भारतीय मूर्तिकला में राम वी सुतार योगदान सदियों तक स्मरण किया जाएगा

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भारत की कला परंपरा में जिन मूर्तिकारों ने आधुनिक युग में भी शिल्प को जीवित रखा, उनमें राम वी सुतार का नाम अत्यंत सम्मान के साथ लिया जाता है। अक्सर उन्हें गलती से रामस्वरूप कहा जाता है, जबकि स्टैचू ऑफ यूनिटी के वास्तविक निर्माता विश्वविख्यात मूर्तिकार राम वी सुतार हैं। उन्होंने अपने लंबे जीवन में भारतीय इतिहास, संस्कृति और राष्ट्रनिर्माताओं को पत्थर और धातु में ऐसा रूप दिया, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देता रहेगा।

राम वी सुतार का जन्म मध्य भारत के एक साधारण परिवार में 19 फरवरी 1925 को हुआ।18 दिसबर 2025 उनका निधन हुआा। बचपन से ही उनकी रुचि चित्रकला और मूर्तिकला में थी। ग्रामीण परिवेश में पले बढ़े सुतार ने मिट्टी और पत्थर से आकृतियां बनाकर अपनी कला यात्रा की शुरुआत की। परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत मजबूत नहीं थी, किंतु कला के प्रति उनकी लगन ने उन्हें आगे बढ़ने की शक्ति दी।

शिक्षा के क्षेत्र में राम वी सुतार ने औपचारिक कला प्रशिक्षण प्राप्त किया। उन्होंने देश के प्रतिष्ठित कला संस्थानों में अध्ययन कर शिल्प की बारीकियों को समझा। यहीं से उनकी कला में यथार्थवाद, संतुलन और भावाभिव्यक्ति का अद्भुत मेल देखने को मिलता है। वे केवल आकृति नहीं गढ़ते थे, बल्कि उसमें व्यक्तित्व और भाव भी उतार देते थे।

स्वतंत्रता के बाद भारत में राष्ट्रनिर्माण का दौर शुरू हुआ। इस समय देश को ऐसे कलाकारों की आवश्यकता थी, जो महापुरुषों के योगदान को मूर्त रूप दे सकें। राम वी सुतार इस आवश्यकता पर खरे उतरे। उन्होंने महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल सहित अनेक राष्ट्रीय नेताओं की मूर्तियां बनाईं, जो आज देश और विदेश में स्थापित हैं।

राम वी सुतार की कला की सबसे बड़ी विशेषता उनका यथार्थवादी दृष्टिकोण है। वे चेहरे की बनावट, शरीर की मुद्रा और भाव-भंगिमा पर विशेष ध्यान देते थे। उनकी बनाई मूर्तियों को देखकर ऐसा लगता है मानो व्यक्तित्व सजीव होकर सामने खड़ा हो। यही कारण है कि उनकी कृतियां केवल शिल्प नहीं, बल्कि इतिहास का जीवंत दस्तावेज बन जाती हैं।

सरदार वल्लभभाई पटेल की विश्वविख्यात विशाल प्रतिमा, जिसे स्टैचू ऑफ यूनिटी के नाम से जाना जाता है, राम वी सुतार की जीवन भर की साधना का शिखर मानी जाती है। यह प्रतिमा भारत की एकता, दृढ़ता और संकल्प का प्रतीक है। इस महाकाय मूर्ति की परिकल्पना से लेकर अंतिम रूप तक राम वी सुतार की कलात्मक दृष्टि स्पष्ट दिखाई देती है।

इस प्रतिमा के निर्माण में तकनीकी चुनौतियां अत्यंत कठिन थीं। इतने बड़े आकार में संतुलन, मजबूती और सौंदर्य बनाए रखना आसान नहीं था। राम वी सुतार ने अपने अनुभव और सूक्ष्म दृष्टि से इन सभी चुनौतियों का समाधान किया। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि भारतीय मूर्तिकला विश्व स्तर पर किसी से कम नहीं है।

राम वी सुतार को उनके योगदान के लिए अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुए। भारत सरकार ने उन्हें उच्च नागरिक सम्मान से अलंकृत किया। कला जगत में उन्हें मूर्तिकला का भीष्म पितामह कहा जाता है। उनके सम्मान केवल पुरस्कार नहीं, बल्कि उनकी साधना और तपस्या की स्वीकृति हैं।

उनकी कला केवल प्रतिमाओं तक सीमित नहीं रही। उन्होंने आने वाली पीढ़ियों के कलाकारों को मार्गदर्शन भी दिया। उनके पुत्र अनिल सुतार भी एक प्रसिद्ध मूर्तिकार हैं, जिन्होंने पिता की परंपरा को आगे बढ़ाया। इस प्रकार राम वी सुतार ने एक कलात्मक विरासत भी स्थापित की।

राम वी सुतार का जीवन संघर्ष, साधना और समर्पण की प्रेरक कहानी है। उन्होंने यह दिखाया कि साधारण पृष्ठभूमि से आने वाला व्यक्ति भी अपनी प्रतिभा और मेहनत से विश्व इतिहास में स्थान बना सकता है। उनकी बनाई मूर्तियां न केवल पत्थर और धातु की संरचनाएं हैं, बल्कि वे भारत की आत्मा, इतिहास और गौरव को अभिव्यक्त करती हैं। राम वी सुतार भारतीय मूर्तिकला के ऐसे स्तंभ हैं, जिनका योगदान सदियों तक स्मरण किया जाएगा। स्टैचू ऑफ यूनिटी सहित उनकी समस्त कृतियां भारत की सांस्कृतिक पहचान को वैश्विक मंच पर स्थापित करती हैं।(चैट जेपीजी)

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