बुजुर्गों की आबादी बढ़ रही है मगर सम्मान और सुविधाएं नहीं

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बाल मुकुन्द ओझा

 बुजुर्गों की सामाजिक, आर्थिक स्थिति पर आये दिन मीडिया में खबरे सुर्खियां बटोरती है। बुजुर्ग किसी भी समाज का आधार होते हैं। उनके अनुभव, ज्ञान, और जीवन-मूल्य अगली पीढ़ी को दिशा देते हैं। लेकिन बदलते सामाजिक परिवेश, शहरीकरण, और आधुनिक जीवनशैली के कारण बुजुर्गों की स्थिति में काफी बदलाव आया है। आज के समाज में वरिष्ठ नागरिकों के लिए आपस में मिलने-जुलने, बातचीत करने और अपने अनुभव साझा करने की जगहें कम होती जा रही हैं। इसका सीधा असर उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। इसी अकेलेपन को दूर करने के लिए विभिन्न शहरों में कॉफी क्लब, चाय क्लब और पार्क क्लब जैसे आयोजन किए जा रहे हैं। कुछ गैर-सरकारी संगठन भी बुजुर्गों के लिए हर महीने खास मुलाकातें आयोजित करते हैं, जहाँ वे अपने शौक (जैसे स्नेह मिलन, गज़ल, संगीत या ताश) को पूरा कर पाते हैं। एक अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में आगामी 2030 तक प्रत्येक 6 में से एक व्यक्ति की आयु 60 वर्ष से ज्यादा होंगी। हमारे देश की बात करें तो भारत की बुजुर्ग आबादी अगले दशक में 41 प्रतिशत तक बढ़ जाने का अनुमान है, यानी 2031 तक इस देश में 194 मिलियन वरिष्ठ नागरिक हो जाएंगे। यह जानकारी एक सरकारी रिपोर्ट में दी गई है। दुनिया के कुछ देश बुजुर्गों को एक ही छत के नीचे स्वास्थ्य सहित सभी प्रकार की मूलभूत सुविधाएं सुलभ करा रहे है। मगर हमारे देश में बुजुर्गों को पेंशन स्वास्थ्य सुविधा आदि की आंशिक सुविधा जरूर दी जा रही है मगर अन्य आवश्यक सुविधाओं की दृष्टि से हम बहुत पीछे है।

संयुक्त राष्ट्र की इंडिया एजिंग रिपोर्ट के मुताबिक देश और दुनिया की आबादी बूढ़ी हो रही है। वैश्विक स्तर पर बात करें तो 2023 में 7.9 अरब की आबादी में से करीब 1.1 अरब लोगों की उम्र 60 साल से अधिक होगी। यह जनसंख्या का लगभग 13.9 प्रतिशत है। 2050 तक वैश्विक आबादी में बुजुर्गों की संख्या बढ़कर लगभग 2.2 बिलियन हो जाएगी। भारत की बात करें तो देश में बुजुर्गों की आबादी बढ़ने का सिलसिला 2010 से शुरू हुआ है। वर्तमान चलन के अनुसार, 60 वर्ष से अधिक आयु के नागरिकों की संख्या लगभग 15 वर्षों में दोगुनी हो रही है। मगर आबादी की वृद्धि के बावजूद बुजुर्गों को जीविनोपयोगी पूरी सुविधाएं आज भी नहीं मिल रही है। सामाजिक सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को तेजी से बढ़ते उम्र वाले लोगों की जिम्मेदारी संभालने के हिसाब से तैयार होना होगा। सीनियर सिटीजन के हेल्थ, सोशल सर्विस और ओल्ड एज केयर के मामले में सरकार को बड़ा निवेश करने और इसके लिए बड़ी तैयारी करने की जरूरत है।  इन चीजों की मौजूदा हालत खस्ता है और इस स्थिति में भारत में सीनियर सीटिजन के लिए मुश्किलें और बढ़ने वाली है।

 विश्व सामाजिक रिपोर्ट के मुताबिक लोग पहले की तुलना में कहीं अधिक वृद्धावस्था तक जी रहे हैं। लेकिन, साथ ही पेंशन, जीवन-व्यापन और स्वास्थ्य देखभाल की कीमतों में भी भारी उछाल आया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जन्म से ही समान अवसरों को बढ़ावा देकर, हर व्यक्ति को बेहतर स्वास्थ्य के साथ वृद्ध होने पर भी बेहतर सुविधाएं दी जा सकती हैं, जिससे देश फिर से लाभान्वित हो सकते हैं। रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि देशों को लंबे समय से चली आ रही नीतियों और आजीविका और काम से जुड़े तरीको पर फिर से विचार करना चाहिए। अब समय आ गया है जब 65 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों की संख्या सदी के मध्य तक दोगुनी से अधिक होने का अनुमान है। रिपोर्ट के मुताबिक 2021 में, दुनिया भर में 76.1 करोड़ लोग 65 और उससे अधिक आयु के थे, जो 2050 तक बढ़कर 1.6 अरब हो जाएंगे। रिपोर्ट में कहा गया है कि 80 वर्ष या उससे अधिक आयु के लोगों की संख्या और भी तेजी से बढ़ रही है। स्वास्थ्य और चिकित्सा उपचारों में सुधार, शिक्षा तक अधिक पहुंच और प्रजनन क्षमता में कमी के कारण लोग लंबे समय तक जी रहे हैं।

भारत में कभी बुजुर्गों की पूजा की जाती थी। बुजुर्ग घर की आन बान और शान थे। बिना बुजुर्ग को पूछे कोई भी शुभ काम नहीं किया जाता था। आज वही बुजुर्ग अपने असहाय होने की पीड़ा से गुजर रहा है। दुर्भाग्य से उसे यह मर्मान्तक पीड़ा देने वाले कोई और नहीं अपितु उनके परिजन ही है। बुजुर्गो का सम्मान करने और सेवा करने की हमारे समाज की समृद्ध परंपरा रही है। समाचार पत्रों में इन दिनों बुजुर्गों के सम्बन्ध में प्रकाशित होने वाले समाचार निश्चय ही दिल दहला देने वाले हैं। राम राज्य का सपना देखने वाला हमारा देश आज किस दिशा में जा रहा है, यह बेहत चिंतनीय है। भारत में बुजुर्गों का मान-सम्मान तेजी से घटा है। यह हमारे सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों का अवमूल्यन है, जिसे गंभीरता से लेने की जरूरत है। बुजुर्गों की वास्तविक समस्याएं क्या है और उनका निराकरण कैसे किया जाये इस पर गहनता से मंथन की जरूरत है। आज घर  घर में बुजुर्ग है। ये इज्जत से जीना चाहते है।  मगर यह कैसे संभव है यह विचारने की जरूरत है।

बाल मुकुन्द ओझा

वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार

डी-32, मॉडल टाउन, मालवीय नगर, जयपुर

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