ के हालातों के चलते ही राहत कार्यों में तेजी लाने के संबंध में चर्चा की जानी थी।

फोर्टिस अस्पताल के बाहर पुलिस की तरफ से सुरक्षा व्यवस्था भी कड़ी कर दी गई है। अस्पताल के बाहर व मुख्य गेट पर पुलिस बल को तैनात किया गया है। एक दिन पहले सीएम मान की तबीयत उस समय खराब हुई थी, जब वह पंजाब में बाढ़ प्रभावित लोगों से मिलने के लिए पहुंचे थे। 

उत्तर प्रदेश में शिक्षकों को कैश लेस चिकित्सा का तोहफा

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शिक्षक दिवस पर सीएम योगी ने लखनऊ में प्रदेश के 81 अध्यापकों को  सम्मानित किया।। सम्मानित होने वाले सभी शिक्षकों को पुरस्कृत भी किया गया। इस मौके पर मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश के सभी शिक्षकों को कैशलेश उपचार की सुविधा देने की घोषणा की। कैशलेश उपचार की सुविधा पाने वालों में बेसिक, माध्यमिक के राजकीय, एडेड, सेल्फ फाइनेंस के सभी शिक्षक शामिल होंगे। इससे करीब नौ लाख शिक्षक लाभान्वित होंगे।कैशलेस योजना में शिक्षामित्रों, अनुदेशक, रसोइया को भी जोड़ा जाएगा। यानी इन सभी को भी चिकित्सा का लाभ मिलेगा। शिक्षामित्र, अनुदेशक का मानदेय भी जल्द बढ़ेगा। इसके लिए कमेटी बन गई है। सीएम ने कहा कि कमेटी की रिपोर्ट आने वाली है। उसके आधार पर सकारात्मक निर्णय लेंगे।
राजधानी लखनऊ में शिक्षक दिवस के अवसर पर लोकभवन में आयोजित कार्यक्रम में इस मौके पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने परिषदीय विद्यालयों के 66 व माध्यमिक शिक्षा विभाग के 15 शिक्षकों को राज्य अध्यापक पुरस्कार देकर सम्मानित किया। मुख्यमंत्री राजकीय माध्यमिक विद्यालयों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा व मॉनिटरिंग के लिए टैबलेट, विद्यालयों में स्मार्ट क्लास के लिए प्रधानाचार्यों को टैबलेट व प्रमाण पत्र भी वितरित किए।इ उन्होंने कहा कि बेसिक शिक्षा ने बाल वाटिका का एक नया रूप लाया है। इस सत्र में पांच हजार से अधिक बाल वाटिकाएं शुरू हो चुकी हैं। यहां पढ़ने वाले बच्चों को मुख्यमंत्री पोषण योजना से से जोड़ा जा रहा हैं। सीएम ने कहा कि एससीईआरटी से कहना चाहूंगा कि पुस्तकों में भारतीय पात्रों का चयन करें। हमारे यहां रामायण और महाभारत से अच्छे पात्र कहीं नहीं मिलेंगे। जब हमारे घरों में दादी-नानी कहानी सुनाती हैं तो देश के महापुरुषों और नायकों की कहानियां सुनाती हैं। ताकि बच्चे उनके जैसा बनने के बारे में सोचें। बच्चों को खेल −खेल में सिखाइए। किताबें पतली रखें, बहुत मोटी न हों, उसे देखकर बच्चे भागें नहीं, बल्कि पढ़ने के लिए रुचि पैदा हो। 

इस मौके पर बेसिक शिक्षा राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) संदीप सिंह ने सभी का स्वागत करते हुए कहा कि आज का दिन काफी प्रेरणादायी है। आज हम लोग डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती मना रहे हैं। उनके योगदान को याद कर रहे हैं। शिक्षकों को सिर्फ सम्मानित ही नहीं, उनकी निष्ठा और योगदान को प्रणाम करने के लिए यह कार्यक्रम है।

मंत्री ने आगे कहा कि एनसीआरटीसी की किताबों को बेसिक में भी लागू करने जा रहे हैं। कक्षा चार तक अगले साल लागू करेंगे। इसे आठ तक ले जाएंगे। केजीबीवी 13वीं तक अपग्रेड हो रहे हैं। हर जिले में दो-दो सीएम मॉडल कंपोजिट विद्यालय बनेंगे।माध्यमिक शिक्षा राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) गुलाब देवी ने कहा कि विभाग के 15 शिक्षक सम्मानित किए जा रहे हैं। कई सुधार हो रहे हैं। शिक्षकों की तैनाती ऑनलाइन की जा रही है।

उन्होंने कहा कि व्यावसायिक शिक्षा को भी लागू कर रहे हैं। संस्कृत विद्यालयों का भी विकास हो रहा है। इसमें जनप्रतिनिधि का भी सहयोग ले सकते हैं। आईसीटी लैब की स्थापना हो रही है। प्रधानाचार्य को टैबलेट दिया जा रहा है। 2017 से नकल पर नकेल लगी है। नकल माफिया पराजित हो गए हैं। कोई पकड़ा गया तो एक करोड़ का जुर्माना, आजीवन कारावास होगा। मार्कशीट इतनी मजबूत बनाई जा रही है कि इसे कोई फाड़ भी नहीं सकता है।


सुरक्षा बलों और नक्सलियों में मुठभेड़,छह नक्सली मरे

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छत्तीसगढ़ में दंतेवाड़ा और नारायणपुर जिले की सीमा पर सुरक्षा बलों और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ हुई है। छह नक्सलियों के मारे जाने की सूचना है। मुठभेड़ अभी भी जारी है। मारे गए नक्सलियों की संख्या में इजाफा हो सकता है।

पुलिस को सूचना थी कि नक्सलियों की एक बड़ी टीम अबूझमाड़ के एक इलाके में जमा है और किसी बड़ी बैठक की तैयारी चल रही है। इसके बाद नारायणपुर, दंतेवाड़ा से डीआरजी के जवानों को ऑपरेशन पर रवाना किया गया था। सवेरे लगभग नौ बजे जवानों का नक्सलियों से सामना हुआ।   इसके बाद से लगातार दोनों तरफ से गोलीबारी चल रही है।