
उत्तर प्रदेश की राजनीति में आज़म ख़ान का नाम कभी प्रभाव और विवाद — दोनों का पर्याय रहा है। समाजवादी आंदोलन से निकले इस नेता ने तीन दशकों तक प्रदेश की सियासत में अपनी अहम भूमिका निभाई। लेकिन आज उनका राजनीतिक सफ़र इस सवाल के साथ खड़ा है कि क्या उन्होंने अपनी ऊर्जा जनता की सेवा में लगाई या सत्ता और प्रतिष्ठा की रक्षा में खो दी?
शुरुआत में संघर्ष, बाद में सत्ता का अहंकार
आज़म ख़ान ने राजनीति की शुरुआत छात्र आंदोलनों से की थी। वे एक समय आम जनता के बीच बेबाक आवाज़ के रूप में जाने जाते थे। मगर धीरे-धीरे वही नेता सत्ता में पहुँचकर उन आदर्शों से दूर होते गए, जिनके लिए वे कभी संघर्ष किया करते थे।
रामपुर में उनका राजनीतिक वर्चस्व इतना बढ़ गया कि स्थानीय प्रशासन और जनता पर भी उसका असर महसूस किया जाने लगा। यही वजह रही कि उनके विरोधियों ने उन्हें “स्थानीय सामंतवाद” का प्रतीक कहा।
जौहर विश्वविद्यालय : सपना या साधन?
मौलाना मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय की स्थापना को आज़म ख़ान ने अपने जीवन का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट बताया। परंतु समय के साथ यह सपना कई कानूनी विवादों में उलझ गया।
कथित रूप से सरकारी ज़मीनों के अधिग्रहण और स्थानीय किसानों की शिकायतों ने इस परियोजना की साख को कमजोर किया।
शिक्षा के नाम पर स्थापित यह संस्थान आज राजनीति, कोर्ट केस और प्रशासनिक कार्रवाई के बीच जकड़ा हुआ है — जिससे यह सवाल उठता है कि क्या विश्वविद्यालय शिक्षा का केंद्र बन सका या व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का प्रतीक मात्र रह गया?
राजनीति में टकराव और विवादों की परंपरा
आज़म ख़ान का राजनीतिक जीवन हमेशा टकराव से भरा रहा है — चाहे वह प्रशासन से हो, मीडिया से या विपक्ष से।
उनकी भाषा और बयानबाज़ी ने कई बार राजनीतिक गरिमा पर प्रश्न उठाए।
लोकतांत्रिक राजनीति में संवाद और सहयोग को ताकत माना जाता है, लेकिन आज़म ख़ान अक्सर इससे उलट मार्ग पर चले, जिससे उनका संघर्ष व्यक्तिगत बन गया।
जनता की उम्मीदों पर सवाल
जनता ने उन्हें कई बार चुना, विश्वास जताया, लेकिन क्या वे उस भरोसे पर खरे उतरे?
रामपुर जैसे क्षेत्र में आज भी शिक्षा, रोज़गार और बुनियादी सुविधाएँ चुनौती बनी हुई हैं।
नेता के रूप में उनसे उम्मीद थी कि वे इन समस्याओं को दूर करेंगे, परंतु उनका ध्यान अधिकतर सत्ता बचाने और अपनी छवि सुधारने में ही केंद्रित दिखाई दिया।
निष्कर्ष : राजनीति में जवाबदेही अनिवार्य है
आज़म ख़ान जैसे अनुभवी नेता से जनता को उम्मीद थी कि वे प्रदेश की राजनीति को नई दिशा देंगे, लेकिन उन्होंने अपने राजनीतिक अनुभव का उपयोग रचनात्मक सुधारों से ज़्यादा व्यक्तिगत प्रतिष्ठा की रक्षा में किया।
लोकतंत्र में कोई भी व्यक्ति कानून और जवाबदेही से ऊपर नहीं होता।
नेता चाहे कितना भी प्रभावशाली क्यों न हो, जनता के प्रति उत्तरदायित्व और पारदर्शिता सबसे ऊपर रहनी चाहिए — और शायद यही वह कसौटी है, जिस पर आज़म ख़ान जैसे नेताओं को इतिहास परखा जाएगा।

गुडडू हिंदुस्तानी