आज के दिन शुरू हुई हिमालयन कार रैली

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हिमालयन कार रैली की शुरुआत साल 1980 के 18 अक्टूबर को नज़ीर हुसैन ने की थी। मुम्बई के स्टेडियम से झंडी दिखाकर इसकी शुरुआत हुई। हुसैन को भारतीय मोटरस्पोर्ट को विश्व मंच पर लाने का श्रेय दिया जाता है। वह भारतीय रेसिंग ड्राइवर होने के साथ-साथ मोटर स्पोर्ट्स के प्रशासक भी थे। वह विश्व रैली चैम्पियनशिप के मुख्य प्रबंधक और विश्व मोटर स्पोर्ट्स काउंसिल के सदस्य रहे। उनका निधन 78 वर्ष की आयु में साल 2019 में हुआ था।

1980 से 1990 तक इस रैली का आयोजन हर साल किया गया। इन वर्षों में हिमालयन रैली संभवतः दुनिया की सबसे दिलचस्प और आकर्षक रैली थी। पहली हिमालयन कार रैली बॉम्बे (अब मुंबई) से शुरू होकर हिमालय के रास्तों से गुजरते हुए दिल्ली में समाप्त हुई थी। दूसरी हिमालयन रैली की शुरुआत भी मुंबई से हुई थी। लेकिन तीसरी और उसके बाद की सभी रैलियों का आगाज दिल्ली से हुआ।

पहले हिमालयन रैली का उद्घाटन भारतीय मूल के प्रसिद्ध युगांडावासी रैली ड्राइवर चंद्रशेखर मेहता ने की थी। मेहता ने अपने करियर में कई खिताब जीते थे। उनके अलावा उद्घाटन समारोह में अचिम वार्मबोल्ड जैसे विश्व प्रसिद्ध ड्राइवर भी आए थे। ओपल, टोयोटा आदि सहित कई टीमों ने रैली में भाग लिया था।

हिमालयन कार रैली में विदेशी ड्राइवर और टीमें आती रहीं। खासकर केन्या से एक बड़ा दल इस आयोजन में हमेशा देखा गया। भारतीय मूल के केन्याई जयंत शाह ने कई बार जीत भी हासिल की थी। हिमालयन रैली में भाग लेने वाले अन्य बड़े नामों में रॉस डंकर्टन, फ्लोरी रूटहार्ट, रॉड मिलन, गाइ कोलसोल, फिलिप यंग, रमेश खोड़ा, रुडोल्फ स्टोहल, स्टिग एंडरवांग आदि शामिल हैं। यहां तक कि शीर्ष WRC ड्राइवर पेर एकलुंड ने भी हिमालयन रैली में भाग लिया था।

ये सभी ड्राइवर और कंपनियों की टीमें हिमालय की घुमावदार और संकरी सड़कों पर गाड़ी चलाने की चुनौती से आकर्षित थीं। हिमालयन कार रैली के रूट की अधिकांश सड़कें मिट्टी या बजरी वाली थीं। ऐसे में इंसान और मशीन दोनों की परीक्षा और भी अधिक कठिन हो जाती थी।

हिमालयन रैली में भाग लेने वाली कारों की विविधता देखने लायक होती थीं। रैली के प्रतिभागियों को अक्सर मसूरी के सेवॉय में ठहराया जाता था। इस आयोजन में हर साल 100 से अधिक प्रतिभागी शामिल होते थे। इस रैली ने इंडियन सिक्योरिटी फोर्स की टीमों को भी आकर्षित किया।

रैली के दौरान हजारों लोग कारों को देखने आते थे। कुछ क्षेत्रों में तो बच्चों को रैली दिखाने और प्रतिभागियों का उत्साह बढ़ाने के लिए स्कूल बंद कर दिए जाते थे। आलम यह था कि हिमालयन कार रैली का हिस्सा बनने की दावेदार हो गई थी।

आगे के वर्षों में हिमालयन कार रैली राजनीतिक लड़ाई का शिकार हो गई। सबसे पहले जॉर्ज फर्नांडीस ने इसका विरोध किया। बाद में उत्तर प्रदेश के पहाड़ी लोग, जो तब अलग पहाड़ी राज्य उत्तराखंड के लिए आंदोलन कर रहे थे, उन्होंने रैली की कारों पर हमला किया। कुछ मौकों पर रैली को बाधित करने की भी कोशिश की।

जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हुई और दंगे भड़क उठे तो हिमालयन रैली को रोकना पड़ा। प्रतिभागियों की सुरक्षा के लिए सेना बुलानी पड़ी। अफसोस की बात है कि हिमालयन रैली कभी भी WRC का हिस्सा नहीं बनी और 1990 में आखिरी रैली के आयोजन के बाद यह लुप्त हो गई।

रजनी कांत शुक्ला

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