वैश्विक व्यापार में रुपये की नई दस्तक

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रुपये के वैश्वीकरण की दिशा में भारत के बढ़ते कदम

— स्थानीय मुद्रा निपटान प्रणाली और भारतीय रिज़र्व बैंक की नई पहलें

रुपये का अंतरराष्ट्रीयकरण भारत को आर्थिक स्वायत्तता, भुगतान सुरक्षा और रणनीतिक स्वतंत्रता प्रदान करता है। इससे डॉलर पर निर्भरता घटती है, भुगतान बाधाएँ कम होती हैं और विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव घटता है। निर्यातकों को विनिमय दर से जुड़े जोखिम कम होते हैं, जबकि व्यापारिक साझेदारों के लिए भी स्थानीय मुद्रा में निपटान अधिक सरल व स्थिर होता है। स्थानीय मुद्रा निपटान प्रणाली, त्वरित भुगतान तंत्र की वैश्विक पहुँच, तथा रुपये आधारित ऋण व्यवस्था जैसे कदम भारत को वैश्विक वित्तीय व्यवस्था में अधिक प्रभावशाली भूमिका की ओर अग्रसर करते हैं।

– डॉ. प्रियंका सौरभ

भारत आज उभरती वैशिक अर्थव्यवस्था का महत्त्वपूर्ण केंद्र बन रहा है और इसी आकांक्षा के साथ वह अपनी मुद्रा—भारतीय रुपये—को अंतरराष्ट्रीय लेनदेन में अधिक स्वीकार्य बनाने की दिशा में गंभीर प्रयास कर रहा है। बदलते भू-राजनीतिक वातावरण, डॉलर-निर्भरता से जुड़ी अनिश्चितताओं तथा बहुध्रुवीय आर्थिक व्यवस्था के उभार ने यह अवसर प्रदान किया है कि भारत क्षेत्रीय और वैशिक व्यापार में रुपये के उपयोग को बढ़ाए। इसी संदर्भ में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा स्थानीय मुद्रा निपटान प्रणाली की शुरुआत और इसे अनेक देशों के साथ लागू करने की कोशिश रुपये को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मज़बूत बनाने वाली निर्णायक पहल बनकर उभरी है।

रुपये के प्रसार के पीछे कई प्रेरक कारण हैं। सबसे प्रमुख कारण अमेरिकी डॉलर पर अत्यधिक निर्भरता को कम करना है, क्योंकि डॉलर आधारित भुगतान तंत्र अनेक बार राजनीतिक तनाव, प्रतिबंधों और वैशिक वित्तीय अस्थिरता के समय जोखिम पैदा करता है। रूस–यूक्रेन संघर्ष के बाद भारत ने अनुभव किया कि डॉलर आधारित तंत्र के कारण कई लेनदेन बाधित हो जाते हैं और व्यापार प्रभावित होता है। यदि व्यापार सीधे स्थानीय मुद्राओं में हो, तो भुगतान अधिक सुगम और सुरक्षित हो सकता है तथा विदेशी मुद्रा भंडार पर भी अनावश्यक दबाव नहीं पड़ता। साथ ही, कई देश अब अपने व्यापार में स्थानीय मुद्राओं के प्रयोग की ओर बढ़ रहे हैं, जिससे डॉलर-केंद्रित व्यवस्था धीरे-धीरे परिवर्तित हो रही है। भारत भी इस परिवर्तनशील प्रवृत्ति का स्वाभाविक हिस्सा है।

भारत की तीव्र आर्थिक वृद्धि और बढ़ते व्यापारिक संबंध भी रुपये-आधारित निपटान की आवश्यकता को बढ़ाते हैं। उदाहरण के लिए, भारत–रूस व्यापार पिछले दो दशकों में कई गुना बढ़ा है, परन्तु इस व्यापार में रुपये का उपयोग सीमित है। मुद्रा-आधारित विकल्प बढ़ने से न केवल व्यापार गति पकड़ता है बल्कि भारतीय निर्यातकों को विनिमय दर के उतार–चढ़ाव और हेजिंग लागत से भी राहत मिलती है। दीर्घकाल में वैश्विक स्तर पर स्वीकार्य मुद्रा भारत की आर्थिक शक्ति और राजनीतिक प्रभाव का संकेत भी बनती है। भारत के 30 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था और 1 खरब डॉलर के निर्यात लक्ष्य की दिशा में यह एक अनिवार्य कदम माना जा रहा है।

हालाँकि, रुपये के वैश्वीकरण के मार्ग में कई चुनौतियाँ भी हैं। अनेक देशों को अभी भी डॉलर या अपनी स्थानीय मुद्रा अधिक स्थिर विकल्प लगती है। कुछ देशों को रुपये की विनिमय दर की स्थिरता पर भरोसा कम है। व्यापारिक साझेदारों के साथ मूल्य-वृद्धि आधारित वस्तुओं का आदान–प्रदान सीमित होने से भी रुपये के व्यापक प्रयोग की संभावना घटती है। भारतीय निर्यातकों में भी रुपये आधारित निपटान के प्रति जागरूकता कम है, जिसके कारण वे इस विकल्प का पूरा लाभ नहीं उठा पाते। अंतरराष्ट्रीय भुगतान और संदेश प्रणाली की सीमित परस्पर संपर्कता भी रुपये की स्वीकार्यता को धीमा करती है, क्योंकि अभी भी बड़ी संख्या में देश पारंपरिक वैश्वीकरण संदेश तंत्र पर निर्भर हैं।

इन चुनौतियों के बीच भारतीय रिज़र्व बैंक की स्थानीय मुद्रा निपटान प्रणाली रुपये को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने की दिशा में बड़ा बदलाव लेकर आई है। इस प्रणाली के अंतर्गत भारत अब संयुक्त रूप से सहमत देशों के साथ सीधे रुपये में व्यापार कर सकता है। संयुक्त अरब अमीरात, इंडोनेशिया, मॉरीशस और मालदीव के साथ हुए समझौते इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं। इससे न केवल दोनों देशों के बीच व्यापार सुगम होगा बल्कि बैंकिंग लागत और भुगतान समय में भी कमी आएगी। इसके अतिरिक्त भारतीय रिज़र्व बैंक ने पड़ोसी देशों के बैंक एवं नागरिकों को रुपये में ऋण देने की अनुमति देकर नेपाल, भूटान और श्रीलंका जैसे देशों में रुपये के उपयोग को बढ़ावा दिया है।

भारत ने अपने त्वरित भुगतान तंत्र को कई देशों से जोड़कर एक नई वित्तीय संपर्क व्यवस्था विकसित की है। संयुक्त अरब अमीरात के साथ त्वरित भुगतान तंत्र का जुड़ना छोटे व्यापारियों, पर्यटकों और प्रवासी भारतीयों के लिए तत्काल भुगतान को सरल बनाता है, जिससे रुपये की उपयोगिता और स्वीकार्यता दोनों बढ़ती हैं। इसके साथ ही भारत अपनी वित्तीय संदेश प्रणाली को भी साझेदार देशों की प्रणालियों से जोड़ने की दिशा में कार्य कर रहा है, जिससे परंपरागत वैश्विक संदेश तंत्र पर निर्भरता कम होगी। यह व्यवस्था भुगतान प्रक्रिया को राजनीतिक तनावों से सुरक्षित रखेगी और रुपये की विश्वसनीयता बढ़ाएगी।

समग्र रूप से रुपये का अंतरराष्ट्रीयकरण भारत की दीर्घकालिक रणनीतिक और आर्थिक आकांक्षा का आधार है। स्थानीय मुद्रा निपटान प्रणाली, डिजिटल भुगतान संपर्क, द्विपक्षीय वित्तीय संवाद और निर्यातकों की जागरूकता—ये सभी घटक मिलकर रुपये को वैश्विक व्यापार में अधिक उपयोगी और स्वीकृत मुद्रा बना सकते हैं। चुनौतियाँ अवश्य हैं, परंतु बदलते वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में भारत के पास अवसर भी विशाल है। यदि भारत अपने व्यापारिक साझेदारों के साथ आपूर्ति श्रृंखला को गहरा करे, भुगतान तंत्र को सरल बनाए और रुपये की स्थिरता को मजबूत करे, तो आने वाले वर्षों में रुपये की वैश्विक भूमिका निश्चित रूप से विस्तार पाएगी।

-प्रियंका सौरभ 

रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,

कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,

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