लोक आस्था, संस्कृति के प्रतीक त्योहार और मेले

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                                                   बाल मुकुन्द ओझा                                             

देश में दशहरे मेले के साथ मेले ठेलों की शुरुआत हो गई है। भारत मेलो और तीज त्योहारों का देश है। यहाँ दुनियाँ के सबसे ज्यादा त्योहार मनाये जाते है। यहीं पर दुनियाँ में सबसे ज्यादा मेलो का आयोजन होता है। इनमे से कुछ मेले तो दुनिया के सबसे बड़े व विशाल मेलो में शुमार है जिन्हें देखने पूरी दुनिया से हर साल लाखों लोग भारत आते है। भारतीय सभ्यता और संस्कृति में मेलों का विशेष महत्व है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक तक न जाने कितने प्रकार के मेले भारत में लगते हैं। इन सभी मेलों का अपना अपना महत्व है। मेलों को संस्कृति और रंगीन जीवन शैली का पैनोरमा कहा जा सकता है। इन मेलों में आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप का अद्वितीय और दुर्लभ सामजस्य दिखाई देता है, जो कहीं और नहीं दिख पाता। मेले न केवल मनोरंजन के साधन हैं, अपितु ज्ञानवर्द्धन के साधन भी कहे जाते हैं। प्रत्येक मेले का इस देश की धार्मिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक परम्पराओं से जुड़ा होना इस बात का प्रमाण हैं कि ये मेले किस प्रकार जन मानस में एक अपूर्व उल्लास, उमंग तथा मनोरंजन करते हैं। मेला स्थानीय लोक संस्कृति, परंपरा और लोक संस्कारों के विविध रूपों को अभिव्यक्त करने का एक माध्यम है।

भारत में मेले, लोकसंस्कृति और परंपरा के माध्यम से आस्था, उमंग और उत्सव की तस्वीर प्रस्तुत करते हैं। मेलों का आयोजन प्राय: किसी पर्व या त्योहार के अवसर पर किया जाता है। मेला हमारे समाज को जोड़ने तथा हमारी संस्कृति और परंपरा को सुरक्षित रखने में अहम् भूमिका निभाता है। यह उत्पादकों और खरीददारों के लिए बाजार भी उपलब्ध कराता है। खाने-पीने से लेकर मौज-मस्ती की सभी चीजें मेले को आकर्षक बनाती हैं। मेलों में कहीं लोकगीतों की लहरियां हमारे दिल के तार को झंकृत करती हैं तो कहीं लोकनृत्य के माध्यम से हमारे तन-बदन में थिरकन पैदा होने लगती है।

राजस्थान के मेले यहाँ की बहुरंगी संस्कृति के परिचायक है। राजस्थान मेलों  का आयोजन धर्म, लोकदेवता, लोकसंत और लोक संस्कृति से जुड़ा हुआ है। मेलों में नृत्य, गायन, तमाशा, बाजार आदि से लोगों में प्रेम व्यवहार, मेल-मिलाप बढ़ता है। राजस्थान के प्रत्येक अंचल में मेले लगते है। इन मेलों का प्रचलन प्रमुखतः मध्य काल से हुआ जब यहाँ के शासकों ने मेलों को प्रारम्भ कराया। मेले धार्मिक स्थलों पर एवं उत्सवों पर लगने की यहाँ परम्परा रही है जो आज भी प्रचलित है। राजस्थान में जिन उत्सवों पर मेले लगते है उनमें विशेष हैं- गणेश चतुर्थी, नवरात्र, अष्टमी, तीज, गणगौर, शिवरात्री, जनमाष्टमी, दशहरा, कार्तिक पूर्णिमा आदि। इसी प्रकार धार्मिक स्थलों (मंदिरों) पर लगने वाले मेलों में तेजाजी, शीतलामाता, रामदेवजी, गोगाजी, जाम्बेश्वर जी, हनुमान जी, महादेव, आवरीमाता, केलादेवी, करणीमाता, अम्बामाता, जगदीश जी, महावीर जी आदि प्रमुख है। राजस्थान के धर्मप्रधान मेलों में जयपुर में बालाजी का, हिण्डोन के पास महावीर जी का, अन्नकूट पर नाथद्वारा का, गोठमांगलोद में दधिमती माता का, एकलिंग जी में शिवरात्री का, केसरिया में धुलेव का, अलवर के पास भर्तहरि जी का और अजमेर के पास पुष्कर जी का मेला गलता मेला प्रमुख है। इन मेलों में लोग भाक्तिभावना से स्नान एवं अराधना करते हैं।  लोकसंतो और लोकदेवों की स्मृति एवं श्रद्धा में भी यहाँ अनेक मेलों का आयोजन होता है। रूणेचा में रामदवे जी का, परबतसर में तेजाजी का, काले गढ़ में पाबूजी का, ददेरवा में गोगाजी का, देशनोक में करणीमाता का, नरेणा(जयपुर)-शाहपुरा (भीलवाड़ा) में फूलडोल का, मुकाम में जम्भेष्वरजी का, गुलाबपुरा में गुलाब बाबा का और अजमेर में ख्वाजा साहब का मेला लगता है।

बाल मुकुन्द ओझा

वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार

मॉडल टाउन, मालवीय नगर, जयपुर

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