क्या ग्रीन पटाखों तक सीमित रहना संभव है?

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दीवाली के मौके पर हर साल पटाखे छोड़कर खुशी का इजहार किया जाता है, लेकिन दीवाली पर दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) की सांसों पर संकट के बादल मंडराने लगते हैं। वायु प्रदूषण बढ़ने से सांस लेना दूभर हो जाता है। सामान्य पटाखे कितनी खतरनाक और हानिकारक हैं, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मुल्क की सबसे बड़ी अदालत को पटाखे फोड़ने का समय और तारीखें निर्धारित करने का आदेश देने पर मजबूर होना पड़ा। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की पीठ ने दिल्ली और एनसीआर में 18 से 20 अक्तूबर के बीच ग्रीन पटाखों की बिक्री केवल उन निर्धारित स्थानों से करने की अनुमति दी है, जिनकी पहचान जिलाधिकारी के माध्यम से की गई है। पटाखों को दीवाली से एक दिन पहले और दीवाली वाले दिन सुबह छह से सात बजे और रात में आठ से 10 बजे तक फोड़ने की इजाज़त है। अदालत के फैसले का व्यापक प्रचार-प्रसार करने के अलावा पुलिस प्रशासन, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों के साथ बिक्री वाले स्थलों पर निगरानी के लिए गश्ती दल का गठन करेगा। दल की जिम्मेदारी केवल क्यूआर कोड वाले उत्पाद की बिक्री सुनिश्चित कराने की है।
पीठ के निर्णय के मुताबिक प्रतिबंधित उत्पादों के निर्माण या बिक्री में शामिल लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। उल्लंघन करने वाले उत्पादकों के लाइसेंस रद्द किए जाएंगे। ई-कॉमर्स वेबसाइटों से पटाखों की बिक्री नहीं की जाएगी। पटाखे बेचने की इजाज़त सिर्फ राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (नीरी) से पंजीकृत लाइसेंस प्राप्त विक्रेता को ही है। गैर पंजीकृत निर्माताओं के बने पटाखों को जब्त किया जाएगा। बाहर से लाए पटाखे दिल्ली व एनसीआर में नहीं बेचे जाएंगे। गश्ती दल पटाखा निर्माताओं की नियमित जांच करेंगे तथा उनके क्यूआर कोड वेबसाइटों पर अपलोड किए जाएंगे। बेरियम वाले और नीरी द्वारा अस्वीकृत पटाखें के उपयोग की अनुमति नहीं होगी। लड़ियों और सीरीज पटाखों का निर्माण और बिक्री नहीं की जाएगी। सवाल यह है कि जब पटाखों का इस्तेमाल खुशी की अभिव्यक्ति के लिए किया जाता है, तो फिर हर साल दिल्ली और एनसीआर में इनके उपयोग पर प्रतिबंध लगाने की नौबत क्यों आती है? क्या सामान्य पटाखें के स्थान पर हरित पटाखों के इस्तेमाल से गंभीर वतावरण की समस्या का समाधान मुमकिन है? दरअसल, पटाखों में पोटेशियम नाइट्रेट, सल्फर, एल्युमीनियम, मैग्नीशियम और चारकोल जैसे बारूद बनाने वाले रासायनिक तत्व शामिल किए जाते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक हैं। रंगों के लिए अन्य रासायनिक पदार्थों का प्रयोग किया जाता है। हरे रंग के लिए बेरियम क्लोराइड, लाल रंग के लिए स्ट्रोंटियम कार्बोनेट, नीले रंग के लिए कॉपर क्लोराइड, पीले रंग के लिए सोडियम नाइट्रेट, नारंगी रंग के लिए स्ट्रोंटियम व सोडियम का मिश्रण और चांदी जैसे सफेद रंग के लिए टाइटेनियम, जिरकोनियम और मैग्नीशियम का मिश्रण प्रयोग में लाया जाता है। पटाखे फूटने व जलने के बाद इनमें से सल्फर डाई ऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड, कार्बन मोनॉक्साइड जैसी हानिकारक गैसों के अलावा हेवी मेटल्स सल्फर, लेड, क्रोमियम, कोबाल्ट, मरकरी मैग्नीशियम भी निकलते हैं। ये सभी हवा में घुलकर आंखों में जलन, सांस लेने में तकलीफ और बीमारी का कारण बनते हैं। पोटेशियम नाइट्रेट, एल्युमीनियम पावडर और सल्फर मिक्सचर के कारण पटाखों में तेज आवाज पैदा होती है। 2023 में भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बेरियम वाले पटाखों को रोकने संबंधी आदेश सिर्फ दिल्ली और एनसीआर तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि हर राज्य में लागू करने के लिए हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने 2018 में पारंपरिक पटाखों पर प्रतिबंध लगाते हुए केवल हरित पटाखों के उपयोग की अनुमति प्रदान की थी।
सवाल यह भी है कि क्या ग्रीन क्रेकर्स से प्रदूषण नहीं होगा? हरित पटाखों में जिओलाइट और आयरन ऑक्साइड का इस्तेमाल किया जाता है। ये पदार्थ कम रसायन का उपयोग करने के कारण पर्यावरण के लिए कम हानिकारक होते हैं। ये पटाखे पूरी तरह प्रदूषणमुक्त और हानिरहित नहीं होते, बल्कि सामान्य पटाखों की की अपेक्षा 30 प्रतिशत कम वायु प्रदूषण या पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) फैलाते हैं। पीएम हवा में पाए जाने वाले छोट-छोटे कण होते हैं, जिन्हें उनके आकार के हिसाब से पीएम-10, पीएम-2.5, पीएम-1 और अल्ट्रा-फाइन पार्टिकुलेट मैटर में विभाजित किया जाता है। ये छोटे कण शरीर में गहराई तक पहुंचकर स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। ग्रीन पटाखे सेफ वाटर एंड एयर रिलीजर, सेफ मिनीमल एल्युमीनियम और सेफ थर्माइट क्रेकर तीन प्रकार के होते हैं। पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचाने को ध्यान में रखते हुए इनमें रसायन मिलाया जाता है। ये पटाखे धूल को सोखने वाली पानी की बूंदें छोड़ते हैं और कम धुआं पैदा करते हैं। दीवाली, दशहरा, शब-ए-बरात और शादी-विवाह के मौकों पर पटाखे फोड़ने का रिवाज सदियों से चला आ रहा है। ग्रीन पटाखों तक सीमित रहना आसान नहीं है। वातावरण को प्रदूषणमुक्त बनाने की जिम्मेदारी सिर्फ सरकार को सौंपकर पल्ला नहीं झाड़ा जा सकता। स्वस्थ समाज का निर्माण करने के लिए हर व्यक्ति को जागरूक होने की जरूरत है, ताकि त्योहार का उल्लास बना रहे और वायु एवं घ्वनि प्रदूषण के खतरों से भी बचा जा सके।

एमए कंवल जाफरी

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