लद्दाख को राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर जारी आंदोलन हिंसक हुआ, चार मरे

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लेह में छात्र आंदोलन के दौरान हिंसा के बाद आागजनी ।फोटो पीटीआई

लेह, 24 सितंबर (भाषा) लद्दाख को राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर बुधवार को यहां जारी आंदोलन हिंसक हो गया। इस दौरान सड़कों पर आगजनी और झड़पें हुई, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई और 22 पुलिसकर्मियों समेत कम से कम 45 लोग घायल हो गए। अधिकारियों ने यह जानकारी दी।

लद्दाख को राज्य का दर्जा देने और छठी अनुसूची के विस्तार की मांग को लेकर जारी आंदोलन के हिंसक रूप लेने के बाद जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने 15 दिन से जारी अपनी भूख हड़ताल बुधवार को समाप्त कर दी।

उपराज्यपाल कवींद्र गुप्ता ने कहा कि  हिंसा के लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान की जाएगी और उनके खिलाफ कानून के अनुसार कड़ी कार्रवाई की जाएगी:।केंद्र हमेशा बातचीत के लिए तैयार रहा है। 25 जुलाई को प्रस्तावित बैठक के लिए सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली थी: लद्दाख में हुई हिंसा पर सरकारी सूत्र।

कई घायलों की हालत गंभीर होने के कारण मृतकों की संख्या बढ़ने की आशंका है।

सुबह की शुरुआत लद्दाख की राजधानी में पूर्ण बंद के साथ हुई। सैकड़ों लोग सड़कों पर उतर आए। भाजपा कार्यालय में तोड़फोड़ की गई और कई वाहनों को आग लगा दी गई।

लद्दाख की राजधानी में पूर्ण बंद के बीच आग की लपटें और काला धुआं देखा जा सकता था।

अधिकारियों ने बताया कि प्रदर्शनकारियों द्वारा व्यापक हिंसा शुरू करने के बाद स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए पुलिस को गोलीबारी और आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े।

प्रशासन ने लद्दाख के लेह जिले में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा 163 के तहत निषेधाज्ञा लागू कर दी।

अधिकारियों ने बताया कि निषेधाज्ञा के तहत पांच या इससे अधिक व्यक्तियों के एकत्र होने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।

कांग्रेस नेता एवं पार्षद फुंटसोग स्टैनजिन त्सेपाग पर मंगलवार को धरना स्थल पर कथित रूप से भड़काऊ भाषण देने के लिए मामला दर्ज किया गया।

लेह एपेक्स बॉडी (एलएबी) की युवा शाखा ने विरोध प्रदर्शन और बंद का आह्वान किया था क्योंकि 10 सितंबर से 35 दिन की भूख हड़ताल पर बैठे 15 लोगों में से दो की हालत मंगलवार शाम बिगड़ने के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

यह अनशन उनकी चार सूत्री मांगों – राज्य का दर्जा, छठी अनुसूची का विस्तार, लेह और कारगिल के लिए अलग लोकसभा सीट और नौकरियों में आरक्षण – के समर्थन में केंद्र पर बातचीत फिर से शुरू करने के लिए दबाव बनाने के लिए था।

वांगचुक ने ऑनलाइन संवाददाता सम्मेलन में कहा कि प्रदर्शनकारियों में से दो, 72 वर्षीय एक पुरुष और 62 वर्षीय एक महिला को मंगलवार को अस्पताल ले जाया गया था और कहा कि संभवतः यह हिंसक विरोध का तात्कालिक कारण था।

स्थिति तेजी से बिगड़ने पर उन्होंने अपील की और घोषणा की कि वे अपना अनशन समाप्त कर रहे हैं।

वांगचुक ने आंदोलन स्थल पर बड़ी संख्या में एकत्र अपने समर्थकों से कहा, ‘‘मैं लद्दाख के युवाओं से हिंसा तुरंत रोकने का अनुरोध करता हूं क्योंकि इससे हमारे उद्देश्य को नुकसान पहुंचता है तथा स्थिति और बिगड़ती है। हम लद्दाख और देश में अस्थिरता नहीं चाहते।’’

उन्होंने कहा, ‘‘यह लद्दाख और मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से सबसे दुखद दिन है क्योंकि पिछले पांच वर्षों से हम जिस रास्ते पर चल रहे हैं वह शांतिपूर्ण था… हमने पांच मौकों पर भूख हड़ताल की और लेह से दिल्ली तक पैदल चले लेकिन आज हम हिंसा और आगजनी की घटनाओं के कारण शांति के अपने संदेश को विफल होते हुए देख रहे हैं।’’

उन्होंने प्रशासन से आंसू गैस के गोले दागना बंद करने की भी अपील की तथा सरकार से अधिक संवेदनशील होने का आग्रह किया।

वांगचुक ने कहा, ‘‘हम अपना अनशन तुरंत समाप्त कर रहे हैं… यदि हमारे युवा अपनी जान गंवाते हैं तो भूख हड़ताल का उद्देश्य पूरा नहीं होगा।”

उन्होंने कहा, ‘‘अब ठंडे दिमाग से बातचीत को आगे बढ़ाने का समय आ गया है। हम अपना आंदोलन अहिंसक रखेंगे और मैं सरकार से भी कहना चाहता हूं कि वह हमारे शांति संदेश को सुने… जब शांति के संदेश की अनदेखी की जाती है, तो ऐसी स्थिति पैदा होती है।’’

वांगचुक ने कहा कि यह स्थिति युवाओं में हताशा का नतीजा है, क्योंकि उन्हें रोजगार नहीं मिल रहा है। उन्होंने दावा किया कि लद्दाख में कोई लोकतंत्र नहीं है और जनता से किया गया छठी अनुसूची का वादा भी पूरा नहीं किया गया है।

संविधान की छठी अनुसूची शासन, राष्ट्रपति और राज्यपाल की शक्तियों, स्थानीय निकायों के प्रकार, वैकल्पिक न्यायिक तंत्र और स्वायत्त परिषदों के माध्यम से प्रयोग की जाने वाली वित्तीय शक्तियों के संदर्भ में विशेष प्रावधान करती है। छठी अनुसूची चार पूर्वोत्तर राज्यों त्रिपुरा, मेघालय, मिजोरम और असम की जनजातीय आबादी के लिए है।

गृह मंत्रालय और लद्दाख के प्रतिनिधियों, जिनमें एलएबी और करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (केडीए) के सदस्य शामिल हैं, के बीच छह अक्टूबर को वार्ता का एक नया दौर निर्धारित है।दोनों संगठन पिछले चार वर्षों से अपनी मांगों के समर्थन में संयुक्त रूप से आंदोलन कर रहे हैं और अतीत में सरकार के साथ कई दौर की वार्ता भी कर चुके हैं।अधिकारियों ने बताया कि प्रदर्शन के आह्वान पर लेह शहर में बंद रहा और एनडीएस स्मारक मैदान में बड़ी संख्या में लोग एकत्र हुए तथा बाद में छठी अनुसूची और राज्य के समर्थन में नारे लगाते हुए शहर की सड़कों पर मार्च निकाला।

उन्होंने बताया कि स्थिति तब और बिगड़ गई जब कुछ युवकों ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और ‘हिल काउंसिल’ के मुख्यालय पर पथराव किया। उन्होंने बताया कि शहरभर में बड़ी संख्या में तैनात पुलिस और अर्धसैनिक बलों ने स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़े।

युवाओं के समूहों ने एक वाहन और कुछ अन्य वाहनों में आग लगा दी, और भाजपा कार्यालय को भी निशाना बनाया। उन्होंने परिसर और एक इमारत में मौजूद फर्नीचर और कागजात में आग लगा दी।

इस बीच उपराज्यपाल कविंदर गुप्ता ने कहा कि लद्दाख के हिंसा प्रभावित लेह जिले में और अधिक जानमाल की हानि रोकने के लिए कर्फ्यू लगाया गया है।उन्होंने कहा कि लद्दाख में शांतिपूर्ण माहौल बिगाड़ने की साजिश के तहत हिंसा भड़काई गई।

गुप्ता ने कहा कि हिंसा के लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान की जाएगी और देश के कानून के अनुसार उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

लगभग चार महीने तक रुकी रही वार्ता के बाद, केंद्र ने 20 सितंबर को एलएबी और केडीए को वार्ता के लिए आमंत्रित किया था।

पूर्व सांसद एवं एलएबी के अध्यक्ष थुपस्तान छेवांग, जिन्होंने 27 मई को अंतिम दौर की वार्ता के बाद निकाय से इस्तीफा दे दिया था, पुनः अध्यक्ष पद पर आसीन हो गये हैं और वार्ता के दौरान उनके संयुक्त प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने की संभावना है।

कांग्रेस ने एलएबी से बाहर होने का फैसला तब किया जब कुछ घटकों ने यह विचार व्यक्त किया कि अगले महीने ‘लेह हिल काउंसिल’ के चुनावों के मद्देनजर एलएबी प्रतिनिधिमंडल को गैर-राजनीतिक होना चाहिए।

घूमने निकले आईजी का मोबाइल झपटा

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मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में अपराधियों ने घूमने पत्नी के साथ निकले आई जी इटैंलिजैंस का मोबाइल लूट लिया। शहर के सबसे सुरक्षित माने जाने वाले इलाके चार इमली में मंगलवार देर रात करीब 11 बजकर 30 मिनट पर एक हाई-प्रोफाइल लूट हुई। इस घटना से इलाके में हड़कंप मच गया। पुलिस लुटेरों की तलाश में है।

आईजी इंटेलिजेंस डॉ. आशीष (आईपीएस) अपनी पत्नी के साथ नाइट वॉक कर रहे थे, तभी पीछे से बाइक पर सवार दो अज्ञात बदमाश आए और उनका मोबाइल फोन छीनकर फरार हो गए। वारदात इतनी फुर्ती से हुई कि दंपति को संभलने तक का मौका नहीं मिला।घटना की सूचना मिलते ही पुलिस प्रशासन में हड़कंप मच गया.।क्राइम ब्रांच समेत शहर के चार थानों की टीमें अलर्ट मोड पर आ गई हैं। बदमाशों का सुराग लगाने के लिए इलाके के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली जा रही है। पुलिस ने शहर के अलग-अलग इलाकों में तलाशी अभियान तेज कर दिया है। पुलिस पर भी जल्द से जल्द आरोपियों को पकड़ने का दबाव बढ़ गया है। एसीपी उमेश तिवारी ने कहा कि अपराधियों की तलाश और पहचान के लिए सीसीटीवी खंगाले जा रहे हैं। कई थानों की टीमों को अलर्ट किया गया है। जल्दी ही अपराधियों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा।

एच-वन-बी वीज़ा विवाद और आत्मनिर्भर भारत का अवसर

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(अमेरिकी एच-वन-बी वीज़ा विवाद : भारतीय प्रवासी के लिए संकट, भारत के लिए अवसर)  

अमेरिका का नया एच-वन-बी वीज़ा शुल्क केवल आप्रवासन नीति का मुद्दा नहीं है बल्कि वैश्विक आर्थिक समीकरणों का संकेतक है। इससे भारतीय प्रवासी समुदाय में असुरक्षा तो बढ़ी है, लेकिन भारत के लिए यह रिवर्स ब्रेन ड्रेन का अवसर भी है। यदि लौटे हुए पेशेवरों के अनुभव, नेटवर्क और तकनीकी दक्षता को सही नीति समर्थन मिले तो भारत के स्टार्ट-अप, अनुसंधान और आत्मनिर्भर भारत अभियान को नई ऊर्जा मिल सकती है। चुनौती को अवसर में बदलकर भारत न केवल अपने कौशल पूँजी का उपयोग करेगा बल्कि वैश्विक वैल्यू चेन में भी मज़बूती से उभरेगा

– डॉ सत्यवान सौरभ

हाल ही में अमेरिका ने अपनी बहुप्रतीक्षित एच-वन-बी वीज़ा नीति में बड़ा बदलाव करते हुए नए आवेदनों पर एक लाख अमेरिकी डॉलर की भारी फीस लगाने का प्रस्ताव रखा है। यह निर्णय केवल आप्रवासन नीति का मामला नहीं है बल्कि बदलते वैश्विक आर्थिक समीकरणों और श्रम बाज़ार की गहरी हलचलों का प्रतीक है। भारतीय पेशेवर, जो अब तक एच-वन-बी वीज़ा धारकों का लगभग सत्तर प्रतिशत हिस्सा बनाते थे, इस कदम से सीधे प्रभावित हो रहे हैं। लेकिन यही संकट भारत के लिए अवसर भी ला सकता है। यदि लौटती हुई प्रतिभाओं यानी रिवर्स ब्रेन ड्रेन का सही इस्तेमाल हो तो यह आत्मनिर्भर भारत की दिशा में ऐतिहासिक मील का पत्थर साबित हो सकता है।

एच-वन-बी वीज़ा लंबे समय से अमेरिकी तकनीकी कंपनियों की रीढ़ रहा है। गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और अमेज़न जैसी दिग्गज कंपनियों में बड़ी संख्या में भारतीय आईटी पेशेवर कार्यरत हैं। किंतु अब अमेरिका में संरक्षणवादी रुझान और आर्थिक राष्ट्रवाद खुलकर सामने आ रहा है। विकसित देश अपने घरेलू श्रमिक वर्ग को संतुष्ट करने के दबाव में बाहरी प्रतिभाओं पर निर्भरता घटाने लगे हैं। यह एक विरोधाभासी स्थिति है क्योंकि अमेरिकी श्रम बाज़ार में उच्च तकनीकी क्षेत्रों में पर्याप्त घरेलू संसाधन नहीं हैं, लेकिन राजनीतिक दबाव इसे बाहर से आने वाले लोगों पर रोक लगाने के लिए मजबूर कर रहा है। अमेरिका आव्रजन को केवल श्रम गतिशीलता का विषय नहीं मानता बल्कि इसे व्यापारिक हथियार के रूप में भी प्रयोग कर रहा है। वीज़ा शुल्क में इस प्रकार की बढ़ोतरी से न केवल राजस्व अर्जित होगा बल्कि अन्य देशों पर राजनीतिक दबाव भी डाला जाएगा। इसी दौरान कनाडा, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश अपनी आप्रवासन नीतियों को उदार बना रहे हैं। इसका सीधा अर्थ है कि वैश्विक प्रतिभा प्रतिस्पर्धा का भूगोल बदल रहा है और अमेरिका का आकर्षण धीरे-धीरे कम हो सकता है।

इस नीति परिवर्तन का असर भारतीय प्रवासी समुदाय पर बहुआयामी है। एक ओर लाखों परिवारों में नौकरी की असुरक्षा और भविष्य की अनिश्चितता का माहौल बन गया है। बच्चों की पढ़ाई, सामाजिक जीवन और पारिवारिक स्थिरता पर इसका असर पड़ रहा है। वहीं दूसरी ओर भारत में इसका सकारात्मक पक्ष भी उभर रहा है। बड़ी संख्या में पेशेवर भारत लौटने के लिए प्रेरित होंगे। वे केवल पूँजी ही नहीं बल्कि वैश्विक अनुभव, नेटवर्क और तकनीकी दक्षता भी लेकर आएँगे। इस प्रकार भारत के स्टार्ट-अप और यूनिकॉर्न इकोसिस्टम को नई ऊर्जा मिल सकती है। विदेशों से लौटे पेशेवरों के पास निवेशकों का दृष्टिकोण और अंतरराष्ट्रीय बाज़ार का अनुभव होगा, जिससे भारत का उद्यमिता वातावरण और मजबूत हो सकता है।

एक और बड़ा अवसर यह है कि लौटे हुए विशेषज्ञ भारत के अनुसंधान और विकास क्षेत्र में अहम योगदान देंगे। कृत्रिम बुद्धिमत्ता, जैव प्रौद्योगिकी, क्वांटम कंप्यूटिंग और सेमीकंडक्टर जैसे क्षेत्रों में वैश्विक प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है। यदि लौटे हुए वैज्ञानिक और इंजीनियर भारतीय संस्थानों से जुड़ें तो देश में नवाचार की गति तेज़ हो सकती है। इससे आत्मनिर्भर भारत अभियान को वास्तविक बल मिलेगा। इसके अलावा डिजिटल इंडिया और मेक इन इंडिया जैसी पहलें उन प्रतिभाशाली पेशेवरों की मदद से मज़बूत होंगी जो विदेशों में आधुनिक तकनीकी अनुभव लेकर आएंगे।

भारत के लिए यह समय केवल इंतजार करने का नहीं है, बल्कि ठोस नीतिगत कदम उठाने का है। सरकार को लौटती प्रतिभाओं का स्वागत करने के लिए विशेष योजनाएँ बनानी होंगी। उदाहरण के लिए रिटर्निंग टैलेंट स्कीम के तहत विदेशों से लौटने वाले पेशेवरों को कर में छूट, निवेश प्रोत्साहन और विशेष स्टार्ट-अप पैकेज दिए जा सकते हैं। विश्वविद्यालयों और उद्योगों के बीच सहयोग के लिए उच्चस्तरीय शोध प्रयोगशालाएँ और नवाचार केंद्र विकसित किए जा सकते हैं। निजी क्षेत्र को अनुसंधान और विकास में निवेश बढ़ाने के लिए कर रियायत और प्रोत्साहन दिया जा सकता है। इसके साथ ही वेंचर कैपिटल और प्राइवेट इक्विटी फंड्स को प्रवासी पेशेवरों के अनुभव से जोड़कर वित्तीय इकोसिस्टम को मज़बूत करना आवश्यक होगा।

लौटे हुए प्रवासियों और उनके परिवारों के लिए सामाजिक पुनर्वास योजनाएँ भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं। यदि उन्हें भारत में बसने के दौरान कठिनाइयाँ झेलनी पड़ेंगी तो उनकी प्रतिभा का पूरा लाभ नहीं उठाया जा सकेगा। सरकार को शिक्षा, स्वास्थ्य और आवास जैसी बुनियादी सुविधाओं में उन्हें आसानी उपलब्ध करानी होगी ताकि वे बिना किसी झंझट के समाज और अर्थव्यवस्था का हिस्सा बन सकें।

इस प्रकार एच-वन-बी वीज़ा विवाद भारत के सामने दोहरी चुनौती पेश करता है। एक ओर लाखों प्रवासी भारतीयों की आजीविका और भविष्य की चिंता है, तो दूसरी ओर यही संकट भारत के लिए सुनहरा अवसर भी है। यदि भारत इस अवसर का लाभ उठाकर रिवर्स ब्रेन ड्रेन को अपनी ताकत बना लेता है तो आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना को नई दिशा और ऊर्जा मिलेगी। संकट हमें यह याद दिलाता है कि आत्मनिर्भरता केवल नारे से नहीं बल्कि दूरदर्शी नीतियों और वैश्विक अवसरों को साधने की क्षमता से संभव है।

– डॉo सत्यवान सौरभ,

कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने स्नातकोत्तर, स्नातक चिकित्सा शिक्षा क्षमता के विस्तार को मंजूरी दी

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नयी दिल्ली: 24 सितंबर (भाषा) केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मौजूदा केंद्रीय और राज्य सरकार के चिकित्सा महाविद्यालयों को सुदृढ़ और उन्नत करने के लिए 5,000 स्नातकोत्तर सीट बढ़ाने की योजना के तीसरे चरण को बुधवार को मंजूरी दे दी।

केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि मंत्रिमंडल ने मौजूदा सरकारी चिकित्सा महाविद्यालयों को उन्नत करने के वास्ते 5,023 एमबीबीएस सीट बढ़ाने के लिए केंद्रीय योजना के विस्तार को भी मंजूरी दी गई।

आई फोन और सिम कार्ड का बदलता सफर: क्या सिम की जरूरत खत्म हो जाएगी?

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आई फोन और सिम कार्ड का बदलता सफर: क्या सिम की जरूरत खत्म हो जाएगी?

मोबाइल फोन की दुनिया में हर कुछ वर्षों में तकनीकी बदलाव आते रहते हैं। 1990 के दशक में बड़े और भारी मोबाइल फोन से लेकर आज के स्मार्टफोन्स तक की यात्रा में एक चीज़ हमेशा महत्वपूर्ण रही है—सिम कार्ड। यही छोटा-सा कार्ड हमें टेलीकॉम नेटवर्क से जोड़ता है और कॉल, मैसेज, इंटरनेट जैसी सेवाओं का उपयोग करने की अनुमति देता है।लेकिन हाल ही में Apple ने अपने नए iPhone एडिशन (खासकर अमेरिकी बाजार में) से फिजिकल सिम स्लॉट को हटाकर केवल eSIM आधारित सिस्टम लागू कर दिया है। इसने यह बहस तेज कर दी है कि क्या आने वाले समय में सिम कार्ड की जरूरत पूरी तरह खत्म हो जाएगी?


  1. सिम कार्ड की पृष्ठभूमि

1991: सबसे पहला GSM सिम कार्ड आया। इसका आकार आज के एटीएम कार्ड जितना बड़ा था। 2000 के दशक में मिनी, माइक्रो और फिर नैनो सिम आए। 2016 से आगे: eSIM (embedded SIM) का कॉन्सेप्ट सामने आया। सिम कार्ड का विकास इस बात का प्रमाण है कि मोबाइल तकनीक लगातार छोटे, तेज और अधिक सुरक्षित समाधानों की ओर बढ़ रही है।


  1. iPhone में सिम सिस्टम का बदलाव

Apple हमेशा नई तकनीक अपनाने में अग्रणी रहा है। उदाहरण:

सबसे पहले 3.5mm हेडफोन जैक हटाया।

चार्जिंग पोर्ट को धीरे-धीरे USB-C की ओर ले गया।

अब फिजिकल सिम स्लॉट को हटाने की दिशा में कदम बढ़ाया है।

अमेरिका में लॉन्च हुए हाल के iPhone एडिशन केवल eSIM सपोर्ट करते हैं। यानी वहां खरीदे गए डिवाइस में नैनो सिम कार्ड लगाने का कोई विकल्प ही नहीं है।


  1. eSIM क्या है?

eSIM का अर्थ है Embedded SIM।

यह किसी कार्ड की तरह अलग से नहीं होता, बल्कि फोन के मदरबोर्ड पर ही चिप के रूप में मौजूद रहता है।

इसमें टेलीकॉम कंपनी की प्रोफाइल डिजिटल रूप से डाउनलोड की जाती है।

इसे हटाया या बदला नहीं जा सकता, लेकिन इसमें कई नेटवर्क प्रोफाइल स्टोर की जा सकती हैं।


  1. eSIM के फायदे
  2. जगह की बचत: फोन में सिम स्लॉट न होने से अतिरिक्त स्पेस बचता है, जिसे बैटरी या अन्य हार्डवेयर के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
  3. जलरोधक क्षमता: फिजिकल स्लॉट न होने से फोन ज्यादा वॉटरप्रूफ बनता है।
  4. नेटवर्क बदलने की सुविधा: यूज़र अलग-अलग नेटवर्क प्रोफाइल डाउनलोड कर सकता है।
  5. सुरक्षा: सिम चोरी होने या निकालकर दूसरी डिवाइस में लगाने की संभावना खत्म हो जाती है।
  6. मल्टीपल सिम: एक ही फोन में कई प्रोफाइल रखना आसान हो जाता है।

  1. eSIM की चुनौतियाँ
  2. नेटवर्क सपोर्ट: अभी सभी टेलीकॉम कंपनियां eSIM को सपोर्ट नहीं करतीं, खासकर छोटे शहरों और विकासशील देशों में।
  3. ट्रांसफर की दिक्कत: फिजिकल सिम की तरह तुरंत निकालकर दूसरे फोन में डालना संभव नहीं है।
  4. तकनीकी जटिलता: नए यूज़र्स के लिए eSIM प्रोविजनिंग और QR कोड स्कैन करना कठिन लग सकता है।
  5. आपात स्थिति: फोन खराब हो जाने पर नेटवर्क तुरंत किसी और डिवाइस में ट्रांसफर करना मुश्किल होता है।

  1. क्या सिम की जरूरत खत्म हो जाएगी?

यह सवाल दो पहलुओं से देखा जाना चाहिए:

(क) तकनीकी दृष्टि से

eSIM के बाद अब iSIM (Integrated SIM) पर काम हो रहा है, जिसमें सिम सीधे मोबाइल के चिपसेट में इंटीग्रेट हो जाएगा।

यानी भविष्य में अलग से सिम कार्ड की कल्पना ही नहीं रहेगी।

(ख) व्यावहारिक दृष्टि से

विकसित देशों में जहां नेटवर्क और तकनीक मजबूत है, वहां फिजिकल सिम का अंत जल्दी हो सकता है।

विकासशील देशों (जैसे भारत, पाकिस्तान, अफ्रीकी देश) में फिजिकल सिम अभी कई वर्षों तक बने रहेंगे, क्योंकि यहां यूज़र बेस और इंफ्रास्ट्रक्चर धीरे-धीरे बदलता है।


  1. टेलीकॉम कंपनियों पर असर

eSIM के आने से कंपनियों का सप्लाई चेन खर्च (प्लास्टिक सिम बनाना, डिस्ट्रीब्यूशन, रिटेल आउटलेट्स) कम हो जाएगा, लेकिन उन्हें डिजिटल सिस्टम और सर्वर इंफ्रास्ट्रक्चर पर ज्यादा निवेश करना होगा। ग्राहकों को बेहतर ऑनलाइन सपोर्ट देना अनिवार्य हो जाएगा।


  1. उपभोक्ता के लिए बदलाव

फायदा: यूज़र बिना स्टोर गए सीधे फोन से नया नेटवर्क एक्टिवेट कर सकता है।

चुनौती: तकनीक न जानने वाले यूज़र्स (गाँव या बुजुर्ग लोग) को शुरू में परेशानी होगी।

अंतरराष्ट्रीय यात्रा: eSIM से लोकल प्रोफाइल आसानी से डाउनलोड की जा सकेगी, जिससे रोमिंग चार्ज कम होंगे।


  1. भविष्य की संभावनाएँ
  2. पूरी तरह डिजिटल पहचान: जैसे आधार कार्ड या डिजिटल आईडी होती है, वैसे ही मोबाइल पहचान भी पूरी तरह डिजिटल हो जाएगी।
  3. सुपर कनेक्टिविटी: eSIM और iSIM इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) डिवाइसों—जैसे स्मार्ट वॉच, गाड़ियाँ, लैपटॉप—में सहजता से जुड़ जाएंगे।
  4. फिजिकल सिम का अंत: अगले 5–10 वर्षों में धीरे-धीरे दुनिया भर में फिजिकल सिम बंद हो सकते हैं, हालांकि गरीब और ग्रामीण देशों में यह संक्रमण लंबा होगा।
  5. सुरक्षा का नया अध्याय: डिजिटल सिम साइबर सुरक्षा के लिए नए चैलेंज भी पैदा करेंगे, क्योंकि हैकिंग का खतरा बढ़ सकता है।

  1. निष्कर्ष

iPhone का नया एडिशन फिजिकल सिम सिस्टम हटाकर एक संदेश देता है कि भविष्य पूरी तरह डिजिटल सिम (eSIM और iSIM) की ओर बढ़ रहा है। इसका मतलब यह है कि आने वाले समय में पारंपरिक सिम कार्ड की जरूरत लगभग खत्म हो जाएगी।

हालांकि यह बदलाव अचानक नहीं होगा। विकसित देशों में यह तेजी से लागू होगा, जबकि विकासशील देशों में फिजिकल और डिजिटल सिम कुछ समय तक साथ-साथ चलेंगे।

आखिरकार, जैसे फ्लॉपी डिस्क, सीडी और हेडफोन जैक इतिहास बन गए, वैसे ही फिजिकल सिम कार्ड भी टेक्नोलॉजी की दुनिया में सिर्फ एक याद बनकर रह जाएगा।

न्यायालय ने लापता बच्चों की तलाश के लिए विशेष ऑनलाइन पोर्टल बनाने को कहा

नयी दिल्ली: 24 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को केंद्र से कहा कि वह लापता बच्चों का पता लगाने और ऐसे मामलों की जांच के लिए गृह मंत्रालय के तत्वावधान में एक विशेष ऑनलाइन पोर्टल बनाए।

न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने उन पुलिस अधिकारियों के बीच समन्वय की कमी पर जोर दिया, जिन्हें देश के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लापता बच्चों का पता लगाने का काम सौंपा गया है।

भाजपा कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस पदाधिकारी को साड़ी पहनाई

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ठाणे: 24 सितंबर (भाषा) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की छेड़छाड़ की हुई तस्वीर साझा करने के आरोप में ठाणे में स्थानीय भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) कार्यकर्ताओं ने कथित तौर पर एक कांग्रेस पदाधिकारी को सार्वजनिक रूप से साड़ी पहना दी।

भाजपा के एक स्थानीय पदाधिकारी ने मंगलवार को इस कृत्य का बचाव करते हुए कहा कि कांग्रेस पदाधिकारी मामा उर्फ ​​प्रकाश पगारे द्वारा प्रधानमंत्री को ‘‘बदनाम’’ करने के प्रयास के जवाब में ऐसा किया गया था। इस घटना का एक वीडियो भी सामने आया है।

पगारे (72) ने कहा कि वह मंगलवार को इस कृत्य में शामिल भाजपा पदाधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करेंगे।

स्थानीय कांग्रेस पदाधिकारी ने सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री की एक छेड़छाड़ की हुई तस्वीर साझा की थी।

भाजपा की कल्याण इकाई के अध्यक्ष नंदू परब और अन्य पार्टी कार्यकर्ताओं ने मंगलवार सुबह डोंबीवली इलाके के मानपाड़ा रोड पर पगारे को रोका। उन्होंने सड़क के बीचों-बीच उन्हें जबरन साड़ी पहना दी।

इस कृत्य का बचाव करते हुए परब ने कहा कि यह प्रधानमंत्री को ‘‘बदनाम’’ करने की पगारे की कोशिश का जवाब था। परब ने कहा कि हमने मामा पगारे को सड़क पर शालू (एक महंगी साड़ी) पहनाई।’’

बाद में पगारे ने आरोप लगाया कि भाजपा कार्यकर्ताओं ने जातिसूचक गालियां दीं और झड़प के दौरान उन्हें थप्पड़ भी मारे।

कांग्रेस पदाधिकारी ने कहा कि वह अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर शिकायत दर्ज कराएंगे। उन्होंने कहा कि ‘‘भीड़ जमा करके निशाना बनाने की मानसिकता’’ और उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर अतिक्रमण बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

कांग्रेस की कल्याण इकाई के अध्यक्ष सचिन पोटे ने घटना की निंदा करते हुए दावा किया कि भाजपा कार्यकर्ताओं की यह हरकत ‘‘पूरे महिला वर्ग का अपमान’’ और एक वरिष्ठ नेता पर असभ्य हमला है।

पोटे ने इस कृत्य में शामिल लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की भी मांग की।

 कोच्चि में न्यायिक शहर के निर्माण को मंज़ूरी दी

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तिरुवनंतपुरम, 24 सितंबर (भाषा) केरल में कोच्चि के कलामस्सेरी में जल्द ही 27 एकड़ जमीन पर एक न्यायिक शहर बसाया जाएगा।

मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि राज्य मंत्रिमंडल ने बुधवार को एचएमटी लिमिटेड के स्वामित्व वाली 27 एकड़ जमीन का अधिग्रहण करके कलामस्सेरी में प्रस्तावित न्यायिक शहर की स्थापना को सैद्धांतिक मंज़ूरी दे दी।

बयान के अनुसार, गृह विभाग को परियोजना के क्रियान्वयन के लिए आवश्यक प्रारंभिक कदम उठाने और केंद्रीय सहायता प्राप्त करने की संभावना की पड़ताल करने का काम सौंपा गया है।

मुख्यमंत्री पिनराई विजयन की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की हुई बैठक में केरल लोक सेवा अधिकार विधेयक 2025 के मसौदे को भी मंजूरी दी गई।

मंत्रिमंडल ने एक मसौदा विधेयक को भी मंज़ूरी दी, जो राज्य के विश्वविद्यालय अधिनियमों में ‘सिंडिकेट’ बैठकों के आयोजन के संबंध में एक नया प्रावधान जोड़ेगा।

सीएमओ के बयान में कहा गया है कि राज्य खाद्य आयोग के सदस्यों की नियुक्ति की गई है और यह नियुक्ति राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 और राज्य खाद्य सुरक्षा नियम, 2018 के प्रावधानों के अनुसार है।

मंगल ग्रह पर भारत का सफल अंतरिक्ष अभियान : एक ऐतिहासिक दिन

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मंगलयान - विकिपीडिया

(वीकीपीडिया)

भारत के अंतरिक्ष विज्ञान के इतिहास में 24 सितम्बर 2014 का दिन स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। इसी दिन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने अपने पहले मंगल मिशन मंगलयान (Mars Orbiter Mission – MOM) को सफलतापूर्वक मंगल की कक्षा में स्थापित किया। यह उपलब्धि न केवल भारत के लिए बल्कि पूरे एशिया के लिए एक ऐतिहासिक क्षण थी, क्योंकि इससे पहले एशिया के किसी भी देश ने मंगल ग्रह तक पहुँचने में सफलता प्राप्त नहीं की थी। यह दिन भारत की वैज्ञानिक क्षमता, तकनीकी आत्मनिर्भरता और विश्व पटल पर बढ़ती अंतरिक्ष शक्ति का सशक्त प्रमाण बन गया।


मंगलयान की पृष्ठभूमि

मानव सभ्यता प्राचीन काल से ही मंगल ग्रह को लेकर जिज्ञासा रखती आई है। लाल ग्रह को युद्ध का प्रतीक भी माना जाता रहा है और वैज्ञानिक दृष्टि से यह ग्रह पृथ्वी से मिलते-जुलते गुणों के कारण अध्ययन का केंद्र बना रहा। अमेरिका, रूस और यूरोप पहले से ही मंगल की खोज में अनेक मिशन भेज चुके थे। लेकिन भारत जैसे विकासशील देश के लिए यह कार्य एक बड़ी चुनौती थी।

इस मिशन की औपचारिक घोषणा वर्ष 2012 में हुई और महज 15 महीनों की तैयारियों के भीतर इसे अंजाम तक पहुँचाया गया। इसे बनाने और अंतरिक्ष में भेजने की लागत मात्र 450 करोड़ रुपये आई, जो विश्व के किसी भी मंगल मिशन की तुलना में सबसे सस्ती रही। यही कारण है कि इसे ‘सबसे किफायती अंतरिक्ष मिशन’ कहा गया।


5 नवम्बर 2013 को पीएसएलवी-सी25 रॉकेट के माध्यम से मंगलयान को श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया गया। प्रारंभिक चरण में इसे पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया गया और फिर क्रमशः कई बार ‘ऑर्बिटल रेजिंग’ की प्रक्रिया से इसकी गति और ऊँचाई बढ़ाई गई।30 नवम्बर 2013 को मंगलयान ने पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण सीमा से बाहर निकलकर अंतरग्रहीय यात्रा शुरू की। लगभग 300 दिन की लंबी और जटिल यात्रा के बाद यह 24 सितम्बर 2014 को मंगल की कक्षा में पहुँचा और वहां सफलतापूर्वक स्थापित हो गया।


मंगलयान का मुख्य उद्देश्य था— मंगल ग्रह के चारों ओर घूमते हुए वैज्ञानिक आंकड़े इकट्ठा करना और भविष्य के मिशनों के लिए तकनीकी अनुभव प्राप्त करना। इसके लिए इसमें पाँच प्रमुख उपकरण लगाए गए :

  1. मार्स कलर कैमरा (MCC) – मंगल ग्रह की सतह और उसके वातावरण की उच्च गुणवत्ता वाली तस्वीरें लेना।
  2. थर्मल इन्फ्रारेड इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर (TIS) – ग्रह की सतह पर खनिजों और तापमान का अध्ययन।
  3. लायमैन अल्फा फोटोमीटर (LAP) – मंगल के वायुमंडल में हाइड्रोजन और ड्यूटेरियम की उपस्थिति का मापन।
  4. मार्स एक्सोस्फेरिक न्यूट्रल कंपोजिशन एनालाइजर (MENCA) – मंगल की ऊपरी वायुमंडलीय संरचना का विश्लेषण।
  5. मीथेन सेंसर फॉर मार्स (MSM) – ग्रह पर मीथेन गैस की खोज, जो जीवन की संभावना से जुड़ा अहम संकेतक है।

इन उपकरणों से प्राप्त आंकड़ों ने वैज्ञानिकों को मंगल ग्रह के वातावरण, सतह और संभावित जीवन संकेतों को समझने में महत्वपूर्ण मदद दी।


वैश्विक प्रतिक्रिया

भारत की इस सफलता को पूरी दुनिया ने सराहा। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने इसे ऐतिहासिक उपलब्धि बताया। विश्वभर के वैज्ञानिकों और अंतरिक्ष विशेषज्ञों ने माना कि भारत ने अपनी सीमित आर्थिक क्षमता के बावजूद जो उपलब्धि हासिल की है, वह किसी चमत्कार से कम नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उस समय इसरो के वैज्ञानिकों को बधाई देते हुए कहा था— “भारत ने आज इतिहास रचा है। हमने मंगल पर विजय हासिल की है।”


भारत के लिए लाभ

  1. वैज्ञानिक प्रतिष्ठा – भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान में खुद को अग्रणी देशों की श्रेणी में ला खड़ा किया। आर्थिक और तकनीकी आत्मनिर्भरता – इस मिशन से भारत ने यह सिद्ध कर दिया कि वह जटिल तकनीकें स्वयं विकसित करने में सक्षम है। इस उपलब्धि ने भारतीय युवाओं और विद्यार्थियों में विज्ञान और अनुसंधान के प्रति नई रुचि और आत्मविश्वास जगाया। मंगलयान की सफलता ने भारत को चंद्रयान-2, गगनयान और आदित्य-एल1 जैसे अन्य मिशनों की नींव मजबूत करने में मदद की।

चुनौतियाँ और उपलब्धियाँ

मिशन की सफलता आसान नहीं थी। गहरे अंतरिक्ष में संचार की कठिनाइयाँ, ईंधन की सीमित मात्रा, और यान के सटीक संचालन जैसी चुनौतियाँ सामने थीं। मगर इसरो के वैज्ञानिकों ने धैर्य, परिश्रम और नवाचार के बल पर इन सब कठिनाइयों को पार किया। यही कारण है कि जब मंगलयान ने ‘मार्स ऑर्बिट इंसरशन’ की प्रक्रिया सफलतापूर्वक पूरी की तो पूरा देश उल्लास और गर्व से झूम उठा।


निष्कर्ष

मंगल ग्रह पर भारत के अंतरिक्ष यान की सफलता का दिन केवल एक वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं, बल्कि राष्ट्रीय गर्व और आत्मविश्वास का प्रतीक है। इस मिशन ने दिखा दिया कि भारत सीमित संसाधनों में भी महान वैज्ञानिक लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है। यह दिन आने वाली पीढ़ियों को सदैव याद दिलाएगा कि सपनों को साकार करने के लिए दृढ़ संकल्प और निरंतर प्रयास की आवश्यकता होती है।

भारत का मंगलयान मिशन विश्व पटल पर एक मील का पत्थर है और इसने साबित किया है कि विज्ञान और तकनीकी क्षमता के बल पर कोई भी देश नई ऊँचाइयाँ छू सकता है। 24 सितम्बर 2014 का दिन भारत की अंतरिक्ष यात्रा का स्वर्णिम अध्याय है, जो आने वाले दशकों तक वैज्ञानिकों और नागरिकों को प्रेरित करता रहेगा।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय

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पंडित दीनदयाल उपाध्याय | भारतीय ...

भाजपा के वैचारिक मार्गदर्शक और प्रेरणास्रोत

बाल मुकुन्द ओझा

आज एकात्म मानववाद के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय की 109 वीं जन्म जयंती है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर, 1916 को उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के नगला चंद्रभान नामक गांव में हुआ था। जनसंघ के पितृ पुरुष प. दीनदयाल उपाध्याय एक राज नेता से ज्यादा एक महा मानव के रूप में लोगों के मन मस्तिष्क में समाये हुए थे। उनके विचारों का अध्ययन करें तो पाएंगे उन्हें सियासत से नहीं अपितु आम आदमी की जिंदगी संवारने की चिंता अधिक थी। उन्होंने इसे कभी छिपाया भी नहीं। वे एक संत स्वभाव और विचारों के राज नेता थे। एकात्म मानववाद के प्रणेता और सादगी की प्रतिमूर्ति उपाध्याय जी मानवता के उत्थान के लिए राजनीति में आये थे। उनका लक्ष्य सांसद विधायक बनना नहीं था। वे सामाजिक और राजनीतिक जीवन में सत्यनिष्ठा और शुचिता के साथ अंतिम व्यक्ति के  सर्वांगीण उत्थान के लिए संकल्पित थे। दीनदयाल उपाध्याय ने कहा था लोकतंत्र केवल बहुमत का राज नहीं। उपाध्याय के मुताबिक लोकतंत्र की मुख्यधारा सहिष्णु रही है। इसके बिना चुनाव, विधायिका आदि कुछ भी नहीं है। सहिष्णुता भारतीय संस्कृति का आधार है। उपाध्याय के विचार आज भी सामयिक है। उपाध्याय के असहिष्णुता के मुद्दे पर विचारों का उनके लेखन में कई जगह जिक्र देखने को मिलता है। उन्होंने कहा था, वैदिक सभा और समितियां लोकतंत्र के आधार पर आयोजित की जाती हैं और मध्यकालिन भारत के कई राज्य पूरी तरह से लोकतांत्रिक थे। उन्होंने कहा था, ‘आपने जो कहा मैं उसे नहीं मानता, लेकिन आपके विचारों के अधिकार की मैं आखिरी वक्त तक रक्षा करूंगा।

भारतीय जनता पार्टी के लिए वैचारिक मार्गदर्शन और नैतिक प्रेरणा के स्रोत रहे पंडित दीनदयाल उपाध्याय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारक और संगठनकर्ता थे। भारतीय जनसंघ पार्टी की स्थापना साल 1951 में हुई थी। अपने राजनीतिक जीवन में वे भारतीय जनसंघ पार्टी के अध्यक्ष भी रहे। सनातन विचारधारा से संबंध रखने वाले दीन दयाल सशक्त भारत का सपना देखते थे। पंडित दीनदयाल उपाध्याय भारत में लोकतंत्र के उन पुरोधाओं में से एक हैं, जिन्होंने इसके उदार और भारतीय स्वरूप को गढ़ा है। वर्ष 1937 में  वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े। जहां उन्होंने संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार से बातचीत की और संगठन के प्रति अपनी सच्ची निष्ठा व्यक्त की।

उन्होंने भारत की उच्च स्तरीय परीक्षा “सिविल सेवा” की परीक्षा पास की, लेकिन आम जनता की सेवा के लिए दीनदयाल ने सिविल सेवा परीक्षा का परित्याग कर दिया। वर्ष 1942 में कॉलेज की शिक्षा पूरी करने के बाद दीनदयाल ने न तो कोई नौकरी की और न ही विवाह किया, बल्कि संघ की शिक्षा का प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए 40 दिवसीय शिविर में भाग लेने नागपुर चले गए। 1951 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भारतीय जनसंघ की स्थापना की तो दीनदयाल उपाध्याय को प्रथम महासचिव नियुक्त किया गया था। उन्होंने 15 वर्षों तक महासचिव के रूप में जनसंघ की सेवा की। तत्पश्चात  दिसंबर 1967 में, भारतीय जनसंघ के 14वें वार्षिक अधिवेशन कालीकट में उन्हें भारतीय जनसंघ का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। उपाध्याय प्रखर विचारक,  चिंतक, अर्थ शास्त्री, लेखक, इतिहासकार और पत्रकार थे। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के निर्माण में महत्वपूर्ण भागीदारी निभाई। उनकी कार्यक्षमता, और सांगठनिक क्षमता से  प्रभावित होकर डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी उनके लिए गर्व से नहीं थकते कहते थे कि- ‘यदि मेरे पास दो दीनदयाल हों, तो मैं भारत का राजनीतिक चेहरा बदल सकता हूं।  परंतु अचानक वर्ष 1953 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के असमय निधन से पूरे संगठन की जिम्मेदारी दीनदयाल उपाध्याय के युवा कंधों पर आ गयी। प. उपाध्याय कहते थे भारत को पूंजीवाद या साम्यवाद की नहीं अपितु मानववाद की जरूरत है। दीनदयाल उपाध्याय का ये भी कहना था कि हिंदू कोई धर्म या संप्रदाय नहीं, बल्कि भारत की राष्ट्रीय संस्कृति है।

देश के आम आवाम तक जनसंघ की राजनीतिक विचारधारा पहुंचाने में पंडित दीन दयाल का बहुत बड़ा योगदान रहा। यही वजह है कि बाद में भारतीय जनता पार्टी ने भी उनके विचारों को अपना लिया। दीन दयाल उपाध्याय के बारे में कहा जाता है कि वह कार्यकर्ताओं को सादा जीवन और उच्च विचार के लिए प्रेरित करते थे।  खुद को लेकर अक्सर कहते थे कि दो धोती, दो कुरते और दो वक्त का भोजन ही मेरी संपूर्ण आवश्यकता है। दीनदयाल उपाध्याय ने राष्ट्रधर्म (मासिक), पांचजन्य (साप्ताहिक), स्वदेश (दैनिक) के साथ साहित्य सृजन भी किया। उनकी प्रमुख रचनाओं में सम्राट चंद्रगुप्त, जगतगुरु शंकराचार्य, भारतीय अर्थनीति-विकास की एक दिशा, राष्ट्र चिंतन राष्ट्र-जीवन की दिशा, इनटिगरल ह्यूमनिज्म प्रमुख हैं।

बाल मुकुन्द ओझा

डी-32, मॉडल टाउन, मालवीय नगर, जयपुर