आपातकाल के संघर्ष के महारथी बने बदलाव के सारथी

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संघ का शताब्दी वर्ष

बाल मुकुन्द ओझा
देश में 25 जून 1975 को जबरिया आपातकाल लागू कर लाखों विपक्षी नेताओं और कार्यकर्ताओं को जेलों में डाल दिया गया था। 21 महीनों का यह काला दौर संविधान के विध्वंस, नागरिक अधिकारों के उल्लंघन, प्रेस पर पाबंदी और विपक्ष के नेताओं की गिरफ्तारियां का रहा। इस दौरान विपक्षी पार्टियां नेतृत्व विहीन होने से आपातकाल का जबरदस्त विरोध नहीं कर पा रही थी। ऐसे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अनवरत विरोध मार्च की कमान संभाली। इन पंक्तियों के लेखक ने उस दौरान संघ कार्यकर्ताओं का जज्बा देखा जिन्होंने अपने घर परिवार की परवाह न कर आपातकाल के विरोध में सत्याग्रह कर जेलों को भर दिया। सत्याग्रह में हजारों स्वयंसेवकों की गिरफ्तारी के बाद संघ के कार्यकर्त्ताओं ने भूमिगत रह कर आन्दोलन चलाना शुरू किया। आपातकाल के खिलाफ सड़कों पर पोस्टर चिपकाना, जनता को सूचनाएँ देना और जेलों में बन्द विभिन्‍न राजनीतिक कार्यकर्ताओ – नेताओं के बीच संवाद सूत्र का काम संघ कार्यकर्ताओं ने सँभाला। आपातकाल का विरोध करने के कारण तत्कालीन सरकार के इशारों पर संघ कार्यकर्ताओं की पुलिस थानों में पिटाई आम बात हो गई थी। एक अधिकृत जानकारी के अनुसार आपातकाल के दौरान सत्याग्रह करने वाले कुल 1,30,000 सत्याग्रहियों में से 1,00,000 से अधिक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के थे। मीसा के तहत कैद 30,000 लोगों में से 25,000 से अधिक संघ के स्वयंसेवक थे। आपातकाल के दौरान, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के करीब 100 कार्यकर्ताओं की जान चली गई। अनेकानेक कष्ट झेलने के बाद भी संघ कार्यकर्ताओं ने हिम्मत नहीं हारी। आपातकाल के बाद हुए चुनावों में विपक्षी दलों के विलय से बनी जनता पार्टी के सरकार बनाने में संघ कार्यकर्ताओं के योगदान को नकारा नहीं जा सकता ।
आजादी के बाद से ही कांग्रेस के निशाने पर रहा है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। लाख चेष्टा के बावजूद कांग्रेस संघ को समाप्त करना तो दूर हाशिये पर लाने में सफल नहीं हुआ। संघ को खत्म करने के चक्कर में खुद कांग्रेस अपना वजूद समाप्त करने की ओर अग्रसर है। बापू की हत्या के आरोप सहित कई बार प्रतिबन्ध की मार झेल चुका यह संगठन आज भी लोगों के दिलों में बसा है और यही कारण है की इसका एक स्वयं सेवक प्रधान मंत्री की कुर्सी पर काबिज है और अनेक स्वयं सेवक राज्यों के मुख्यमंत्री है। संघ सांप्रदायिक है या देशभक्त यह दंश आज भी सियासत पाले हुए है मगर यह सच है की देश की बहुसंख्यक जनता के दिलों में संघ अपना स्थान बना चुका है। समाजवादी नेता डॉ राम मनोहर लोहिया के बाद जयप्रकाश नारायण अकेले व्यक्ति हैं जिन्होंने आरएसएस को देश की मुख्यधारा में वैधता दिलाने और ‘गांधी के हत्यारे’ की छवि से बाहर निकालने में सबसे अहम भूमिका निभाई। बाद में यही कार्य जॉर्ज फर्नांडीज ने किया। जेपी ने तो यहाँ तक कह दिया संघ यदि फासिस्ट संगठन है तो जयप्रकाश भी फासिस्ट है’। संघ को वैधता दिलाने में पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी भी पीछे नहीं रहे। परिवार और कांग्रेस के भारी विरोध के बावजूद वे नागपुर में संघ मुख्यालय गए। यह पहला अवसर था की इतने बड़े कद के किसी कांग्रेसी नेता को संघ मुख्यालय में जाते देखा गया। कांशीराम, नीतीश कुमार और रामविलास पासवान भी संघ को अछूत नहीं मानते थे। देश में अनेक विपदाओं के दौरान संघ के कार्यकर्ताओं ने समाज सेवा की अनूठी मिसाल कायम की, यह किसी से छिपा नहीं है। आज देश भर के 922 जिलों, 6597 खंडों और 27,720 मंडलों में संघ की 83 हजार से अधिक शाखाएं हैं। 32 हजार से अधिक साप्ताहिक मिलन चलते हैं। यह विश्व का सबसे विशाल संगठन है। समाज के हर क्षेत्र में संघ की प्रेरणा से विभिन्न संगठन चल रहे हैं जो राष्ट्र निर्माण तथा हिंदू समाज को संगठित करने में अपना योगदान दे रहे हैं। संघ के विरोधियों ने तीन बार 1948 1975 व 1992 में इस पर प्रतिबंध लगाया, लेकिन तीनों बार संघ पहले से भी अधिक मजबूत होकर उभरा। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने अनेक निर्णयों में माना है कि संघ एक सामाजिक, सांस्कृतिक संगठन है।
आगामी विजयादशमी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के सौ वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। इस अवसर पर 2 अक्टूबर से संघ शताब्दी वर्ष के कार्यक्रमों का शुभारम्भ होगा। शताब्दी वर्ष के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विश्व का सबसे बड़ा गृह सम्पर्क अभियान शुरू करेगा। 20 नवम्बर से 21 दिसम्बर के बीच संघ कार्यकर्ता देश के छह लाख गांवों के 20 करोड़ परिवारों में सम्पर्क करेंगे। इस अभियान में लगभग 20 लाख कार्यकर्ता घर-घर जाकर संपर्क करेंगे। शताब्दी वर्ष का पहला कार्यक्रम विजयादशमी का होगा। मण्डल व बस्ती स्तर पर आयोजित विजयादशमी उत्सव के कार्यक्रम में सभी स्वयंसेवक पूर्ण गणवेश में शामिल होंगे।

बाल मुकुन्द ओझा
वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार
, मालवीय नगर, जयपुर

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