वर्तमान संदर्भों में महात्मा गांधी की प्रासंगिकता: समाधान का शाश्वत दर्शन

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​मोहनदास करमचंद गांधी, जिन्हें हम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नाम से जानते हैं, केवल इतिहास का एक अध्याय नहीं हैं; वे एक शाश्वत दर्शन हैं। आज, जब दुनिया हिंसा, जलवायु परिवर्तन, आर्थिक असमानता और सामाजिक विभाजन जैसी जटिल चुनौतियों से जूझ रही है, तब गांधी के सिद्धांत पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक प्रतीत होते हैं। उनके विचार, जो सत्य, अहिंसा और सादगी पर आधारित थे, आधुनिक समस्याओं के लिए अचूक उपचार प्रस्तुत करते हैं।

​सत्य और अहिंसा: वैश्विक संघर्षों का समाधान

​गांधी जी का मूल मंत्र सत्य (Truth) और अहिंसा (Non-violence) आज की दुनिया के लिए सबसे बड़ा सबक है। आज अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में झूठ, संदेह और युद्ध का माहौल है। ऐसे में, गांधी का अहिंसक प्रतिरोध (सत्याग्रह) न केवल एक राजनीतिक हथियार है, बल्कि सामाजिक और पर्यावरणीय आंदोलनों के लिए भी एक नैतिक ढाँचा प्रदान करता है।

​हिंसा और आतंकवाद: दुनिया के कई हिस्सों में सशस्त्र संघर्ष और आतंकवाद ने मानवता को खतरे में डाल दिया है। गांधी सिखाते हैं कि किसी भी समस्या का स्थायी समाधान हिंसा से नहीं, बल्कि संवाद और मानवीय प्रेम से संभव है। उनके विचार मार्टिन लूथर किंग जूनियर और नेल्सन मंडेला जैसे नेताओं के लिए प्रेरणा बने, जिन्होंने अहिंसा के मार्ग से बड़े सामाजिक परिवर्तन लाए।

​सत्य और ईमानदारी: आज के ‘पोस्ट-ट्रुथ’ युग में, जहाँ दुष्प्रचार और फेक न्यूज़ का बोलबाला है, गांधी का सत्य के प्रति आग्रह हमें पारदर्शिता और नैतिक आचरण का मूल्य सिखाता है। वे मानते थे कि साध्य की पवित्रता के लिए साधन का पवित्र होना आवश्यक है, जो राजनीति और प्रशासन में नैतिकता को सर्वोच्च स्थान देने की बात करता है।

​सर्वोदय और न्यासधारिता: आर्थिक विषमता पर नियंत्रण

​गांधी जी का आर्थिक दर्शन भी वर्तमान समय में गहरा अर्थ रखता है, खासकर जब पूंजीवादी व्यवस्था के कारण अमीर और गरीब के बीच की खाई बढ़ती जा रही है।

​न्यासधारिता (Trusteeship): गांधी जी ने न्यासधारिता का सिद्धांत दिया, जिसके अनुसार धनी वर्ग को अपनी संपत्ति का मालिक नहीं, बल्कि समाज का ट्रस्टी (संरक्षक) समझना चाहिए। उन्हें यह संपत्ति अपनी निजी ज़रूरतों से अधिक समाज के कल्याण के लिए उपयोग करनी चाहिए। यह सिद्धांत कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी (CSR) और परोपकार को एक नैतिक आधार प्रदान करता है, जिससे आर्थिक विषमता को कम करने में मदद मिल सकती है।

​सर्वोदय (Upliftment of All): ‘सर्वोदय’ का अर्थ है सबका उदय, या सबके जीवन स्तर में सुधार। यह अवधारणा समावेशी विकास (Inclusive Growth) की आधुनिक विचारधारा के अनुरूप है, जिसमें अंतिम व्यक्ति (अंत्योदय) का कल्याण केंद्र में होता है। यह सरकारों को केवल आर्थिक वृद्धि पर नहीं, बल्कि मानव विकास, स्वास्थ्य और शिक्षा पर समान ध्यान देने के लिए प्रेरित करता है।

​स्वदेशी और ग्राम स्वराज: आत्म-निर्भरता और पर्यावरण संरक्षण

​वैश्वीकरण के दौर में, गांधी के स्वदेशी और ग्राम स्वराज के विचार आत्म-निर्भरता और पर्यावरणीय स्थिरता के लिए एक मॉडल प्रस्तुत करते हैं।

​स्वदेशी और आत्म-निर्भरता: ‘स्वदेशी’ का अर्थ है अपने पड़ोसी क्षेत्र में बनी वस्तुओं का उपयोग करना और अपनी स्थानीय अर्थव्यवस्था का समर्थन करना। यह विचार वर्तमान में भारत सरकार के ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान का नैतिक आधार है। यह स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा देता है, ग्रामीण रोज़गार उत्पन्न करता है और लोगों को आत्म-निर्भर बनाता है।

​टिकाऊ विकास (Sustainable Development): गांधी जी ने प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाकर जीने पर जोर दिया। उनका यह प्रसिद्ध कथन कि, “पृथ्वी के पास हर व्यक्ति की ज़रूरत पूरी करने के लिए पर्याप्त संसाधन हैं, लेकिन किसी के लालच को पूरा करने के लिए नहीं,” जलवायु परिवर्तन के संकट में एक चेतावनी की तरह है। वे सादा जीवन, कम उपभोग और विकेन्द्रीकृत उत्पादन (कुटीर उद्योग) का समर्थन करते थे, जो आज के टिकाऊ विकास (Sustainable Development) और पर्यावरणीय नैतिकता के सिद्धांतों का मूल है।

​सामाजिक एकता और रचनात्मक कार्यक्रम

​गांधी जी की देश सेवा केवल स्वतंत्रता तक सीमित नहीं थी, बल्कि उन्होंने समाज के भीतर व्याप्त बुराइयों को भी दूर करने का प्रयास किया।

​अस्पृश्यता निवारण: उन्होंने अस्पृश्यता के विरुद्ध कड़ा संघर्ष किया और अछूतों को ‘हरिजन’ (ईश्वर के जन) कहकर सम्मान दिया। आज भी, जब समाज में जाति, धर्म और नस्ल के आधार पर भेदभाव मौजूद है, गांधी का समानता और भाईचारे का संदेश सामाजिक न्याय के संघर्षों को दिशा देता है।

​राष्ट्रीय एकता: उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता पर जोर दिया और सांप्रदायिक सद्भाव को राष्ट्रीय जीवन की सबसे बड़ी प्राथमिकता माना। आज भी सांप्रदायिक तनाव को कम करने और राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने में उनके सिद्धांत मार्गदर्शक हैं।

​उपसंहार

​महात्मा गांधी की प्रासंगिकता किसी एक देश या काल तक सीमित नहीं है। उनका दर्शन मानव स्वभाव और समाज की मूलभूत समस्याओं पर आधारित है। उनकी सादगी, निर्भीकता और आत्म-सुधार पर जोर देने वाली जीवन-शैली आज के युवाओं के लिए भी एक आदर्श है।
​गांधी को समझने का अर्थ केवल उनकी प्रतिमाओं पर माल्यार्पण करना नहीं है, बल्कि सत्य, अहिंसा, ईमानदारी और सादगी के सिद्धांतों को अपने व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन में उतारना है। जब तक दुनिया में अन्याय, गरीबी, हिंसा और पर्यावरण का शोषण मौजूद रहेगा, तब तक महात्मा गांधी का दर्शन समाधान के एक शाश्वत स्रोत के रूप में प्रासंगिक बना रहेगा।

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