चंद्रमा से आज रात होगी अमृत रूपी सोम की वृष्टि

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शरद पूर्णिमा आज …..

छत पर बिताइए चांदनी रात खीर खाइए

ब्रह्मलोक में अनादि राधा और अनादि कृष्ण के महारास से निकला अमृत सोम लताओं में जा बसता है । यही अमृत शरद पूर्णिमा की रात्रि में पूर्णचंद्र की किरणों के साथ धरती पर बरसता है । सोम रूपी यह अमृत वर्ष में केवल एक ही रात बरसता है । जिस साल कुंभ मेले हो उस साल मुख्य स्नान के दिन भी इसी अमृतमय सोम की वर्षा पवित्र नदियों पर होती है । अश्विन शुक्ल पूर्णिमा सोमवार की रात्रि में यह अमृत फिर बरसेगा । कालांतर में देवताओं और असुरों के बीच हुए समुद्र मंथन में शरद पूर्णिमा के दिन यही अमृत समुद्र के गर्भ से अक्षय कलश में निकला था ।

मान्यता है कि ऐसा ही अमृत वृन्दावन के निधिवन में प्रति रात्रि बरसता है । लेकिन यह रास एकांत में होता है और मनुष्य का रात्रि प्रवेश निधिवन में वर्जित है । अतः धरती वासियों को अमृत पान का अनोखा अवसर शरद पूर्णिमा की रात्रि में मिलता है । द्वापर में भगवान कृष्ण गोपियों संग पूर्णिमा को रात भर महारास किया करते थे ।

शरद पूर्णिमा की रात्रि में कुछ घंटे छत पर खुले आकाश के नीचे बिताए । दूध में चौले ( चिवड़ा )और चीनी मिलाकर अथवा खीर बनाकर चंद्रमा की चांदनी में पूरी रात अथवा कुछ घंटे रखें । बाद में प्रसाद रूप में आरोग्य पाने की भावना से इसे ग्रहण करें । रात्रि में कुछ समय यदि चांदनी के प्रकाश में सुईं में धागा पिरोया जाए , या फिर सीधे चंद्रमा से नजरें मिलाकर त्राटक किया जाए , तो नेत्र ज्योति बढ़ती है ।

शरद पूर्णिमा की रात्रि में जब समुद्र मंथन से लक्ष्मी प्रकट हुई तब देवताओं ने उनकी वंदना की । प्रत्येक शरद पूर्णिमा की रात्रि में चंद्रमा के प्रकाश में बैठकर लक्ष्मी की पूजा की जाती है । सर्व सिद्धि योग और अमृत योग में नक्षत्रों की जुगलबंदी व्यापक प्रभाव डालती है । शरद रात्रि से चंद्रमा के 27 नक्षत्रों का मिलन न केवल शुभ माना जाता है अपितु कईं प्रकार के उत्तम फल भी प्रदान करता है ।

अश्विन पूर्णिमा की चांदनी का मिलन जब कार्तिक मास की प्रतिपदा से होता है तो शास्त्रों में उसे अमृत योग कहा गया है । दोनों के मिलन से जल रूप गंगा भी उत्पन्न हुई । गंगा को भगीरथ धरती पर लाए । गंगा तट पर रात भर बैठकर शरद पूर्णिमा मनाई जाए तो सोम मय अमृत तत्व सहज प्राप्त हो जाता है । यही अमृत समुद्र मंथन के समय उस कलश में विद्यमान था , जिसे लेकर भगवान धन्वंतरि प्रगट हुए थे ।

शरद पूर्णिमा पर भगवान विष्णु तथा महालक्ष्मी की पूजा का विधान है । यह पूजा पवित्र नदियों में स्नान के बाद वहीं तटों पर भी की जाती है और मंदिरों में जाकर भी । बहुत से श्रद्धालु शरद पूर्णिमा पर व्रत रखते हैं । महालक्ष्मी का प्राकट्य चूंकि समुद्र के जल से हुआ , अतः गंगा आदि पवित्र नदियों के किनारे जल पूजा भी शास्त्रों में बताई गई है ।

……कौशल सिखौला

वरिष्ठ पत्रकार

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