औषधीय गुणों की खान है शरद पूर्णिमा की खीर

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बाल मुकुन्द ओझा

भारत त्योहारों का देश है। यहां हर त्योहार का कोई न कोई निहितार्थ है। त्योहार देश की सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और राष्ट्रीय एकता के जीवन्त प्रतीक होते हैं। इसमें देश के इतिहास का समावेश होता है। त्योहार बिना जाति, धर्म ओर भेदभाव के सभी लोग मिलजुल कर मनाते हैं और एक दूसरे के सुख दुख में भागीदारी देते हैं। ऐसा ही एक त्योहार शरद पूर्णिमा है। शरद पूर्णिमा पर देश के अनेक भागों में औषधीय खीर का वितरण सभी धर्मों के लोगों को समान रूप से किया जाता है। मान्यता है शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं में रहकर पृथ्वी के काफी करीब रहता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा से निकलने वाली किरणों में सभी प्रकार के रोगों को हरने की क्षमता होती है। इसीलिए कहा गया है कि शरद पूर्णिमा की रात आकाश से अमृत वर्षा होती है। इसी अमृत वर्षा को चखने के लिए घर घर में खुले आसमान के नीचे खीर बनायीं जाती है। इस खीर को प्रसाद के रूप में अगली सुबह वितरित किया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार शरद पूर्णिमा का पावन पर्व इस वर्ष 6 अक्टूबर, को देशभर में मनाया जाएगा। पंचांग के अनुसार, आश्विन माह की पूर्णिमा तिथि 6 अक्टूबर 2025, दोपहर 12 बजकर 23 मिनट पर शुरू होगी जिसका समापन 7 अक्टूबर, सुबह 9 बजकर 16 मिनट पर होगा। पंचांग के अनुसार इस बार शरद पूर्णिमा का पर्व 6 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा। इस दिन चन्द्रोदय का समय शाम 5 बजकर 27 मिनट पर होगा। शरद ऋतु की पूर्णिमा काफी महत्वपूर्ण तिथि है। साल की 12 पूर्णिमा में से शरद पूर्णिमा सबसे खास होती है। शरद पूर्णिमा तन, मन और धन तीनों के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है। शरद पूर्णिमा पर लक्ष्मी जी की उपासना कर कोजागर पूजा की जाती है, ये पूजा सर्वसमृद्धिदायक मानी गई है। देशभर में शरद पूर्णिमा का त्योहार काफी धूम-धाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इसे कौमुदी उत्सव, कुमार उत्सव, शरदोत्सव, कमला पूर्णिमा और रास पूर्णिमा के नाम से भी इसे जाना जाता है। हिंदू धर्म में सभी पूर्णिमा में आश्विन पूर्णिमा का विशेष महत्त्व है। शास्त्रों के अनुसार यह दिन आमजन के लिए लाभकारी है।

शरद पूर्णिमा पर खीर बनाकर चांदनी रात में रखने की परंपरा अब तक चली आ रही है।  माना जाता है कि इस रात चंद्रमा की रोशनी में खीर रखने से खीर में औषधीय गुण आ जाते हैं। मान्यता है इस खीर को खाने से पित्त से जुड़ी समस्याएं कम होती हैं, साथ ही एसिडिटी, स्किन रेशेज, पेट में जलन, आर्टिकेरिया जैसी बीमारियों से इस खीर से राहत मिलती है। आयुर्वेद के अनुसार, चंद्रमा की किरणों में औषधीय गुण होते हैं, जो खीर में मौजूद दूध और चावल के साथ मिलकर स्वास्थ्यवर्धक प्रभाव डालते हैं। दूध में लैक्टिक एसिड और अन्य पोषक तत्व होते हैं, जो चंद्रमा की किरणों के संपर्क में आने पर और अधिक प्रभावी हो सकते हैं। चांदनी रात में खीर को खुले आसमान के नीचे रखने से यह ठंडी रहती है, और बैक्टीरिया के विकास की संभावना कम होती है। इसके अलावा, शरद ऋतु में तापमान संतुलित होता है, जो खीर को रात भर ताजा रखने में मदद करता है। पूर्णिमा की चांदनी में खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रखने के पीछे वैज्ञानिक तर्क यह है कि चंद्रमा के औषधीय गुणों से युक्त किरणें पड़ने से खीर भी अमृत के समान हो जाएगी। उसका सेवन करना स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होगा। इस दिवस से वर्षा काल की समाप्ति तथा शीत काल की शुरुआत होती है।

शरद पूर्णिमा को भगवान कृष्ण से भी जोड़ कर देखा गया है। इसे रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता यह है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि को भगवान् श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ महा रास नामक दिव्य नृत्य किया था। इस दिन धन, वैभव और ऐश्वर्य की देवी माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। धार्मिक  मान्यता के मुताबिक  शरद पूर्णिमा को माता लक्ष्मी रातभर विचरण करती हैं। जो लोग माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं और अपने घर में उनको आमंत्रित करते हैं, उनके यहां वर्ष भर धन वैभव की कोई कमी नहीं रहती है। शरद पूर्णिमा के अवसर पर देश के अनेक स्थानों पर अस्थमा पीड़ितों के लिए खास औषधि का वितरण किया जाता है। यह औषधि चंद्रकिरणों से तैयार की जाती है।

बाल मुकुन्द ओझा

वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार

डी-32, मॉडल टाउन, मालवीय नगर, जयपुर

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