
अशोक मधुप
रामलला के दर्शन के लिए यदि अयोध्या जी जा रहे हैं तो निश्चित होकर जाएं। ये मानकर जाए कि भगवान के घर जा रहे हैं। उनकी शरण में जा रहे हैं। बस फिर किसी चिंता की जरूरत नहीं। दर्शन के लिए किसी की सिफारिश मत कराइए। सीधे जाइए। दर्शन करिए और 20 से 30 मिनट में दर्शन कर मंदिर से बाहर आ जाइए। हमारा दावा है विश्व के किसी भी धर्म के तीर्थस्थल से इससे ज्यादा सुलभ दर्शन कहीं संभव नही हैं।
राम मंदिर आज हिंदुओं का प्रमुख तीर्थ बन गया है। प्रतिदिन 80 हजार से एक लाख भक्त राम लला के दर्शन कर उन्हें प्रणाम करते हैं। कई अवसर पर तो ये संख्या डेढ़ लाख से ज्यादा हो जाती है। आज दुनिया भर में बसे लगभग हर सनातनी के मन में एक ही इच्छा है किसी तरह वह अयोध्या जाकर राम मंदिर के दर्शन कर सके। भगवान राम को शीष नवाए। हाल ही में हम पत्रकारों के एक सम्मेलन में अयोध्या जी में थे। रामलला के दर्शनों के लिए आ रही श्रद्धालुओं की भीड़ को देख मेरे एक साथी लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार दिनेश शर्मा ने कहा था कि अयोध्या जी आने वाले समय में हिंदुओं का प्रमुख श्रद्धा का केंद्र होगा। यहां प्रत्येक हिंदू − सनातनी आकर शीश नवाना अपने जीवन का एक लक्ष्य बनाएगा। शीश नवाकर अपने को कृतार्थ मानेगा।
अयोध्या में राम मंदिर बनने से पहले कभी श्रद्धालुओं को संकरी गलियों से गुजरने के बाद टेढ़े मेढ़े और उभर खाबड़ रास्तों से गुजरकर मंदिर तक पहुंचना होता था। आम श्रद्धालुओं के लिए ये यात्रा और कितनी दुरूह रहती होगी, यह समझते बनता है। इस सबके बावजूद यहां आने वाले श्रद्धालुओं का उत्साह और जोश देखते बनता था।अब मंदिर परिसर बन गया। भव्य मंदिर बन गया। 25 नंवबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंदिर पर भव्य ध्वजारोहण करेंगे। भव्य समारोह होगा। इस आयोजन के प्रत्यक्षदर्शी बनने के लिए दुनिया भर से हजारों प्रमुख व्यक्ति आ रहे है। उम्मीद है कि ध्वजारोहण के दिन अयोध्या में वीवपीआई पी के एक सौ के आसपास जेट आएंगे।
अयोध्या आने वाला प्रत्येक श्रद्धालु इस बात को लेकर आंशकित होता हैं, कि इतनी भीड़ में दर्शन कैसे होंगे? पूजा कैसे होगी ? प्रसाद कैसे चढ़ेगा? सब चाहते हैं कि मंदिर आगमन की स्मृति फोटो के रूप में अपने पास सुरक्षित रखें। यहां स्थिति अन्य मंदिर से बिल्कुल भिन्न है। यहां न पूजा की व्यवस्था है, न प्रसाद चढ़ने का प्रबंध। यहां पूजन कराने वाले पुजारी भी नही है। यहां तो बस मंदिर आइए। राम लला के दर्शन करिए। प्रभु को शीश नवाइए और बाहर आ जाइए। यहां प्रसाद लेकर जाने की जरूरत नही है। मंदिर की ओर से प्रत्येक श्रद्धालु को प्रसाद मिलता है। मंदिर परिसर में मोबाइल वर्जित है । परेशानी उन्हें होती है जो सुरक्षा कर्मियों की नजर बचाकर मोबाइल मंदिर में लेकर जाना चाहते हैं। सुरक्षा जांच में मोबाइल पकड़ा जाता है। इन मोबाइल ले जाने वालों को लौटकर मंदिर के गेट पर आकर लॉकर में फोन रखकर फिर दर्शन को जाना पड़ता है। इस तरह इन्हें अन्य श्रद्धालुओं से एक डेढ़ किलोमीटर ज्यादा चलना होता है। मंदिर में अपना सामान करने के लिए लॉकर की व्यापक व्यवस्था है, किंतु इस काम में लगभग आधा घंटा लग जाता है। अच्छा यह है कि अपना पर्स, लैदर की बैल्ट, मोबाइल और कैमरा अपने कमरे पर छोड़ कर आए। अपनी आईडी और जरूरत के लिए रुपये अपनी जेब में रखलें । हमने ऐसा ही किया । इससे मंदिर के लॉकर में सामान जमा करने का हमारा आधे से एक घंटा बच गया। हम दर्शन कर 20 से 25 मिनट में मदिर से बाहर आ गए। व्हील चेयर लेने वालों और दिव्यांग के लिए तो और सुविधा है। उनका जाने का रास्ता अलग से है।
भारत के उत्तर-प्रदेश राज्य में स्थित अयोध्या, जो पारंपरिक रूप से एक अलग त्वरित तीर्थ-नगर थी, अब आधुनिकता और भक्ति के संगम का उदाहरण बनती जा रही है। खास कर राम जन्मभूमि (जिसके अंतर्गत राम मंदिर का निर्माण हुआ) के बाद इस नगर में बड़े पैमाने पर विकास कार्य चल रहे हैं। ये कार्य सिर्फ धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि सामाजिक-आर्थिक एवं पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण हैं। यहां 15− 16 करोड़ के करीब यात्री अब प्रतिवर्ष आने लगे हैं। आने वाले समय में यह संख्या और बढ़ेगी ही। इस बढ़ती संख्या ने होटल, गेस्ट-हाउस, परिवहन-सेवाएँ, स्थानीय व्यापार व स्मृति-चिंतन (souvenir) उद्योग को गति दी है। अतः अयोध्या अब सिर्फ भक्ति-की जगह नहीं बल्कि एक सेवा-आधारित अर्थव्यवस्था (हॉस्पिटैलिटी, रिटेल, परिवहन) का केन्द्र बनती जा रही है। इस प्रकार मंदिर-के पश्चात् अयोध्या की पहचान बदल रही है। अब अयोध्या “भक्ति नगर” से “भक्ति + विकास नगर” की ओर बढ़ रही है।विकास-यात्रा में पहुँचना और सहज अनुभव देना अहम है। इसलिए अयोध्या में कई बुनियादी संरचना-परियोजनाएँ लाई गई हैं।
एयर-कनेक्टिविटी के लिए महर्षि वाल्मीकि अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा का निर्माण हुआ है। इसमें आने वाले चरणों में टर्मिनल विस्तार व रनवे विस्तार भी शामिल है। अयोध्या में रेलवे स्टेशन व आधुनिकीकृत सड़कें बनायी गई हैं। अयोध्या धाम रेलवे स्टेशन विश्व का श्रेष्ठतक रेलवे स्टेशन बनाने का प्रयास है। यहां यात्रियों के लिए तीन सौ के आसपास डार्मेट्री और कुछ रिटायरिंग रूम बनाये गए हैं। अन्य काम जारी है।
राम मंदिर के आसपास के तीर्थ स्थलों के लिए पैदल जाने के लिए मार्ग विकसित किया जा रहा है । इसे भक्ति पथ नाम दिया गया यह मार्ग, रामपथ से निकलता हुआ मंदिर के आसपास श्रद्धालुओं के चलने-वाले हिस्सों को सजाता है एवं पैदल यात्रियों के लिए खास व्यवस्था करता है। इसमें दुकानों-घरों को अलग रंग-रूप दिया गया है। भक्ति पथ वाले हिस्सों में ‘सफ़ेद एवं भोरका’ रंग के बजाय एक विशिष्ट सजावट का उपयोग हुआ है। भक्ति पथ मंदिर-मार्ग के उन हिस्सों को सूचीबद्ध करता है जहाँ पैदल-यात्रा अधिक होती है, अतः इस तरह से इसका उद्देश्य अभ्यागतों को आरामदायक एवं सुरक्षित चलने-वाले मार्ग देना है।
राम मंदिर तक पंहुच के मार्ग का नाम राम पथ दिया गया है।यह एक प्रकार से रिंग रोड जैसा है।इस मार्ग को भव्य रूप दिया जा रहा। यह मार्ग लगभग 13 किलोमीटर लंबा है और प्रमुख रूप से सहादतगंज से लेकर नया घाट (या नायाघाट) तक जाता है। इस मार्ग के दोनों किनारों पर दुकानों-घरों की एकरूप रूप से मरम्मत एवं पेंटिंग की गई है। सभी को एक समान रंग-रूप में सजाया गया है। सड़क को चौड़ा किया गया है और मुख्य रूप से 40 फीट या उससे अधिक चौड़ाई वाला बना कर बनाया गया है ताकि भीड़-भाड़ व आने-जाने में आराम हो सके। लाईटिंग-सिस्टम, फावड़े-प्लांटर्स, पेड़-पौधे, फुटपाथ, मिडियन में धार्मिक प्रतीक-स्तंभ जैसी सुविधाएं लगाई गई हैं। स्थानीय प्रशासन ने श्रद्धालुओं के लिए इस मार्ग पर गोल्फ कार्ट (इलेक्ट्रिक बग्गी) चलाई है। इसका प्रतियात्री किराया 20 रुपया रखा गया है।इस किराए के से आप इस मार्ग के किसी भी स्थान तक जा सकतें हैं।इन सरकारी गोल्फ कार्ट के कारण ई−रिक्शा चालक भी मनमाने दाम नही वसूल कर पाते।
पुरानी परंपरा के हिस्से के रूप में 84 कोसी परिक्रमा मार्ग को श्रद्धा-परिक्रमा मार्ग नाम दिया गया है। इसे राष्ट्रीय राजमार्ग − का दर्जा (एनएच-227B) मिला है । इससे अयोध्या और आसपास के तीर्थस्थलों का जुड़ाव बढ़ा है। इसको भी भव्य रूप दिया जा रहा है। इसके पुलों और फ्लाई ओवर के दोनों ओर भगवान राम के जीवन से संबधित झांकी बनाई जा रही है । नगर के बीच से एक पंचकोसी प्रतिक्रमा के विकास पर भी काम चल रहा है।
इन परिवहन सुधारों से न केवल तीर्थ-यात्रियों की सहजता बढ़ी है बल्कि स्थानीय व्यापार-संवाद व रोजगार-अवसरों में भी इजाफा हुआ है। आधुनिक विकास सिर्फ बड़ी इमारतें या सड़कें नहीं बल्कि बेहतर जीवन-मान और पर्यावरण-संगत विकास भी है। अयोध्या में इस दिशा में कई कदम उठाए गए हैं। अयोध्या को ‘मॉडल सोलर सिटी’ घोषित किया गया है। ४० मेगावाट का सौर संयंत्र सरयू नदी के किनारे स्थापित किया गया है। इससे शहर की मांग की लगभग २५-३० प्रतिशत ऊर्जा पूरा हो रही है। यहां ५५० एकड़ के “नव्या अयोध्या” टाउनशिप का विकास हुआ है, जिसमें स्मार्ट बिजली-डक्स, भूमिगत नाली-प्रणाली है। सरयू नदी के घाटों का सौंदर्यीकरण व लॉन्ग वॉक-वे बनाए गए हैं, जिससे पर्यटक अनुभव बेहतर हुआ है। सरयू घाट की आरती देखने को श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रोड उमड़ती है। इस आरती को देखने का अभी सही प्रबंध नही है। उसे बनाने की जरूरत है।बड़े बड़े टीवी भी इसे देखने के लिए लगाए जा सकते हैं। इनसे श्रद्धालु सरयू किनारे कहीं भी बैंच या फर्श पर बैठकर आराम से आरती देख ले।
मंदिर-के बाद अयोध्या में अब सिर्फ दर्शन तक सीमित नहीं रही बल्कि सांस्कृतिक और अनुभव-आधारित पर्यटन पर भी ध्यान गया है। नए संग्रहालय व सांस्कृतिक केंद्र बनाएं जा रहे हैं। मंदिर परिसर के आस-पास संग्रहालय, रामायण अध्ययन संस्थान जैसी योजनाएं चल रही हैं।
उत्सव व कार्यक्रम को रोचक बनाया जा रहा है। दीपोत्सव में लाखों दीये, ड्रोन-शो आदि का आयोजन हुआ है जो सिर्फ स्थानीय नहीं बल्कि राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय आकर्षण बना है। पारंपरिक हस्तशिल्प व पर्यटन-वस्तुओं को बढ़ावा मिल रहा है। इससे स्थानीय कारीगरों को नए −नए अवसर मिल रहे हैं।
राम मंदिर के बाद अयोध्या में जो विकास गति पकड़ी है, वह सिर्फ पूजा-पथ नहीं बल्कि समृद्धि-पथ है। तीर्थयात्रा से बढ़कर यह अब अनुभव-और-उद्यम-नगर बनता जा रहा है। लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि यह विकास वैश्विक दर्जे का होने के साथ-साथ स्थानीय अनुभव-सक्षम और पर्यावरण-अनुकूल भी बने।
अयोध्या का प्राचीन समय नाम साकेत है। साकेत भगवान राम के समय का भव्य नगर । आज का नगर उससे भी विशाल आकार ले रहा है। भगवान राम के साकेत( अयोध्या जी) पर महाकवि मैथिलीशरण गुप्त का काव्य साकेत की ये पंक्तियां इस नगर का भव्य चित्रण करती हैं।−
देख लो, साकेत नगरी है यही, स्वर्ग से मिलने गगन में जा रही।
केतु-पट अंचल-सदृश हैं उड़ रहे,कनक-कलशों पर अमर-दृग जुड़ रहे।
सोहती हैं विविध-शालाएँ बड़ी; छत उठाए भित्तियाँ चित्रित खड़ी।
गेहियों के चारु-चरितों की लड़ी, छोड़ती हैं छाप, जो उन पर पड़ी!
स्वच्छ, सुंदर और विस्तृत घर बने,इंद्रधनुषाकार तोरण हैं तने।
देव-दंपती अट्ट देख सराहते; उतरकर विश्राम करना चाहते।
फूल-फलकर, फैलकर जो हैं बढ़ी, दीर्घ छज्जों पर विविध बेलें चढ़ी
पौरकन्याएँ प्रसून-स्तूप कर, वृष्टि करती हैं यहीं से भूप पर।
फूल-पत्ते हैं गवाक्षों में कढ़े, प्रकृति से ही वे गए मानो गढ़े।
दामनी भीतर दमकती है कभी, चंद्र की माला चमकती है कभी।
सर्वदा स्वच्छंद छज्जों के तले,प्रेम के आदर्श पारावत पले।
केश-रचना के सहायक हैं शिखी, चित्र में मानो अयोध्या है लिखी !

अशोक मधुप
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)


