नहीं रहे पदमश्री राम दरश मिश्र

Date:

शताब्दी पुरुष हमारे साहित्यिक पुरखे रामदरश मिश्र जी नहीं रहे। प्रोफेसर स्मिता मिश्र की पोस्ट के अनुसार 102 वर्ष का जीवन जीने वाले हिंदी के जाने-माने साहित्यकार प्रो रामदरश मिश्र नहीं रहे।

पिछली होली के बाद से वे बीमार चल रहे थे और द्वारका नई दिल्ली स्थित बेटे शशांक के घर पर उपचार में थे। 1924 में 15 अगस्त को डुमरी, गोरखपुर में जन्मे रामदरश मिश्र ने बीएचयू में उच्च शिक्षा पाई । गुजरात में कई वर्ष रहे, दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाया।

वे हिन्दी के प्रतिष्ठित साहित्यकार थे। ये जितने समर्थ कवि थे उतने ही समर्थ उपन्यासकार और कहानीकार भी थे। रामदरश मिश्र की लंबी साहित्य-यात्रा समय के कई मोड़ों से गुजरी और नित्य नूतनता की छवि को प्राप्त होती गई। कविता की कई शैलियों जैसे गीत, नई कविता, छोटी कविता, लंबी कविता में उनकी सर्जनात्मक प्रतिभा ने अपनी प्रभावशाली अभिव्यक्ति के साथ-साथ ग़ज़ल में भी उन्होंने अपनी सार्थक उपस्थिति रेखांकित की। इसके अतिरिक्त उपन्यास, कहानी, संस्मरण, यात्रावृत्तांत, डायरी, निबंध आदि सभी विधाओं में उनका साहित्यिक योगदान बहुमूल्य है।

इनकी शिक्षा हिन्दी में स्नातक, स्नातकोत्तर तथा डॉक्टरेट रही। सन् 1956 में सयाजीराव गायकवाड़ विश्वविद्यालय, बड़ौदा में प्राध्यापक के रूप में उनकी नियुक्ति हुई। सन् 1958 में ये गुजरात विश्वविद्यालय से सम्बद्ध हो गये और आठ वर्ष तक गुजरात में रहने के पश्चात् 1964 में दिल्ली विश्वविद्यालय में आ गये। वहाँ से 1970 में प्रोफेसर के रूप में सेवामुक्त हुए।

रामदरश मिश्र की साहित्यिक प्रतिभा बहुआयामी है। उन्होंने कविता, कहानी, उपन्यास, आलोचना और निबंध जैसी प्रमुख विधाओं में तो लिखा ही है, आत्मकथा- सहचर है समय, यात्रा वृत्त तथा संस्मरण भी लिखे। यात्राओं के अनुभव ‘तना हुआ इन्द्रधनुष, ‘भोर का सपना’ तथा ‘पड़ोस की खुशबू’ में अभिव्यक्त हुए हैं। उन्होंने अपनी संस्मरण पुस्तक ‘स्मृतियों के छन्द’ में उन अनेक वरिष्ठ लेखकों, गुरुओं और मित्रों के संस्मरण दिये हैं जिनसे उन्हें अपनी जीवन-यात्रा तथा साहित्य-यात्रा में काफ़ी कुछ प्राप्त हुआ है। रामदरश मिश्र रचना-कर्म के साथ-साथ आलोचना कर्म से भी जुड़े रहे।

उन्होंने आलोचना, कविता और कथा के विकास और उनके महत्वपूर्ण पड़ावों की बहुत गहरी और साफ़ पहचान की। ‘हिन्दी उपन्यास : एक अंतर्यात्रा, ‘हिन्दी कहानी : अंतरंग पहचान’, ‘हिन्दी कविता : आधुनिक आयाम’, ‘छायावाद का रचनालोक’ उनकी महत्त्वपूर्ण समीक्षा-पुस्तकें हैं।

उनकी रचनाओं के अंग्रेजी सहित कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद प्रकाशित हुए। राजकमल प्रकाशन से पेपरबैक सीरीज में उनकी “प्रतिनिधि कहानियां” और “प्रतिनिधि कविताएं” प्रकाशित हुए है। सर्वभाषा ट्रस्ट प्रकाशन Sarv Bhasha Trust ने उनके चुनिंदा निबंधों का संग्रह “लौट आया हूं मेरे देश” छापा। अमन प्रकाशन ने उनका संग्रह “समवेत” प्रकाशित किया तो प्रलेक से उनकी पुस्तक “स्मृतियों के छंद” के नए संस्करण सहित मिश्र जी के जीवन और साहित्य पर “रामदरश मिश्र:एक शिनाख्त” पुस्तक भी प्रकाशित की।

रामदरश मिश्र अपनी लंबी रचना-यात्रा में किसी वाद, किसी आन्दोलन के झंडे के नीचे नहीं आये किन्तु वे अपने समय और समाज की वास्तविकताओं तथा चेतना से लगातार जुड़े रहे। समय-यात्रा में बदलता हुआ यथार्थ उनके अनुभव और दृष्टि में समाकर उनकी रचनाओं में उतरता रहा। परिवर्तनशील समय का सत्य उनकी सर्जना को सतत कथ्य की नयी आभा और शिल्प की सहज नवीनता प्रदान करना रहा किन्तु उनकी बुनियाद उनका गांव रहा। गांव को भी वे लगातार उसके परिवर्तनशील रूप में पकड़ने की कोशिश करते रहे। समग्रत: उनके सारे सर्जनात्मक लेखन में अपने कछार अंचल की धरती की पकड़ रही। मूल्य-दृष्टि की जड़ें उनके गांव में ही थीं जिसे उन्होंने अपने जीवन के प्रारंभिक काल में भरपूर जिया था।

उन्हें मिले सम्मान और पुरस्कार निम्न हैं-उदयराज सिंह स्मृति पुरस्कार (2007), व्यास सम्मान (2011), साहित्य अकादमी पुरस्कार हिन्दी (2015) में मिला। यह उनके 99 वें जन्मदिन का साल उनकी उपलब्धियों का साल रहा जब 27 जून को उन्हे के के बिरला फाउंडेशन द्वारा सर्वोच्च सरस्वती सम्मान से सम्मानित किया गया।

आज उनकी विदाई पर उनके लिखे एक गीत की पंक्तियों याद आती हैं।-

बनाया है मैंने ये घर धीरे-धीरे

खुले मेरे ख़्वाबों के पर धीरे-धीरे

किसी को गिराया न खुद को उछाला

कटा ज़िन्दगी का सफ़र धीरे-धीरे

जहाँ आप पहुँचे छलाँगें लगाकर

वहाँ मैं भी पहुँचा मगर धीरे-धीरे

पहाड़ों की कोई चुनौती नहीं थी

उठाता गया यों ही सर धीरे-धीरे

गिरा मैं कहीं तो अकेले में रोया

गया दर्द से घाव भर धीरे-धीरे

जमीं खेत की साथ लेकर चला था

उगा उसमें कोई शहर धीरे-धीरे

न रोकर,न हँस कर किसी में उड़ेला

पिया ख़ुद ही अपना ज़हर धीरे-धीरे

मिला क्या न मुझको,ऐ दुनिया तुम्हारी

मुहब्बत मिली है अगर धीरे-धीरे

उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Share post:

Subscribe

spot_imgspot_img

Popular

More like this
Related

तृणमूल विधायक हुमायूं कबीर का छह दिसंबर को ‘बाबरी मस्जिद’ की नींव रखने का ऐलान

तृणमूल कांग्रेस विधायक हुमायूं कबीर ने छह दिसंबर...

साफ़ छुपते भी नहीं, सामने आते भी नहीं

व्यंग्य आलोक पुराणिकचांदनी चौक जाना जैसे कई पीढ़ियों के इतिहास...

शेख हसीना को मृत्युदंड: दक्षिण एशियाई कूटनीति में भारत की नई चुनौती

बांग्लादेश के न्यायिक संकट और भारत का कूटनीतिक संतुलन  शेख...

भारत सरकार के श्रम सुधारों के नए युग में पत्रकार क्यों छूट गए पीछे ?

भारत सरकार द्वारा श्रम कानूनों में किए गए व्यापक...
en_USEnglish