84 वर्षीय मशहूर कॉमेडियन और एक्टर असरानी का निधन

Date:

आज दोपहर तीन बजे जुहू स्थित आरोग्यानिधि अस्पताल में 84 वर्षीय मशहूर कॉमेडियन और एक्टर असरानी का निधन हो गया। वह पिछले चार दिनों से अस्वस्थ थे और अस्पताल में भर्ती थे। असरानी का अंतिम संस्कार आज सांताक्रूज पश्चिम स्थित शास्त्री नगर श्मशान घाट पर हुआ। वहां कोई भी फिल्मी हस्ती मौजूद नहीं थी।

फिल्म ‘शोले’ में जेलर का किरदार निभाकर मशहूर हुए कॉमेडियन और एक्टर असरानी ने आज सुबह ही अपने फैंस को दीवाली की शुभकामनाएं दी थीं। इसके चंद घंटों बाद उनका निधन हो गया।दरअसल, असरानी ने आज सुबह ही अपनी पत्नी मंजू से कहा था कि वे अपने अंतिम समय में कोई भीड़ नहीं चाहते, न ही लोगों को परेशान नहीं करना चाहते। वे शांतिपूर्वक जाना चाहते हैं। ऐसे में एक्टर के निधन के बाद पत्नी मंजू ने असरानी के सचिव से अनुरोध किया था कि वह किसी को भी इसकी जानकारी न दें।

भारतीय सिनेमा के इतिहास में जब भी हास्य कलाकारों की चर्चा होती है, तो असरानी का नाम अत्यंत सम्मान के साथ लिया जाता है। लगभग छह दशकों से अधिक लंबे अपने अभिनय सफर में असरानी ने गंभीर, हास्य और चरित्र भूमिकाओं में ऐसी विविधता दिखाई है कि वे दर्शकों के दिलों में अमिट छाप छोड़ गए। उनकी मुस्कान, संवाद-अदायगी और अभिव्यक्ति का अपना अलग अंदाज़ है, जो उन्हें अन्य हास्य कलाकारों से अलग पहचान देता है।


प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

असरानी का पूरा नाम गोवर्धन असरानी है। उनका जन्म एक जनवरी 1941 को राजस्थान के जयपुर में एक सिंधी परिवार में हुआ। बचपन से ही असरानी को अभिनय और नकल करने का शौक था। वे अपने स्कूल में शिक्षकों और दोस्तों की नकल उतारकर सबका मनोरंजन किया करते थे। प्रारंभिक शिक्षा जयपुर में पूरी करने के बाद उन्होंने मुंबई का रुख किया।

मुंबई आने के बाद असरानी ने फिल्म एंड टेलीविज़न इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया (FTII), पुणे में दाखिला लिया। यह वही संस्थान था, जिसने बाद में बॉलीवुड को शबाना आज़मी, जया भादुरी, शत्रुघ्न सिन्हा और मिथुन चक्रवर्ती जैसे बड़े कलाकार दिए। एफटीआईआई में असरानी को अभिनय की बारीकियाँ सीखने का अवसर मिला और यहीं से उन्होंने अभिनय को अपने जीवन का ध्येय बना लिया।


फिल्मी करियर की शुरुआत

असरानी ने अपने अभिनय करियर की शुरुआत 1960 के दशक में की। उनकी पहली प्रमुख फिल्म थी “हरे कांच की चुड़ियाँ” (1967), जिसमें उन्होंने छोटी लेकिन प्रभावशाली भूमिका निभाई। शुरुआती दिनों में असरानी को संघर्ष करना पड़ा क्योंकि वे किसी पारंपरिक नायक की तरह नहीं दिखते थे। लेकिन उन्होंने अपनी कॉमिक टाइमिंग और सादगी भरे अभिनय से धीरे-धीरे फिल्म निर्माताओं का ध्यान खींच लिया।

1970 के दशक में असरानी का करियर तेजी से आगे बढ़ा। इस दशक में उन्होंने कई हिट फिल्मों में काम किया, जिनमें “छोटी बहू” (1971), “अभिमान” (1973), “शोले” (1975), “चुपके चुपके” (1975), “अमदानी अठन्नी खर्चा रूपैया”, “बावर्ची”, और “गोलमाल” (1979) जैसी फिल्में उल्लेखनीय हैं।


“शोले” का जेलर : असरानी की अमर भूमिका

यदि असरानी के करियर की सबसे यादगार भूमिका की बात की जाए, तो वह निस्संदेह फिल्म “शोले” का जेलर वाला किरदार है। यह भूमिका कुछ ही मिनटों की थी, पर असरानी ने इसे इतने जीवंत ढंग से निभाया कि वह हिंदी सिनेमा के इतिहास में अमर हो गई।

उनका प्रसिद्ध संवाद —
“हम अंग्रेजों के ज़माने के जेलर हैं…”
आज भी दर्शकों की ज़ुबान पर है। इस किरदार ने असरानी को हास्य अभिनय की परंपरा में एक स्थायी स्थान दिला दिया। उन्होंने यह साबित कर दिया कि अभिनय की ताकत समय की सीमा से परे होती है — छोटी भूमिका भी अमर हो सकती है अगर कलाकार उसे पूरी ईमानदारी और ऊर्जा से निभाए।


बहुमुखी कलाकार

असरानी को केवल हास्य अभिनेता कहना उनके साथ न्याय नहीं होगा। उन्होंने कई गंभीर और भावनात्मक भूमिकाएँ भी निभाई हैं। जैसे कि “अभिमान” में जया भादुरी के भाई की भूमिका, और “जिद्दी”, “नामक हराम” तथा “खिलौना” जैसी फिल्मों में उनके अभिनय ने दिखाया कि वे हर प्रकार की भूमिका निभाने में सक्षम हैं।

उनकी खासियत यह रही कि वे मुख्य नायक के साए में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सफल रहते थे। चाहे अमिताभ बच्चन के साथ सीन हो या राजेश खन्ना के साथ, असरानी का अभिनय हमेशा सहज और स्वाभाविक रहा।


निर्देशक और लेखक के रूप में असरानी

असरानी ने सिर्फ अभिनय तक अपने को सीमित नहीं रखा। उन्होंने निर्देशन और पटकथा लेखन में भी हाथ आज़माया।
1977 में उन्होंने फिल्म “ओम शांति ओम” (1977, राजेश खन्ना के साथ) का निर्देशन किया।
इसके अलावा उन्होंने गुजराती फिल्मों में भी निर्देशक के रूप में काम किया और कुछ धारावाहिकों का भी निर्माण किया।


टेलीविज़न और नई पीढ़ी के साथ जुड़ाव

1990 के दशक में जब हिंदी टेलीविज़न तेजी से उभर रहा था, असरानी ने भी इस माध्यम को अपनाया। उन्होंने लोकप्रिय सीरियल “हम सब एक हैं” और “फनी फैमिली डॉट कॉम” में अपनी शानदार हास्य उपस्थिति दर्ज कराई।

नए सदी में भी असरानी सक्रिय रहे। उन्होंने “हेरा फेरी”, “मालामाल वीकली”, “धूम”, “भूल भुलैया” और “वेलकम” जैसी फिल्मों में महत्वपूर्ण सह भूमिकाएँ निभाईं।


निजी जीवन

असरानी ने अभिनेत्री मनोहरा असरानी (मेनका) से विवाह किया। वे भी एक अभिनेत्री थीं और कई गुजराती तथा हिंदी फिल्मों में काम कर चुकी हैं। असरानी और मेनका का एक बेटा है, जो फिल्म निर्माण के क्षेत्र में सक्रिय है। असरानी का पारिवारिक जीवन हमेशा अनुशासन और सरलता से भरा रहा।


पुरस्कार और सम्मान

असरानी को उनके उत्कृष्ट अभिनय के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।

फिल्मफेयर पुरस्कार (1974) – सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता (“आ अब लौट चलें”)

गुजरात राज्य पुरस्कार – गुजराती फिल्मों में योगदान के लिए

लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड – हिंदी सिनेमा में दीर्घकालीन योगदान के लिए

उनका नाम हिंदी सिनेमा के उन चंद कलाकारों में लिया जाता है जिन्होंने हंसी के माध्यम से सामाजिक संदेश देने का काम भी किया।


असरानी की अभिनय शैली

असरानी के अभिनय की सबसे बड़ी विशेषता है उनकी संयमित हास्य शैली। वे हंसी को कभी फूहड़ता में नहीं बदलते। उनकी कॉमिक टाइमिंग, संवाद की गति और चेहरों के हावभाव इतने सटीक होते हैं कि दर्शक अनायास ही मुस्कुरा उठते हैं।

उनकी अदायगी में अक्सर चार्ली चैपलिन की झलक दिखाई देती है—मूक अभिनय, सहजता और मानवीय संवेदना। असरानी ने हमेशा कहा है कि “हास्य सबसे कठिन अभिनय है क्योंकि इसमें दर्शक को वास्तविक आनंद महसूस कराना पड़ता है।”


निष्कर्ष

असरानी भारतीय सिनेमा के उन दुर्लभ कलाकारों में से हैं जिन्होंने हास्य को कला का दर्जा दिया। उन्होंने यह साबित किया कि हँसाना उतना ही कठिन है जितना रुलाना। उनकी हर भूमिका में ईमानदारी, सादगी और मौलिकता झलकती है।

आज भी असरानी फिल्म जगत में सक्रिय हैं और नई पीढ़ी के कलाकारों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। उन्होंने हिंदी सिनेमा में जो योगदान दिया है, वह आने वाले वर्षों तक याद किया जाएगा।

उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि अभिनय केवल प्रसिद्धि का साधन नहीं, बल्कि यह समाज को खुशी देने का माध्यम भी हो सकता है।


असरानी — हंसी के सम्राट, सादगी के प्रतीक और भारतीय सिनेमा की जीवित धरोहर हैं।

राजेश खन्ना के साथ की 25 फिल्में
पहली फिल्म में अपने अभिनय से सबका दिल जीतने वाले असरानी ने साल 1967 में गुजराती फिल्म में मुख्य किरदार निभाया। उन्होंने चार और गुजराती फिल्मों में अभिनय किया। साल 1971 के बाद से असरानी को फिल्मों में कॉमेडियन का किरदार या अभिनेता के दोस्त का किरदार मिलने लगा।  उन्होंने 1970 से लेकर 1979 तक 101 फिल्मों में काम किया। फिल्म ‘नमक हराम’ में काम करने के बाद असरानी और राजेश खन्ना दोस्त बन गए। इसके बाद राजेश खन्ना जिस फिल्म में काम करते, वह निर्माताओं से कहते कि असरानी को भी काम दें। असरानी ने राजेश खन्ना के साथ 25 फिल्मों में काम किया।

असरानी की हिट फिल्में
असरानी ने 1970 के दशक में कई फिल्मों में कॉमेडियन का किरदार निभाया। इन फिल्मों में ‘शोले’, ‘चुपके चुपके’, ‘छोटी सी बात’, ‘रफू चक्कर’, ‘फकीरा’, ‘हीरा लाल पन्नालाल’ और ‘पति पत्नी और वो’ शामिल हैं। कई फिल्मों में कॉमेडियन का किरदार निभाने वाले असरानी ने ‘खून पसीना’ में सीरियस रोल भी निभाया है।
2000 के दशक में असरानी ने कई कॉमेडी फिल्मों में यादगार अभिनय किया। इसमें ‘चुप चुप के’, ‘हेरा फेरी’, ‘हलचल’, ‘दीवाने हुए पागल’, ‘गरम मसाला’, ‘भागम भाग’ और ‘मालामाल वीकली’ शामिल हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Share post:

Subscribe

spot_imgspot_img

Popular

More like this
Related

आर्य समाज नेता और सांसद प्रकाशवीर शास्त्री : धर्म, राष्ट्र और संस्कृति के तेजस्वी पुरोधा

प्रकाशवीर शास्त्री भारतीय राजनीति, धर्म और समाज-सुधार की उन...

भारतीय संगीत की मधुर आत्मा, पाश्र्वगायिका गीता दत्त

भारतीय फिल्म संगीत के स्वर्णयुग में जो आवाज सबसे...

कोई बड़ी बात नही, कल फिर सिंध भारत में आ जाएः राजनाथ सिंह

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि सीमाएं...

तृणमूल विधायक हुमायूं कबीर का छह दिसंबर को ‘बाबरी मस्जिद’ की नींव रखने का ऐलान

तृणमूल कांग्रेस विधायक हुमायूं कबीर ने छह दिसंबर...
en_USEnglish