राष्ट्रीय प्रेस दिवस : कलम आज उनकी जय बोल

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                                               बाल मुकुन्द ओझा                             

राष्ट्रीय प्रेस दिवस यानि भारतीय पत्रकारिता दिवस 16 नवम्बर को मनाया जाता है। पत्रकारिता दिवस पर आज राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर की ‘कलम आज उनकी जय बोल’ कविता बड़ी शिद्दत से याद आ रही है। इसी कलम को लेकर आज तरह तरह की बातें सुनने को मिल रही है। कलम की ताकत से हर कोई परिचित है,  मगर यह कलम आज कहां खो गई है, उस पर स्वतंत्र भाव से चिंतन मनन की जरुरत है। प्रेस को आज चौतरफा खतरे का सामना करना पड़ रहा है। कहीं शासन के कोपभाजन का सामना करना पड़ता है तो कहीं राजनीतिज्ञों, बाहुबलियों और अपराधियों से मुकाबला करना पड़ता है। समाज कंटकों के मनमाफिक नहीं चलने का खामियाजा प्रेस को भुगतना पड़ता है। दुनिया भर में प्रेस को निशाना बनाया जा रहा है। रिपोर्टिंग के दौरान मीडियाकर्मी को कहीं मौत के घाट उतारा जाता है तो कहीं जेल की सलाखों की धमकियाँ दी जाती है। मीडिया पर भी आरोप है कि वह अपनी जिम्मेदारियों का सही तरीकें से निर्वहन नहीं कर पा रहा है। कहा जा रहा है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने हमारे सामाजिक सरोकारों को विकृत कर बाजारू बना दिया है। बाजार ने हमारी भाषा और रचनात्मक विजन को नष्ट भ्रष्ट करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है। ऐसे में प्रेस की चुनौतियों को नए ढंग से परिभाषित करने की जरुरत है।

प्रेस को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है। पत्रकारिता की स्वतंत्रता, निष्पक्षता और नैतिक मूल्यों को बनाये रखने के लिए 1956 में प्रथम प्रेस आयोग स्थापित का निर्णय लिया गया था। तत्पश्चात 4 जुलाई 1966 को भारत में प्रेस परिषद की स्थापना की गई। इस परिषद ने 16 नवंबर, 1966 को पूर्ण रूप से कार्य करना शुरू किया। तब से लेकर हर वर्ष भारतीय प्रेस परिषद को सम्मानित करने के लिए 16 नवंबर को राष्ट्रीय प्रेस दिवस यानि भारतीय पत्रकारिता दिवस मनाया जाता है। स्वतंत्र, निष्पक्ष और जिम्मेदार प्रेस की आवश्यक भूमिका का सम्मान करते हुए, हर साल 16 नवंबर को ‘राष्ट्रीय प्रेस हदवस’ मनाया जाता है। भारतीय प्रेस परिषद की ऑफिशियल वेबसाइट पर मौजूद एक नोटिफिकेशन के अनुसार, परिषद के अध्यक्ष के साथ ही कुल 28 सदस्य भी होंगे। परिषद का अध्यक्ष परिपाटी के अनुसार, भारत के सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश होंगे। वहीं 28 सदस्य में से 20 भारत में संचालित होने वाले मीडिया समूहों से संबंधित होते हैं। वहीं 5 सदस्य को संसद के दोनों सदनों से नामित किया जाता है। बाकी बचे 3 सदस्यों का नामांकन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, भारतीय विधिज्ञ परिषद और साहित्य अकादमी द्वारा किया जाता है।

आपातकाल को अपवाद के रूप में छोड़ दें तो भारत में प्रेस की स्वतंत्रता को कभी कोई गंभीर आंच का सामना नहीं करना पड़ा। मगर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के उदय के बाद प्रेस की स्वतंत्रता पर अंगुली उठाई जाने लगी। पक्ष और विपक्ष के दो धड़ों के बीच मीडिया को निशाना बनाया जाने लगा। विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक (2024) की बात करें तो भारत को 180 देशों की सूची में 159वाँ स्थान प्राप्त हुआ है, जो विशेष रूप से विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में इसकी स्थिति को देखते हुए चिंताजनक है। हालाँकि भारत की रैंकिंग में कुछ सुधार हुआ है, लेकिन यह सुधार देश की प्रगति के कारण नहीं बल्कि अन्य देशों में प्रेस स्वतंत्रता में गिरावट के कारण हुआ है।

प्रेस समाज का आइना होता है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में प्रेस की स्वतंत्रता बुनियादी जरूरत है। मीडिया की आजादी का मतलब है कि किसी भी व्यक्ति को अपनी राय कायम करने और सार्वजनिक तौर पर इसे जाहिर करने का अधिकार है। प्रेस के सामने पहले भी चुनौतियां थीं और आज भी हैं। पत्रकारिता में निर्भीकता एवं निष्पक्षता होनी चाहिए। यह एक गम्भीर व कठिन विषय माना जाता है। पत्रकारिता की मर्यादा बनाये रखना सबकी नैतिक जिम्मेदारी है। भय और पक्षपात रहित पत्रकारिता के मार्ग में बड़ी चुनौतियां है। यह जोखिम भरा मार्ग है जिस पर चलना तलवार की धार पर चलना है। आज पत्रकारिता पर कई प्रकार का दवाब है। निष्पक्ष पत्रकारिता खण्डे की धार हो गयी है।

सत्य और तथ्य को बेलाग उद्घाटित करना सच्ची पत्रकारिता है। कलम में बहुत ताकत होती है, आजादी के दौरान पत्रकारों ने अपनी कलम के बल पर अंग्रेजों को देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया था। प्रेस सरकार और जनता के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में अपनी महती भूमिका का निर्वहन करता है। प्रेस की चुनौतियां लगातार बढ़ती ही जा रही है। प्रेस को आंतरिक और बाहरी दोनों मोर्चों पर संघर्ष करना पड रहा है। इनमें आंतरिक संघर्ष अधिक गंभीर है। प्रेस आज विभिन्न गुटों में बंट गया है जिसे सुविधा के लिए हम पक्ष और विपक्ष का नाम देवे तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। जनमत निर्माण में मीडिया की सशक्त भूमिका है, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की पहुँच घर घर में हो गई है। मगर लोग आज भी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की अपेक्षा प्रिंट मीडिया को अधिक विश्वसनीय मान और स्वीकार कर रहे है।

बाल मुकुन्द ओझा

वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार

डी-32, मॉडल टाउन, मालवीय नगर, जयपुर

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