
बाल मुकुन्द ओझा
देश में हर वर्ष दो से आठ अक्टूबर तक मद्य निषेध सप्ताह के आयोजन की औपचारिकता का निर्वहन किया जाता है। इस अवसर पर पोस्टर, प्रदर्शनी, भाषण, मौखिक वार्ता ,विभिन्न प्रतियोगिताएं आयोजित कर छात्रों और आम जनों को शराब की बुराइयों से अवगत कराया जाता है। साथ ही मद्यपान, अन्य मादक द्रव्यों, पदार्थ तथा नशीली दवाओं के दुरुपयोग की रोकथाम हेतु समुदाय में व्यापक जनमत जाग्रत करने का प्रयास किया जाता है। मगर हमारे लाख प्रयासों के बावजूद इस पर पूरी तरह नकेल नहीं कसी जा सकी है।
नशाखोरी इस सदी की सबसे बड़ी समस्या है जिसमें शराब का नशा प्रमुख है। आज युवा वर्ग शराब के नशे में खोता जा रहा है। शराब जैसे तन मन और परिवार को खोखला करने वाली की लत उन्हें बर्बाद कर रही है। शुरू में युवा शौक के तौर पर शराब का सेवन करता है और बाद में नशे की मांग पूरी करने के लिए तस्करी और गैर सामाजिक कार्य के कारोबार में फंस जाता है। आजकल के बदलते लाइफस्टाइल में हमारे देश में नशा एक ऐसा अभिशाप बन कर उभर रहा है जो हमारे युवाओं को तेजी से अपनी गिरफ्त में लेता जा रहा है। साल-दर-साल इन युवाओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है। युवाओं में शराब जैसे खतरनाक नशे के बढ़ते चलन के पीछे बदलती जीवनशैली, अकेलापन, बेरोज़गारी और आपसी कलह जैसे अनेक कारण हो सकते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि शराब की वजह से हर साल करीब 30 लाख लोगों की मौत होती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि शराब से सेवन से हर साल दुनिया भर में 20 में से लगभग एक मौत शराब पीने के कारण होती है। शराब पी के गाड़ी चलाने, शराब के कारण होने वाली हिंसा और दुर्व्यवहार और कई तरह की बीमारियों और विकारों के कारण यह मौत होती है। एक सरकारी सर्वेक्षण के अनुसार भारत में पांच में से एक शख्स शराब पीता है। सर्वे के अनुसार 19 प्रतिशत लोगों को शराब की लत है। जबकि 2.9 करोड़ लोगों की तुलना में 10-75 उम्र के 2.7 प्रतिशत लोगों को हर रोज ज्यादा नहीं तो कम से कम एक पेग जरूर चाहिए होता है और ये शराब के लती होते हैं। सर्वेक्षण के अनुसार देशभर में 10 से 75 साल की आयु वर्ग के 14.6 प्रतिशत यानी करीब 16 करोड़ लोग शराब पीते हैं। छत्तीसगढ़, त्रिपुरा, पंजाब, अरुणाचल प्रदेश और गोवा में शराब का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। इस सर्वे की चौंकाने वाली बात यह है कि देश में 10 साल के बच्चे भी नशीले पदार्थों का सेवन करने वालों में शामिल हैं।
एक अन्य सर्वे के मुताबिक भारत में गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले लगभग 37 प्रतिशत लोग नशे का सेवन करते हैं। इनमें ऐसे लोग भी शामिल है जिनके घरों में दो जून रोटी भी सुलभ नहीं है। जिन परिवारों के पास रोटी-कपड़ा और मकान की सुविधा उपलब्ध नहीं है तथा सुबह-शाम के खाने के लाले पड़े हुए हैं उनके मुखिया मजदूरी के रूप में जो कमा कर लाते हैं वे शराब पर फूंक डालते हैं। इन लोगों को अपने परिवार की चिन्ता नहीं है कि उनके पेट खाली हैं और बच्चे भूख से तड़फ रहे हैं। ऐसे लोगों की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है। ये लोग कहते हैं वे गम को भुलाने के लिए नशे का सेवन करते हैं। उनका यह तर्क कितना बेमानी है जब यह देखा जाता है कि उनका परिवार भूखे ही सो रहा है। युवाओं में नशा करने की बढ़ती प्रवृत्ति के चलते शहरी और ग्रामीण अंचल में आपराधिक वारदातों में काफी इजाफा हो रहा है। शराब के साथ नशे की दवाओं का उपयोग कर युवा वर्ग आपराधिक वारदातों को सहजता के साथ अंजाम देने लगे हैं। हिंसा ,बलात्कार, चोरी, आत्महत्या आदि अनेक अपराधों के पीछे नशा एक बहुत बड़ी वजह है। शराब पीकर गाड़ी चलाते हुए एक्सीडेंट करना, शादीशुदा व्यक्तियों द्वारा नशे में अपनी पत्नी से मारपीट करना आम बात है । शराब पीने से कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं, जिनमें लीवर का सिरोसिस और कुछ कैंसर शामिल हैं। रिपोर्ट में पाया गया कि शराब का सेवन करने से लोग तपेदिक, एचआईवी और निमोनिया जैसी संक्रामक बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।
बाल मुकुन्द ओझा

वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार
डी 32, मॉडल टाउन, मालवीय नगर, जयपुर