दिल्ली में दम घोंटू जहरीली हवा हर साल मचाती है तबाही

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बाल मुकुंद ओझा

पराली जल रही है, लोगों का सांस लेना दूभर हो रहा है। देश की राजधानी दिल्ली की हवा अभी भी बेहद खराब श्रेणी में बनी हुई है। दिल्ली का औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक, AQI एक बार फिर खतरनाक स्थिति में पहुंच गया है और यह कई जगहों का 400 से पार है। हालांकि AQI में विभिन्न स्थानों पर उतार चढ़ाव भी देखा जा रहा है। दिल्ली में दम घोंटू जहरीली हवा हर साल तबाही मचाती है। प्रदूषण सिर्फ जान नहीं ले रहा है। सिर्फ सांसे नहीं छीन रहा है.बल्कि देश को खोखला भी कर रहा है। दावा है प्रदूषण की वजह से हर साल कई लाख करोड़ों का नुकसान होता है। एक शोध के अनुसार बिगड़ती हवा की गुणवत्ता और हवा में प्रदूषकों के बढ़ते स्तर से सांस की बीमारी और विकारों की संख्या और गंभीरता बढ़ जाती है। इसका सबसे अधिक बुरा असर बुजुर्ग और कमजोर या पहले से किसी बीमारी से जूझ रही युवा आबादी पर भी पड़ता है।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक बहुत से लोग इसके पीछे पंजाब-हरियाणा में जलाई जा रही पराली को मान रहे हैं। लेकिन किसान संगठनों का कहना है कि किसानों द्वारा फसल कटाई से पहले से दिल्ली का प्रदूषण बढ़ा हुआ था। कहा जा रहा है जैसे-जैसे फसलों की कटाई हो रहे है पंजाब-हरियाणा जैसे राज्यों में पराली जलाने के मामले बढ़ रहे हैं। पंजाब की बात करे तो यहां के कई शहरों का AQI बढ़ गया है।  रविवार को जालंधर का AQI 439, बठिंडा का 321, लुधियाना का 260, अमृतसर का 257, पटियाला का 195 और मंडी गोबिंदगढ़ का AQI 153 रिकॉर्ड किया गया। इसे गंभीर स्थिति आंकी जा रही है। अकेले पंजाब में पराली जलाने के 743 मामले दर्ज़ किये जा चुके है। एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार AQI बिगड़ने के पीछे दिल्ली के भीतर उत्सर्जन और सीमा-पार प्रदूषण दोनों जिम्मेदार हैं, लेकिन रविवार को पराली से होने वाले प्रदूषण ने सीजन का सबसे बड़ा योगदान दिया। केंद्र के डिसीजन सपोर्ट सिस्टम (DSS) के आंकड़ों के अनुसार, रविवार को पराली जलाने का अनुमानित योगदान 3.71प्रतिशत रहा, जो इस सीजन में अब तक का सबसे अधिक है। इससे पहले शुक्रवार को यह योगदान 3.45 प्रतिशत था। DSS के अनुसार, रविवार को दिल्ली के PM 2.5 का सबसे बड़ा योगदान ‘अन्य’ श्रेणी से (20.6 प्रतिशत ), इसके बाद दिल्ली के परिवहन क्षेत्र से (15.5 प्रतिशत ) और गौतम बुद्ध नगर से (7.57 प्रतिशत ) आया।

लेकिन सदा की तरह सियासत अपने उफान पर है। नेता एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। गलती का ठीकरा दूसरी सरकार पर फोड़ा जा रहा है। लगता है लोगों की खराब होती सेहत से किसी का लेना देना नहीं है। देश की राजधानी दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण में पराली जलाने का बड़ा योगदान है। पंजाब, हरियाणा आदि राज्यों में लगातार पराली जलाई जा रही है। पराली को लेकर सियासत भी होने लगी है। एक शोध अध्ययन के अनुसार राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वाहनों का धुआं, कचरा जलाना, सड़कों की धूल, निर्माण व ध्वंस कार्यों की धूल और उद्योगों का धुआं आदि के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। वाहनों से होने वाले धुंएँ के प्रदूषण में कमी लाने के साथ-साथ घरों में जल रहे ईंधन, उद्योगों के उत्सर्जन और निर्माण गतिविधियों से होने वाले धूल प्रदूषण की रोकथाम करना भी बहुत जरूरी है। सही बात तो ये है, दिल्ली में नासूर बन चुके प्रदूषण की सही प्रामाणिक स्थिति आज भी उपलब्ध नहीं है।

पराली धान की फसल के कटने बाद बचा बाकी हिस्सा होता है जिसकी जड़ें धरती में होती हैं। किसान पकने के बाद फसल का ऊपरी हिस्सा काट लेते हैं क्योंकि वही काम का होता है बाकी अवशेष होते हैं जो किसान के लिए बेकार होते हैं। उन्हें अगली फसल बोने के लिए खेत खाली करने होते हैं तो सूखी पराली को आग लगा दी जाती है। बड़े पैमाने में खेतों में पराली को जलाने से धुएं से निकलने वाली कार्बन मोनो ऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड गैसों से ओजोन परत फट रही है इससे अल्ट्रावायलेट किरणें, जो स्किन के लिए घातक सिद्ध हो सकती है सीधे जमीन पर पहुंच जाती है। इसके धुएं से आंखों में जलन होती है। सांस लेने में दिक्कत हो रही है और फेफड़ों की बीमारियां हो सकती हैं।

बाल मुकुंद ओझा

 डी-32, मॉडल टाउन, मालवीय नगर, जयपुर

मो.- 8949519406

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