प्री वेडिंग फोटो शूट : यादों का खजाना या मर्यादा का हनन

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बाल मुकुन्द ओझा

आजकल देशभर में प्री-वेडिंग शूट का एक चलन बढ़ता ही जा रहा है। पिछले कुछ सालों में प्री वेडिंग शूट शादी की फोटो एल्बम  बनाने से ज्यादा ज़रुरी बन चुके हैं। प्री वेडिंग देश में एक लक्जरी इंडस्ट्री के रूप में उभर रहा है जो अपने बजट के हिसाब से किसी पार्क,  रमणिक स्थल या किसी खूबसूरत स्थान पर ये शूट किए जाने लगे हैं। इसके तहत भावी दूल्हा- दुल्हन अपने परिवारजनो की सहमति से शादी से पूर्व फ़ोटो ग्राफर के साथ देश के अलग-अलग स्थानों पर सैर सपाटा करते हैं, बड़े होटलो, हेरिटेज बिल्डिंगों, समुद्री बीच व अन्य ऐसी जगहों पर जहाँ सामान्यतः पति पत्नी शादी के बाद हनीमून मनाने जाते है, जाकर अलग- अलग और कम से कम परिधानों में एक दूसरे की बाहो में समाते हुए वीडियो शूट करवाते है। विवाह से पहले किया जाने वाला वह फोटो/वीडियो ग्राफी जिसमें होने वाले भावी दंपति अपने विवाह से पहले, एक प्रेमी जोड़े की भांति फोटो और वीडियो शूट करवाते हैं। जिसे वे मुख्य शादी वाले दिन बड़ी स्क्रीन पर एक शॉर्ट फिल्म के रूप में पेश करते हैं और सोशल मीडिया पर भी बड़े ही उत्साह के साथ पोस्ट करते हैं। इसे ही वीडियो शूट की संज्ञा दी जा रही है। इस प्रकार के आयोजन पर हजारों लाखों का खर्चा भी किया जाने लगा है। मीडिया ख़बरों के अनुसार विवाह से पहले इस प्रकार के प्रचलन से समाज में कई प्रकार की समस्याएं उभरने लगी हैं। बहुत से परिवार इस खर्चे को सहन करने की स्थिति में नहीं होते है मगर आपसी दवाब के आगे झुक जाते है।  विभिन्न रिपोर्टों में प्री-वेडिंग शूट को निजता का उल्लंघन बताते हुए इसे अनावश्यक खर्च और पारिवारिक तनाव का कारण बताया जाकर लोगों को सावचेत किया जा रहा है। समाज इसे स्टेटस सिंबल के रूप में देखता है, जो मर्यादा को कम करता है। शादी को सादगी और भारतीय परंपराओं के अनुरूप मनाना चाहिए। कुछ जागरूक संगठनों ने प्री-वेडिंग शूट जैसी कुरीतियों को रोकने का आह्वान किया है। उन्होंने कहा कि विवाह एक पवित्र बंधन है, जो दो परिवारों और आत्माओं का मिलन है न कि दिखावे का जरिया।

शादी से पहले प्री वेडिंग को लेकर हमारे समाज में तरह तरह की बातें सुनने को मिल रही है। वह भी एक समय था जब विवाह के दौरान फोटो खिंचवाकर उसे एल्बम में संजो कर रखते थे। इस एल्बम का क्रेज कुछ दिनों तक रहता और बाद में कहीं रखकर इसे भुला दिया जाता। समय बदला और अब हम डिजिटल युग में प्रवेश कर चुके है। कुछ समय पहले तक हम एल्बम के साथ वीडियो बनाकर अपने पास रख लेते थे। इस वीडियो को यदा कदा देख लेते थे। मगर अब हमारा डिजिटलीकरण हो चुका है और इसी के साथ प्री वेडिंग के नाम से एक नई प्रथा शुरू हो गई है। अब जमाना सोशल मीडिया का है। युवा अपनी हर घटना को सोशल मीडिया पर परोसने लगा है तो प्री वेडिंग कैसे पीछे रहता। अब प्री वेडिंग भी सोशल मीडिया पर देखी जाने लगी है। प्री वेडिंग के वीडियो और फोटो देखकर सामान्य परिवारों में काफी हलचल देखने को मिल रही है। कुछ लोग इसे पसंद कर रहे है तो कुछ ना पसंद कर रहे है। यहीं से इसके समर्थन और विरोध में आवाजें बुलंद होने लगी है। कुछ सामाजिक संगठन इसे देश की संस्कृति के खिलाफ बता कर विरोध जता रहे है।

बताया जाता है प्री-वेडिंग शूट एक पाश्चात्य संस्कृति है। जो पिछले कुछ दशक से भारत में भी घर घर जगह बना रही है। प्री-वेडिंग शूट की कहानी भी बड़ी अजब गजब है। कई परिवारों में तनाव का एक कारण भी इसे बताया जा रहा है।  शादी के पहले ही भावी दुल्हन और दूल्हा फिल्मी अंदाज में एक-दूसरे के साथ नजर आते हैं। वे स्वयं को एक अभिनेता और अभिनेत्री की भांति दिखाने की हर संभव कोशिश करते हैं। चाहे उन्हें अर्धनग्न वस्त्र ही क्यों ना पहनने पड़े। हालांकि कुछ जोड़ों ने अपने प्री-वेडिंग शूट को नया रूप देने के लिए धार्मिकता से भी जोड़कर बनाया है। यह भी देखा जाता है कि कुछ जोड़े प्री-वेडिंग शूट के लिए अपनी जान जोखिम में डालकर भी शूट करवाते हैं। ऐसे दो मामलों में उनकी जान भी जा चुकी है। अपनी शादी को यादगार बनाने और उसे कैमरे में कैद कर सार्वजनिक स्थल में परोसने की प्रवृत्ति कहीं न कहीं भारतीय समाज में पारिवारिक रिश्तों को तार तार कर रही है। इस परंपरा को रोकना आवश्यक है ताकि विवाह के नाम पर युवक युवती द्वारा फूहड़ प्रदर्शन का विपरीत असर सभ्य समाज पर न पड़े। कुछेक मामलों में ये उल्टा पड़ जाता है जब किसी वजह से शादी ही टूट जाए, लेकिन आज की जेनरेशन ये रिस्क लेने के लिए तैयार लगती है। भारतीय परपराओं के अनुसार प्री वेडिंग शूट गलत है। विवाह से पहले प्री वेडिंग शूट के बहाने इस प्रकार युवक युवती का मिलना समाज के लिए कतई शोभनीय है।

बाल मुकुन्द ओझा

वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार

डी-32, मॉडल टाउन, मालवीय नगर, जयपुर

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